24 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

‘गीता: कृष्ण की क्रान्त-दृष्टि’ पर प्रतिक्रियाएं

गीता में कृष्ण के उपदेश के माध्यम से कर्म, ज्ञान और भक्ति योग की गहन व्याख्या करते पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की आलेखमाला ‘शरीर ही ब्रह्मांड’ के आलेख ‘गीता : कृष्ण की क्रान्त-दृष्टि’ को प्रबुद्ध पाठकों ने ईश्वर से योग लगाने की प्रेरणा देने वाला बताया है।

2 min read
Google source verification
gulab_kothari.jpg

गीता में कृष्ण के उपदेश के माध्यम से कर्म, ज्ञान और भक्ति योग की गहन व्याख्या करते पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की आलेखमाला ‘शरीर ही ब्रह्मांड’ के आलेख ‘गीता : कृष्ण की क्रान्त-दृष्टि’ को प्रबुद्ध पाठकों ने ईश्वर से योग लगाने की प्रेरणा देने वाला बताया है। लेख कर्म, विकर्म और कुकर्म के अंतर को भी अच्छी तरह परिभाषित करते हुए विकर्म और कुकर्म को जिंदगी से दूर रखने की सीख देता है। पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से

मनुष्य के जीवन में कर्म प्रधान होता है। श्रीमद् भगवत गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने मनुष्य को कर्म करने के लिए प्रेरित किया है। गुलाब कोठारी ने अपने आलेख में इसी प्रेरणा का उल्लेख किया है। उन्होंने ब्रह्म और कर्म पर प्रकाश डाला है और कर्म व कुकर्म के अंतर के साथ फल और दुष्परिणाम को स्पष्ट किया है।
डॉ. डीके मिश्रा, सचिव रेडक्रॉस सोसायटी, सिंगरौली

कर्म और कुकर्म सदियों से मानव जानता है। इसके बावजूद वह कर्म से ज्यादा कुकर्म कर क्षणिक सुख के फेर में पड़ा रहता है। जबकि वह जानता है कि ये कुकर्म उसके दु:ख का कारण बनेंगे। कर्म करने वाले फल को यदि नकार रहे हैं तो वे स्वयं को ब्रह्मा से ऊपर मानने लगे हैं। यानि अब उन्हें दुखों और नर्क के बीच ही रहना होगा। ईश्वरीय कृपा से प्राप्त कर्म फल सही मायनों में वरदान या आशीर्वाद होता है। लेख में जिस प्रकार से कर्म, विकर्म और कुकर्म को परिभाषित किया गया है, वह ज्ञान चक्षुओं को खोलने के लिए पर्याप्त है। मनुष्य को चाहिए वे ईश्वर से योग लगाएं, कर्म करें और जो फल मिल रहा है उसे सहर्ष स्वीकार करें।
डॉ.सत्येन्द्र स्वरूप शास्त्री, ज्योतिषाचार्य, जबलपुर

आलेख में अन्न ही ब्रह्म के महत्त्व को सूक्ष्मता से प्रतिपादित किया गया है। अन्न के माध्यम से ही हमारे शरीर में ईश्वर का वास होता है। परंतु मानव अन्न का महत्त्व ही नहीं समझ रहा है। यह सत्य है कि मानव शरीर में जीव और ईश्वर आत्मा अन्न के माध्यम से ही आते हैं। जगत की 84 लाख योनियों में मानव योनि ही कर्मयोनि है।
राहुल कर्मा, खरगोन

व्यक्ति को अपने जीवन में काम करते रहना चाहिए। उसके बदले फल भगवान अपने आप अच्छा देते हैं। साथ ही जब आपको फल मिले तो उसको भी सहेज कर रखें तभी आपके अच्छे कर्म करने का फायदा है। सही है कि शास्त्रों के विरुद्ध कार्य करना विकर्म कहलाता है जिसको हम कुकर्म भी बोल सकते हैं।
गजेंद्र यादव, एडवोकेट, शिवपुरी

आज के लेख में मनुष्य की कामना अनुसार होने वाली गति को समझाया गया है। यह सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति के अंदर ब्रह्म है। कुकर्म नरक का द्वार है। अच्छे कर्म करने वाला व्यक्ति ब्रह्म में लीन हो जाता है। श्रीकृष्ण ने गीता में उपदेश में जीवन की संपूर्ण यात्रा को व्यक्त किया है। अन्न से जीवन का निर्माण होता है। लेकिन वह भी प्रकृति के नियंत्रण में रहता है।
डॉ. मनोज जैन, सचिव सुप्रयास, भिण्ड

यह भी पढ़ें : गीता: कृष्ण की क्रान्त-दृष्टि