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अब उतारनी होगी खामोशी की चादर

- पहली बार मद्रास हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणियों ने जैसे चुनाव आयोग हिला दिया।- कोरोना महामारी के बीच पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने में जुटे चुनाव आयोग ने पिछले दो महीनों में तो जैसे किसी की परवाह ही नहीं की।

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अब उतारनी होगी खामोशी की चादर

अब उतारनी होगी खामोशी की चादर

आखिर अदालत की तल्खी काम आई। अब तक बारह माथे का हुआ घूम रहा चुनाव आयोग उसके आगे नतमस्तक दिखाई दे रहा है। कोरोना महामारी के बीच पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने में जुटे चुनाव आयोग ने पिछले दो महीनों में तो जैसे किसी की परवाह ही नहीं की। न जनता की, न कोरोना की और न ही देश के राजनीतिक दलों की। केवल सत्ताधारी दल के हित साधने के विपक्ष के आरोप को धोने में भी उसने रुचि नहीं दिखाई। चुनाव अभियान में कोरोना दिशा-निर्देशों की पालना न होने सम्बंधी कोलकाता हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणियों पर भी उसने जो निर्णय किए, वे नहीं किए जैसे ही थे।

पहली बार मद्रास हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणियों ने जैसे उसे हिला दिया और चौबीस घंटे में ही उसने दो मई को हो रही मतगणना को लेकर कुछ दमदार प्रतिबंधों की घोषणा कर दी। हालांकि चुनावी रैलियों और रोड शो के नाम पर उसके कोरोना दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ती देखने वाले इन पर भी अंगुलियां उठा सकते हैं। लेकिन, पहले की तरह अब भी उसे इनसे अविचलित रहकर अपने निर्णयों की पालना पर ही फोकस करना चाहिए। निश्चित रूप से लोकतंत्र में चुनाव महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन हमारे यहां कहा गया है कि विपत्तिकाल में मर्यादाओं से दाएं-बाएं हुआ जा सकता है। ऐसे में यदि पांच राज्यों के चुनाव अभियान में आयोग, सामान्य परिस्थितियों से अलग हटकर चुनाव कराता तो उसकी सराहना होती। इन नवाचारों के लिए कहीं जरूरी होता तो संसद से लेकर सरकार और न्यायपालिका से लेकर राजनीतिक दल, सब उसके साथ खड़े नजर आते। जैसे वह कहता कि चुनाव अभियान सिर्फ सात दिन का होगा और इस दौरान कई किमी लंबे रोड शो तो दूर किसी को सभा करने तक की छूट नहीं होगी। रेडियो-टीवी पर राष्ट्रीय और राज्यस्तरीय दल की मान्यता के हिसाब से समान समय मिलेगा। किसी को अथाह संसाधनों के प्रदर्शन की छूट भी नहीं मिल पाती। जिसने काम किया है या जिस पर जनता को भरोसा है, वह जीत कर आता। लोग पूर्व सीईसी टीएन शेषन को भूल जाते।

चुनाव आयोग ने न केवल वह मौका खो दिया, बल्कि इतिहास में अपने खाते न्यायपालिका की डांट-फटकार और कोरोना फैलाने की तोहमत तक दर्ज करवा ली। यद्यपि मद्रास हाईकोर्ट के फैसले की भी इस पर तो आलोचना हो ही रही है कि दो माह में जो कुछ उसके सामने हुआ तब वह क्यों नहीं सख्त हुआ? वह भी मीडिया की तरह क्यों खामोश रहा? स्व प्रेरणा से प्रसंज्ञान ले लेता, तो यह नौबत ही नहीं आती। फिर भी अब जो हुआ, उसकी सराहना करते हुए अच्छे की उम्मीद करनी चाहिए।