29 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – बांटो और खाओ

पिछले दिनों राजस्थान से जुड़ा कितना गौरवशाली समाचार था- ‘नेता और अफसरों की शह से 700 हेक्टेयर इकोलॉजिकल क्षेत्र खत्म’।

3 min read
Google source verification

गुलाब कोठारी

पिछले दिनों राजस्थान से जुड़ा कितना गौरवशाली समाचार था- ‘नेता और अफसरों की शह से 700 हेक्टेयर इकोलॉजिकल क्षेत्र खत्म’। इस समाचार की खूबसूरती यह थी कि इसमें पर्दे के पीछे मंत्री तो दिखाई दे ही रहे थे, साथ ही शासन के देशभक्त जिम्मेदार अफसरों के नाम भी प्रकाशित थे जो इस दौरान संबंधित पदों पर आसीन रहे और उच्च न्यायालय के आदेशों की धज्जियां उड़ाते रहे। पेट पालने के लिए मातृभूमि के पेट पर छुरे चलवाते रहे। अपने नियोक्ता (जनता) के साथ दोगला व्यवहार करते रहे। मुझे समझ नहीं आ रहा कि इस नैतिक धृष्टता का दोषी किसको मानूं? जहां से इनको संस्कार मिले अथवा जहां इन्होंने भारतीयों पर राज करना सीखा?

एक ओर, एक आइएएस मुख्य सचिव पूरे प्रांत के कामकाज पर नजर रखते हैं वहीं एक विभाग में इतने आइएएस होते हैं मानो क्लर्क हो। ‘सो मैनी कुक्स स्पॉइल द ब्रॉथ’ इस अंग्रेजी कहावत का प्रभाव ही दिखाई देगा। क्या एक-दो अफसर विभाग चलाने में सक्षम नहीं हैं? इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि क्या इनको कोर्ट के आदेश के विरुद्ध काम होता नहीं दिखाई देता रहा होगा? अथवा जलमहल प्रकरण से जुड़े एक अफसर की तरह जलमहल और बड़ी चौपड़ जैसे पुरातत्व महत्व के निर्माण तोड़कर नाच रहे हैं। वे अपने मुख्यमंत्री को नाराज नहीं करना चाहते थे। क्या इकॉलोजिक क्षेत्र के मामले में भी अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रमुख शासन सचिव और नीचे के सचिव स्तर के अधिकारी भी मुख्यमंत्रियों- मंत्रियों को प्रसन्न रखने में जुटे थे?

राजस्थान उच्च न्यायालय का आदेश दो जनवरी 2017 को जारी हुआ था। आज तक और कितनी ही बार बीच-बीच में आदेश जारी हुए। इतने बड़े-बड़े अतिक्रमण हो गए, करा दिए गए और न अधिकारी जागे, न मंत्री, न ही मुख्यमंत्री। मानो न्यायपालिका के विरुद्ध सारे एकजुट हो गए हों। न्यायपालिका मानो इनके लोकतंत्र का हिस्सा ही न हो। ऐसे अफसर जनता का हित देखेंगे या ऊपर वालों का। ‘बांटो और राज करो’ का नारा तो सुनते आए हैं, ‘बांटो और खाओ’ के ऐसे उदाहरण देख लगता है कि ऐसे नेता-अफसरों की मूर्तियां चौराहों पर लगी होनी चाहिए। इनके नाम भी सचिवालय के पत्थरों पर खुदे होने चाहिए।

यह भी पढ़ें : पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख-हम तो स्वतंत्र हैं!

कोर्ट आदेश का उद्देश्य विशेष रूप से इकॉलोजिकल, ग्रीन बेल्ट और रिक्रिएशनल हरित क्षेत्र के संरक्षण का था। आगरा रोड, आमेर तहसील का इलाका, उदयपुर, अजमेर में भी आदेश की जमकर धज्जियां उड़ाईं गईं। इनमें भी कोर्ट ने यथास्थिति को बनाए रखने के आदेश दिए थे। किसने माने और क्यों नहीं मानें? क्या स्वायत्तशासन विभाग- मंत्री-मुख्य सचिव सभी अनजान थे या कुछ और कारण थे? सरकार की इच्छाशक्ति हो तो सारे मामले की जानकारी हो सकती है।

सैटेलाइट के चित्रों से चप्पे-चप्पे का ज्ञान हो सकता है। कौन अधिकारी था तब पद पर और क्यों रोक नहीं लगी अवैध कार्यों पर।

जमीनों की बंदरबांट में पिछली कांग्रेस सरकार ने भी कोई कसर नहीं रखी। कार्यकाल पूरा होते-होते 335 से ज्यादा समाज, सामाजिक संस्थाओं व ट्रस्टों को रियायती दर पर जमीनें आवंटित की गईं। इनमें 210 संस्थाएं तो ऐसी रहीं जिन्हें चुनावों की आचार संहिता लागू होने के 19 दिन पहले ही आरक्षित दर की दस फीसदी पर जमीनें आवंटित कर दी। इतना ही नहीं, निवेश के नाम पर कई चहेती कंपनी, संस्था, ट्रस्टों को 30 प्रतिशत दर पर जमीन आवंटन किया गया। इनमें निजी अस्पताल, विश्वविद्यालय, स्कूल-कॉलेज प्रबंधन शामिल है। चर्चा यह भी रही कि कई मामलों में तत्कालीन सरकार में मंत्रियों के नजदीकियों को उपकृत किया गया। सत्ता में आते ही भाजपा सरकार ने इन आवंटनों की जांच कराने की घोषणा की और कैबिनेट सब कमेटी तक इसके लिए बना दी। कमेटी के निष्कर्ष भी सामने आ चुके हैं लेकिन अभी तक कोई जमीन आवंटन निरस्त नहीं हो सका है।

यह भी पढ़ें : पत्रिका में प्रकाशित अग्रलेख – विकास में भी दिखे चमक

मुख्यमंत्री को इन मामलों में बीच में पड़ना चाहिए। इकॉलोजिकल क्षेत्र की सम्पूर्ण 700 हेक्टेयर भूमि तो खाली करानी ही है,चहेतों को उपकृत कर हुए जमीन आवंटनों को भी देखना है। कोर्ट भी अवमानना के रूप में सरकारी अफसरों के खिलाफ नामजद मुकदमे दर्ज कराए। जांच एजेंसियां (केन्द्रीय) भी जांच हाथ में ले सकती है। आठ वर्षों से उच्च न्यायालय के आदेशों की जानबूझ कर अवहेलना की जा रही है। कई मामलों में नोटिस तामील ही नहीं होते। अधिकारी ड्यूटी पर रहते हैं तब नोटिस मुख्य सचिव के जरिए तामील होना चाहिए। यही हाल नेताओं के विरुद्ध नोटिस का भी होता है। हमारा सुझाव है कि प्रत्येक हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट में एक अलग विभाग होना चाहिए जो यह सुनिश्चित कर सके कि कोर्ट के सभी आदेशों की पालना हो जाती है। मानहानि या अवमानना की मासिक रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश हो जानी चाहिए। सरकार को भी जानबूझ कर अपराध करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की इच्छा दिखानी चाहिए। अधिकारियों के नाम तो पत्रिका छापता रहेगा।