नानाबालिग बेटियों से दुष्कर्म के बढ़ते मामलों पर चिंता जताने की बजाए न्यायपालिका ऐसे अपराधियों की चिता सजाने को लेकर गंभीरता दिखाए तो शायद कुछ नतीजे निकल सकते हैं और समाज में आ रहे नैतिक पतन को रोकने में मदद मिल सकती है।
नानाबालिग बेटियों से दुष्कर्म के बढ़ते मामलों पर चिंता जताने की बजाए न्यायपालिका ऐसे अपराधियों की चिता सजाने को लेकर गंभीरता दिखाए तो शायद कुछ नतीजे निकल सकते हैं और समाज में आ रहे नैतिक पतन को रोकने में मदद मिल सकती है।
जिस बेटी को जन्म दिया उसके साथ दुष्कर्म करने वाले हैवान को क्या पिता कहा जाए? पिता का मतलब होता है औलाद को सुरक्षा और अच्छा भविष्य मुहैया कराना। औलाद की जरूरतों को पूरा करना और अच्छे संस्कार देना। लेकिन आज समाज में जो देखने को मिल रहा है वह शर्मसार करने वाला है रिश्तों को भी और इंसानियत को भी।
बड़ा सवाल यही है कि क्या ऐसी घिनौनी वारदातें सिर्फ चिंता जताने से थम पाएंगी? बेशक इस तरह की पाशविक मानसिकता रखने वाले लोग अंगुलियों पर गिनने लायक होंगे लेकिन इस तरह की बढ़ती घटनाएं चिंता का सबब तो बनती ही हैं। चार साल पहले दिसम्बर के महीने में दिल्ली में एक युवती से सामूहिक बलात्कार हुआ तो समूचा देश मानो उठ खड़ा हुआ था।
विरोध प्रदर्शन भी हुए, सेमिनार भी हुईं और रैलियां भी निकाली गईं, ये जताने के लिए कि सभ्य समाज इस तरह की वारदातों को सहन करने के लिए तैयार नहीं। लेकिन अपनी ही नाबालिग पुत्री के साथ बलात्कार की खबरों पर समाज विचलित क्यों नहीं होता?
ऐसे दरिंदों के खिलाफ सामाजिक चेतना जाग्रत क्यों नहीं होती? जरूरत इस बात की है कि दिल्ली में होने वाली दरिंदगी के खिलाफ भी विरोध जताया जाए और छोटे कस्बे में होने वाली ऐसी ही किसी दूसरी घटना पर भी। दिल्ली में सामूहिक बलात्कार के चारों आरोपियों को अदालत ने एक साल के भीतर मृत्युदंड की सजा सुना दी। लेकिन अपनी पुत्रियों के साथ बलात्कार के मामलों में अदालत ने शायद ही किसी हैवान 'बापÓ को फांसी की सजा सुनाई हो।
अधिकांश मामलों में पांच-सात साल की सजा देकर छोड़ दिया जाता है। ऐसे मामलों में रहम दिखाने से काम चलने वाला नहीं। न्यायपालिका के चिंता जताने से भी समस्या का हल निकलने वाला नहीं। इसके लिए न्यायपालिका को सख्त होना होगा।
चिंता के साथ-साथ ऐसे हैवानों को सख्त से सख्त सजा देकर समाज में संदेश देना होगा। अपनी ही पुत्री के साथ दुष्कर्म करने वाले किसी भी बाप के लिए यूं तो फांसी की सजा भी छोटी ही मानी जाएगी। जिस देश में बेटियों को देवी के रूप में देखा और पूजा जाता रहा हो उस देश में इस तरह की घिनौनी वारदातों पर कोई अंकुश लगा सकता है तो वह देश का कानून ही है।
पिता का मतलब होता है औलाद को सुरक्षा और अच्छा भविष्य मुहैया कराना। उसकी जरूरतें पूरा करना और अच्छे संस्कार देना। आज समाज में जो देखने को मिल रहा है वह शर्मसार करने वाला है रिश्तों को और इंसानियत को भी।