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Patrika Opinion : बादल पर हमला भविष्य के लिए चिंतित करने वाला

स्वर्ण मंदिर परिसर में शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल की हत्या की कोशिश ने पंजाब की राजनीति में पिछले दो दशक से धीरे-धीरे हावी हो रही धार्मिक कट्टरता के खतरनाक दौर में पहुंचने के संकेत दिए हैं। देश ने पहली बार अस्सी के दशक में धार्मिक कट्टरता के घोड़े पर सवार पंजाब […]

जयपुरDec 05, 2024 / 10:47 pm

MUKESH BHUSHAN


स्वर्ण मंदिर परिसर में शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल की हत्या की कोशिश ने पंजाब की राजनीति में पिछले दो दशक से धीरे-धीरे हावी हो रही धार्मिक कट्टरता के खतरनाक दौर में पहुंचने के संकेत दिए हैं। देश ने पहली बार अस्सी के दशक में धार्मिक कट्टरता के घोड़े पर सवार पंजाब के नवधनाढ्यों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को सिर चढ़ते देखा था। आजाद भारत ने पहली बार आतंकवाद का सामना किया था। साहसी, उदार और देशभक्त सिखों ने 1993 तक फिर से अपनी पकड़ बना ली। करीब 1800 जवानों की शहादत के बाद पंजाब में शांति लौटी। यह पंजाब की राजनीतिक विडंबना ही कही जाएगी कि 2007 से लेकर 2017 तक ‘उदार बादल परिवार’ के शासन के दौरान ही सिख कट्टरता राज्य में फिर से पैर जमाने लगी। गैर-सिख नेताओं की हत्या समेत अनेक ऐसे संकेतों को तब नजरअंदाज किया जाने लगा, क्योंकि किसी को अपनी राजनीति चमकानी थी।
पंजाब में आज का दौर ऐसा है जिसमें 1993 के बाद पैदा हुई आबादी प्रभावशाली भूमिका में है। यह आबादी सिख चरमपंथ के दौर को सिर्फ कहानियों में सुन-सुनकर बड़ी हुई है। ऐसे में कहानी सुनाने वाले की भूमिका अहम हो जाती है। इसी समय बादल परिवार के शासनकाल में कट्टरपंथियों के प्रति दिखाई गई ‘उदारता’ ने अहम भूमिका निभाई। बाद की सरकारों ने भी कोई खास ध्यान नहीं रखा। कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी सरकार जाते देख जरूर चरमपंथियों को मुद्दा बनाना चाहा था और इसी बहाने भाजपा से तालमेल करने की कोशिश की थी, लेकिन विफल रहे। पंजाब के किशोरों को सरकार के कथित जुल्मों की कहानियां सुनाई जा रही है। झूठ फैलाया जा रहा है कि आतंकवाद को कुचलने के लिए करीब डेढ़ लाख सिखों को मार डाला गया है, जबकि आधिकारिक तौर पर सुरक्षाकर्मियों समेत कुल 22 हजार लोग मारे गए थे। गैर-जिम्मेदार सोशल मीडिया के वर्तमान दौर में कनाडा और पाकिस्तान में बैठे ‘ख्याली खालिस्तान’ के संचालकों के लिए भारत में नफरत की हवा बहाने का भी यह मौका हो सकता है।
पंजाब को राजनीतिक अपरिपक्वता उसे फिर से तीस साल पीछे कर सकती है। सवाल यह है कि केंद्र की एनडीए सरकार और पंजाब में आप सरकार ख्याली खालिस्तानियों की करतूतों को लगाम लगाने के लिए क्या कर सकती है, जो वह नहीं कर रही है। जनता सिर्फ सुरक्षित माहौल चाहती है। बादल पर हमले की यह घटना आतंकी के बुजुर्ग होने से ही कमतर नहीं आंकी जा सकती। यह काफी गंभीर और भविष्य के लिए चिंता पैदा करने वाली है।

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