
'अपने मुंह मियां मिट्ठू' मत बनो। 'वोटों की लड़ाई' का ऐलान हुआ तब से दोनों पक्षों को ही खूब समझा रहे थे। लेकिन दोनों की ही नजर कुर्सी पर 'अर्जुन की आंख' की माफिक थी। इसलिए किसी ने कोई 'कसर' बाकी नहीं रखी। हां, नतीजे आए तो दोनों के लिए ही 'कसक' बाकी रह गई। सोचा था सब 'रामभरोसे' हो जाएगा।
लेकिन 'रामजी की लीला' भी तो निराली है। जो दिया बस खुश करने लायक ही। वे भी खुश और ये भी खुश। उनकी खुशी इसलिए कि 'सिंहासन' बरकरार है, और इनकी इसलिए कि पिछली बार चरमराई कुर्सी के 'पाए' इस बार ज्यादा मजबूत हो गए। पहले ही कहा था ना, 'हाथ पर हाथ' धर बैठने से काम नहीं चलेगा। मेहनत नहीं करने पर 'हाथ मलते रह जाना' वाली कहावत तो सुनी ही है ना। हाड़-तोड़ मेहनत करने पर ही सफलता हाथ लगती है। होना तो यह था कि मेहनत में कोई कोर कसर बाकी नहीं रहती पर हुआ उल्टा। एक-दूसरे को 'मुंह तोड़ जवाब' देने में किसी ने कोई कमी नहीं रखी। ये तो कुछ नए 'किले' बन गए, इसलिए दोनों की ही 'लाज' रह गई।
जिन्हें भी जो किले मिले वे किस्मत से ही। यूं तो 'हवाई किले' खूब बने थे पर किसी ने 'किलेबंदी' करने पर ध्यान ही नहीं दिया। वैसे शोर तो इस बात का भी हो रहा था कि नतीजे आते ही ईवीएम पर ठीकरा फोड़ा जाएगा, लेकिन ठीकरे अब काम ही नहीं आए। ईवीएम के आगे तो अगरबत्ती लगाकर पूजा करने का मन करता है। अब शायद ही कोई वोट उगलने वाली इस मशीन को भरा-बुला कहने की हिम्मत जुटाए। खैर अबकी बार 'आर-पार' भले ही नहीं हुआ पर 'तीसरी बार' जरूर हो गया। सारी महिमा 'देवतुल्यों' की है। ये जब देते हैं तो छप्पर फाड़ कर देते हैं और जब लेते हैं तो मुंह का निवाला तक छिन जाता है। देवतुल्यों ने फैसला सुना दिया। अब जिनको चुना है बारी उनकी है। वे तो यही कह रहे हैं- 'मैंने तुझे चुन लिया, अब तू भी मेरी सुन।'
— हरीश पाराशर
Published on:
09 Jun 2024 03:02 pm
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