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पक्का इरादा व मेहनत से चला जादू

क्रमवार बदलाव के मद्देनजर हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सफलता आश्चर्यजनक नहीं कही जा सकती।

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Sunil Sharma

Dec 20, 2017

PM Modi

pm modi rally

- प्रो. संजय कुमार

गुजरात और हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को सफलता मिली। इन दोनों राज्यों में हुए चुनाव से साबित हो गया है कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए देश में आकर्षण कम नहीं हुआ है। पहले बात हिमाचल प्रदेश की करें तो वहां की जनता एक बार कांग्रेस और दूसरी बार भाजपा को सत्ता की चाबी सौंपती रही है। इस बार स्वाभाविक तौर पर भाजपा का क्रम था तो इस लिहाज उसे जनता ने अपार समर्थन के साथ सत्ता का मौका दिया है। इस क्रम को देखें तो भाजपा की सफलता में कोई अचरज नहीं होना चाहिए। लेकिन इस बार के चुनाव की खासियत यह है कि हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं ने भाजपा को सीटों के साथ-साथ वोट भी कांग्रेस की तुलना में काफी अधिक दिए हैं।

पूर्व के चुनाव में दोनों दलों के बीच वोटों का अंतर चार या पांच फीसदी का हुआ करता था जो इस बार सात फीसदी से अधिक का रहा है। भाजपा को 48.5 फीसदी तो कांग्रेस को 41.4 फीसदी वोट मिले हैं। भाजपा के लिए एक नकारात्मक और निराश करने वाली बात केवल यह रही है कि उसके मुख्यमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए। धूमल इस बार अपनी परंपरागत हमीरपुर विधानसभा सीट को छोडक़र सुजानपुर से चुनाव लड़ा था। शायद, यही गलती उनसे हो गई। यदि वे मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए अन्य किसी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते तो बात अलग थी लेकिन विपक्ष में रहते हुए उनका सीट बदलना, उनके लिए ठीक नहीं रहा। उनकी लोकप्रियता कांग्रेस के वीरभद्र सिंह की तरह भी नहीं रही है जिसे वे भुना पाते।

इसके अलावा अन्य स्थानीय कारण भी रहे होंगे। अब भाजपा को मुख्यमंत्री के लिए नए चेहरे को जरूर तलाशना होगा। फिलहाल जो बात स्पष्ट है, वह यह है कि प्रदेश में भाजपा का बड़े अंतर के साथ जीतना, प्रधानमंत्री में जनता का विश्वास और उनके करिश्मे की निरंतरता को ही दर्शाता है। यह बात साफ है कि अब भी भाजपा के लिए हवा चल रही है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में दो राज्यों को छोड़ दें तो भाजपा ने सत्ता हासिल करने के मामले में सफलताएं हासिल की है। और जिन दो राज्यों में उसे सफलता नहीं मिली, उसमें से बिहार में एक बार फिर वह सत्ता में आ गई है। हकीकत तो यही है कि भाजपा ईंट दर ईंट भारत में सफलता की इमारत खड़ी करती जा रही है। हिमाचल प्रदेश में उसकी सफलता इसी इमारत की एक और ईंट या एक और कड़ी है।

भाजपा एक-एक प्रदेश को जोडक़र अपने किले को 2019 के आम चुनाव के लिहाज से मजबूत करने में जुटी है और विपक्ष लगातार कमजोर पड़ता दिख रहा है। जहां तक गुजरात विधानसभा के नतीजों का सवाल है तो वे बहुत चौंकाने वाले तो बिल्कुल नहीं हैं। हमने चुनाव पूर्व सर्वेक्षण किया था तो 30 नवंबर तक तो कांग्रेस, भाजपा को कड़ी टक्कर देती दिख रही थी। दोनों राजनीतिक दल बराबरी की प्रतिस्पर्धा में थे लेकिन आखिरी चार-पांच दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह का चुनाव अभियान चलाया और आक्रामकता दिखाई, उसने बाजी पलटने का काम किया। ऐसा लगता है कि कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री के लिए जिस प्रकार के अनुचित शब्दों का इस्तेमाल किया और उसे भाजपा ने जमकर भुनाया। फिर, मणिशंकर के पाकिस्तानी चैनल पर बातचीत वाले वीडियो वायरल हुए। इसने चुनाव की फिजां ही बदल दी। इसे चुनाव का बड़ा टर्निंग प्वाइंट भी कहा जा सकता है।

यहीं से माहौल में बदलाव आना शुरू हुआ और कांग्रेस की झोली में गिरने वाले वोट, वापस भाजपा के समर्थन में आ गिरे। लोगों ने आखिरी क्षणों में वोटों का इतना जबर्दस्त ध्रुवीकरण हुआ कि दोनों दलों को कुल मिलाकर 90 फीसदी से अधिक वोट मिले हैं। हालांकि दोनों के वोटों के बीच फासला काफी बड़ा है। दोनों के बीच करीब आठ फीसदी से अधिक का अंतर है। भाजपा इसके बावजूद 99 सीटों पर अटक गई। भले ही कांग्रेस ने 16 सीटें भाजपा से छीन ली हों लेकिन प्राप्त वोट प्रतिशत अंतर के आधार पर तो यही कह सकते हैं, भाजपा ने उसे करारी शिकस्त दी है। इसके अलावा एक अन्य बात यह भी ध्यान देने की है कि दोनों ही दलों में एक हजार तक मतों के अंतर से जीतने वाले उम्मीदवारों की संख्या करीब-करीब बराबर है।

एक हजार से पांच हजार और पांच हजार से 10 हजार मतों के अंतर से जीतने वालों की संख्या भी लगभग बराबर ही है। लेकिन, 20 हजार से अधिक मतों से जीतने वाले उम्मीदवारों की संख्या भाजपा में 57 है तो कांग्रेस में ऐसे उम्मीदवारों की संख्या एक दर्जन से अधिक नहीं हैं। अर्थात, जहां-जहां भाजपा जीती है, वहां उसे भारी संख्या में मत मिले हैं। गुजरात में ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस एक फीसदी से भी कम अंतर से भाजपा से पीछे रही लेकिन शहरी वोटों को वह अपनी ओर खींच पाने में कामयाब नहीं हो सकी। शहरों में स्थिति लगभग पिछले चुनाव जैसी ही रही है। गुजरात में दिग्गज कांग्रेसी नेता हारे हैं तो मंत्रियों की भी हार हुई है। इसके बावजूद ऐसा लगता है कि भाजपा एक बार फिर विजय रूपाणी को ही मुख्यमंत्री बनाएगी। इसमें कोई फेरबदल की गुंजाइश फिलहाल नहीं लगती।