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पाकिस्तान चुनाव के नतीजे संभावनाओं के अनुरूप ही सामने आए, जिन्हें पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) के अलावा प्राय: सभी दलों ने खारिज कर दिया। विवादों में आए चुनाव परिणामों की अंतिम घोषणा में अप्रत्याशित विलंब के कई मायने निकाले जा रहे हैं। चुनाव परिणामों को अदालत में घसीटा जाता है तब भी यह तो तय है कि क्रिकेट की दुनिया का पुराना सितारा इमरान खान पाकिस्तान की राजनीति का नया नायक बन गया है। हालांकि ‘नया पाकिस्तान’ का नारा देकर मैदान में आए इमरान खान के दल को सबसे ज्यादा सीटें मिलने के बावजूद किसी को भरोसा नहीं है कि हालात बदलेंगे। वजह साफ है कि इमरान को ‘आर्मी बॉय’ ही माना जाता है। समझा जा रहा है कि अपना वर्चस्व रखने के लिए ‘तालिबान खान’ के नाम से मशहूर इमरान को सेना ने समर्थन दिया है ताकि नवाज शरीफ को रास्ते से हटाया जा सके। विदेश व रक्षा मामलों में सेना के विशेषाधिकार को चुनौती देने वाले शरीफ को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की तरह लोकतांत्रिक ठप्पा लगाकर ठिकाने लगा दिया गया है।
इमरान पिछले 22 साल से पाकिस्तान की राजनीति में स्थापित होने की कोशिश में थे। पिछले चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था। इस बार बढ़त के बाद उन्होंने चीन से काफी कुछ सीखने की बात भले ही कही हो, पर ऐसा लगता है कि भारत के पिछले चुनाव से उन्होंने काफी कुछ सीख लिया। नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा ने ‘नया भारत’ का नारा देते हुए तत्कालीन यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया था और पाकिस्तान के खिलाफ ‘56 इंच के सीने’ का जोर-शोर से प्रचार था। इमरान ने भी लगभग ऐसा ही रवैया दिखाते हुए भारत व मोदी को निशाने पर रखा। भारत से संबंध सुधारने की मंशा दिखाने वाले शरीफ के खिलाफ उनका नारा काफी लोकप्रिय हुआ कि - ‘मोदी जिसका यार है, पाकिस्तान का गद्दार है।’ इमरान में पाकिस्तानी सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा को वैसी ही संभावना नजर आई जैसे जिया उल हक को नवाज शरीफ के रूप में दिखी थी।
इमरान को कट्टरपंथियों का फायदा जरूर मिला है, लेकिन भारत के लिए सबसे खतरनाक आतंकी जमात के सरगना हाफिज सईद परिवार की शर्मनाक हार बताती है कि पाकिस्तानी जनता ने ऐसी जमात का राजनीति में आना नामंजूर कर दिया। सेना और उसकी खुफिया एजेंसी उनका इस्तेमाल जरूर करती हैं, पर अपना आका बनने का मौका नहीं देना चाहती। चुनाव में आतंकियों का उतरना भी नवाज की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के वोट काटने की सेना की सफल रणनीति ही थी। सेना की दूसरी रणनीति इमरान को एक हद से ज्यादा मजबूत होकर न उभरने देने की थी, क्योंकि त्रिशंकु असेंबली में सेना जब चाहे अपना खेल दिखा सकती है। इसलिए आर्मी चीफ बाजवा के ‘टेस्ट ट्यूब बेबी’ या सेना, न्यायपालिका और चरमपंथियों का ‘कॉकटेल’ बनकर पैदा हुए इमरान से भारत को ज्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। यदि वह भारत से संबंध सुधारने की पहल करते हैं तो दुनिया स्वागत को तैयार बैठी है।
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