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राष्ट्रीय राजनीति की दिशा का भी संकेत देंगे महाराष्ट्र-झारखंड

लोकसभा चुनाव में दोनों ही राज्यों यानी महाराष्ट्र और झाारखंड में ‘इंडिया’ भारी पड़ा था, लेकिन हाल में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपान नीत राजग ने बाज पलट दी। ऐसे में महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव नतीजे राज्य की सत्ता का ही फैसला नहीं करेंगे, राष्ट्रीय राजनीति की दिशा का भी संकेत देंगे, क्योंकि अगले साल दिल्ली और बिहार में भी विधानसभा चुनाव हैं।

जयपुरNov 13, 2024 / 09:52 pm

Gyan Chand Patni

राज कुमार सिंह
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक
वर्ष 2024 की विदाई बेला में हो रहे महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव भाजपानीत राजग और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’, दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण हंै। जम्मू-कश्मीर को अपवाद मान लें, जहां नेशनल कांफ्रेंस की जीत ने सबको चौंका दिया, तो 2024 में ‘इंडिया’ गठबंधन को लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत से रोकने का सांत्वना पुरस्कार ही मिल पाया है। बेशक भाजपा को अकेलेदम बहुमत से वंचित करने से विपक्ष का हौसला बढ़ा, लेकिन उसे बरकरार रखने के लिए आगे भी चुनावी जीत जरूरी है, जबकि इस बीच हरियाणा में हार का जोरदार झटका लग चुका है। जम्मू-कश्मीर में नाम के लिए ही ‘इंडिया’ सरकार है, क्योंकि मात्र छह सीटें जीती कांग्रेस सरकार से बाहर है। कौन सा मुद्दा महाराष्ट्र और झारखंड के मतदाताओं को मोहने में सफल रहा—यह तो 23 नवंबर को नतीजे ही बताएंगे, लेकिन दोनों गठबंधनों में सीट बंटवारे और चुनाव घोषणा पत्रों की रणनीति बताती है कि कोई भी जोखिम नहीं लेना चाहता।
एकनाथ शिंदे सरकार द्वारा लोक लुभावन घोषणाओं की बारिश और फिर सबको खुश करने वाले चुनावी वादों से साफ है कि केंद्र और राज्य में सरकार होने के बावजूद राजग को महाराष्ट्र के चुनाव की मुश्किलों का अहसास है। समाज का कोई ऐसा वर्ग नहीं, जिस पर योजनाओं और वादों की बारिश न की गयी हो। महा विकास अघाड़ी (‘इंडिया’) तो चुनावी वायदों में महायुति (राजग) से भी दो कदम आगे निकल गई है। वैसे पिछले पांच साल में मतदाता दोनों का राज देख चुके हैं। चुनावी बिसात में भी दोनों गठबंधनों और उनके घटक दलों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। खुद सबसे बड़ा दल होने के बावजूद एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना देने वाली भाजपा ने शिवसेना को विधायकों से भी ज्यादा सीटें देने की उदारता दिखाई है। बेशक उनमें कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जिन पर उम्मीदवार भाजपा ने दिए हैं। यह बड़ा चुनावी दांव है, जिसमें आगे की देखी जा रही है। हरियाणा में ‘एकला चलो’ की हठ में, हाथ में आती सत्ता गवां चुकी कांग्रेस ने महाराष्ट्र में सीट बंटवारे में उदारता दिखाई है। परिणामस्वरूप उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को उससे कहीं ज्यादा सीटें मिल गई हैं, जितने विधायक पार्टी में विभाजन के बाद बचे थे। शरद पवार ने सीट बंटवारे में जो खेल किया है, उसका असर चुनाव के बाद भी नजर आ सकता है। गिनती के लिए उद्धव की शिवसेना और कांग्रेस को कुछ ज्यादा सीटें मिली हैं, पर महाराष्ट्र की राजनीति को समझने वाले मानते हैं कि असली खेल मराठा क्षत्रप शरद पवार ने किया है। नवाब मलिक की उम्मीदवारी से ले कर ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारों पर भाजपा से अजीत पवार की असहमति बताती है कि सत्ता में साथ होते हुए भी परस्पर संबंध सहज नहीं हैं।
महाराष्ट्र की तरह झारखंड भी आर्थिक रूप से समृद्ध राज्य है। लगातार महंगी होती राजनीति में आर्थिक संसाधनों की जरूरत भी किसी से छिपी नहीं है। वहां ‘इंडिया’ गठबंधन की सरकार है। इसलिए उस पर सत्ता बरकरार रखने का दबाव ज्यादा है। हेमंत सोरेन के नेतृत्ववाली वर्तमान झामुमो-कांग्रेस-राजद सरकार से पहले पिछली बार वहां राजग सरकार थी, पर भाजपा ने आदिवासी बहुल राज्य में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री का प्रयोग किया, जो पिछले चुनाव में उसे भारी पड़ गया। इसी साल लोकसभा चुनाव में भी भाजपा पांचों आदिवासी बहुल सीटें हार गई। इसीलिए अब भाजपा चंपाई सोरेन को अपनाने से ले कर आदिवासियों पर फोकस के लिए हर संभव कवायद कर रही है। ई्डी के मनी लांड्रिंग केस में जमानत के बाद फिर से मुख्यमंत्री बने हेमंत सहानुभूति की आस लगा रहे हैं तो वैसी ही आस उनकी अनुपस्थिति में मुख्यमंत्री रहे चंपाई को भी है। राजग में सीट बंटबारे में भाजपा ने उदारता दिखाई है तो ‘इंडिया’ में कांग्रेस और राजद ने भी समझदारी दिखाते हुए वाम दलों के लिए जगह बना कर गठबंधन को व्यापक बनाया है। एजेंडा दोनों ही राज्यों में समान दिखता है। भाजपानीत ‘राजग’ का जोर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर है, जबकि ‘इंडिया’ जाति जनगणना के जरिए सामाजिक न्याय पर दांव लगा रहा है।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में दोनों ही राज्यों यानी महाराष्ट्र और झाारखंड में ‘इंडिया’ भारी पड़ा था, लेकिन हाल में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपान नीत राजग ने बाज पलट दी। ऐसे में महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव नतीजे राज्य की सत्ता का ही फैसला नहीं करेंगे, राष्ट्रीय राजनीति की दिशा का भी संकेत देंगे, क्योंकि अगले साल दिल्ली और बिहार में भी विधानसभा चुनाव हैं। दिल्ली में आप अकेले दम सत्ता पर काबिज है, जबकि नीतीश कुमार के एक बार फिर पाला बदलने के बाद बिहार में फिलहाल राजग सरकार है।

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