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तीन तलाक कानून से मिली राहत, राजनीतिक रोटियां न सेंके इस फैसले पर

सदियों से पॉव पसारे यह कुरीति महिलाओं की जिन्दगी नर्क बना रही है। जिससे निजात पाने के लिये एक क़ानून ज़रूरी था ।जो अब पारित होगया है ।

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जयपुर

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Vikas Gupta

Sep 28, 2018

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सदियों से पॉव पसारे यह कुरीति महिलाओं की जिन्दगी नर्क बना रही है। जिससे निजात पाने के लिये एक क़ानून ज़रूरी था ।जो अब पारित होगया है ।

आखिर संसद ने तीन तलाक क़ानून को अमली जामा पहना कर मुस्लिम समाज के एक वर्ग की वाहवाही बटोर ली । मुस्लिम समाज में लम्बे समय से महिलायें तीन बार तलाक कह कर पुरुषों द्वारा तलाक देने की इस कुरीति से संत्रस्त थी । धीरे -धीरे उनकी व्यथा चरम पर पहुँच गयी थी । इस समाज का पुरूष वर्ग कभी भी कहीं भी किसी भी तरीक़े से बोलकर , लिख कर या ईमेल , वाटसअप किसी भी तरीक़े से तलाक तलाक तलाक कह कर उसे एक तरफ़ा फ़ैसला सुना कर अचानक अपनी जिन्दगी और घर से बेघर कर देता है । जो एक महिला के लिये भयावह स्थिति है ।

सदियों से पॉव पसारे यह कुरीति महिलाओं की जिन्दगी नर्क बना रही है। जिससे निजात पाने के लिये एक क़ानून ज़रूरी था ।जो अब पारित होगया है । इस क़ानून में तीन बार तलाक ,तलाक तलाक कह कर (किसी भी माध्यम ) से पुरूष द्वारा पत्नी को तलाक देने वाला पति अब अपराधी होगा। यह क़ानून इस वर्ष चुनावी वर्ष होने के कारण सता रूढ़ सरकार ने इस क़ानून को अमली जामा पहना दिया है । इस वर्ग की महिलाओं को एक वर्ग को ख़ुश रखने के लिये पहल की है। जिससे चुनाव के नतीजों पर क्या असर होता यह समय बतायेगा प्रथम दृष्टि तो यह ऐसा ही महसूस हो रहा है। विरोधी इस मुद्दे पर मुखर हैं, और अभी बहस और चर्चा मॉग को दोहरा रहे हैं ।

किन्तु तीन तलाक कहन पर ,एकतरफ़ा फ़ैसला सुना कर महिला को घर से बेघर कर उससे सब अधिकार छीन लेना सचमुच अपराध है। यह एक एेसेे समाज की कुरीति है जहाँ औरतों का शिक्षा प्रतिशत बहुत कम है और उससे भी कम है उनका काम क़ाज़ी होने का प्रतिशत , इस हालत में उम्र के किसी भी पड़ाव पर पति द्वारा तलाक की पीड़ा उस औरत के सिवाय कोई नही समझ सकता जिस पर ये गाज गिरती है।

अत: जरुरी है ऐसी कुरीति को दूर करने के लिये क़ानून बनाया जाना और लागू होना । उस दृष्टि से यह महत्वपूर्ण फ़ैसला और महत्वपूर्ण क़ानून है ।इस कानून से पीड़ित महिलाओं के साथ उनके माता -पिता निश्चित रुप से प्रसन्न होंगे जिनकी बेटियों के गले पर जीवन के किसी भी मोड़ पर तीन बार तलाक़ शब्द दोहराने से वो तलाक़शुदा होकर बेघर हो जाती। हैं । इस क़ानून पर बहुत से लोग एतराज़ कर रहे हैं और विपक्षी दल भरण पोषण , गुज़ारे भत्ते के साथ बच्चों की कस्टडी बात कह रहा है । पर यह दोनों बातें तो तलाक़ मान्य होने पर ही लागू होगी ना कि तीन तलाक़ कह कर तलाक़ देने वाले को जब आप अपराधी बना कर तीन साल की सज़ा दे देंगे तो बाकि दो मुद्दे रह कहॉ जायेंगे ।

पुरुष जेल में बीवी बच्चे घर मेंअब पुरुष एकमात्र कमाने वाला है तो परिवार के आर्थिक मुश्किलों का सामना तो करना पड़ेगा ।जो महिला को तलाक़ की स्थिति में भी करना पड़ता। इस क़ानून में अपराधी पर जुर्माना और कारावास दोनों की सज़ा मजिस्ट्रेट की मर्ज़ी से होगी ।पीड़िता गुज़ारेभत्ते की मॉग और बच्चों की कस्टडी की मॉग कर सकती हैं । इस बात का निर्णय भी मजिस्ट्रेट साहब के विवेक पर होगा । पर यह निर्णय कब होगा जब तलाक़ मान्य होगा ।अन्यथा तीन बार तलाक़ कह कर मेल से या वाटस अप से तलाक़ तलाक़ तलाक़ कहना तो अपराध होगा । अत:इन मुद्दों पर खुल कर चर्चा हो इन मुद्दों में समाज के पीडित वर्ग की महिलाओं कि राय हो ,उनके पक्ष को सघन का से सुना जाये ।

इस मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड विरोध कर रहे हैं ।विरोध में उनका कहना है कि परिवार तबाही के कगार पर आ जायेंगे । तो घर तो तबाही के कगार तो तभी आ गये जब आपने अपनी पत्नि को किसी बात पर या बिना बात के तलाक़ दे दिया । आपने एक महिला को उसके बसे बसाये घर से बेघर कर दिया । उसे उसके बच्चों से उसके हक़ों से महरूम कर दिया तो घर की तबाही तो पहले भी हो रही थी । पर उसका असर पुरूष पर नहीं सिर्फ़ महिला पर पड़ रहा था । पर घर तो तब भी तबाह हो ही रहे थे । पर तब तलाक़ देने वाला पुरूष इस पीड़ा में अदृश्य था ।अब उसे भी यह पीड़ा प्रत्यक्ष होगी । जब वो तीन बार तलाक़ कह कर एक तरफ़ा तलाक़ का निर्णय दे रहा है ।अब वो इस कथन से अपराधी क़रार दिया जायेगा ।
क्योंकि तलाक़ तो हिन्दू समाज में भी होते हैं । पर यहॉ तलाक़ महिला पुरूष दोनों दे सकते हैं ।उसके लिये प्रकिया है जो दोनों पर लागू होती है ।

अत:तीन तलाक़ पर जो क़ानून आया है उस पर व्यापक और विस्तृत चर्चा होनी चाहिये । चर्चा में जो मुद्दे आयें उन्हें पीड़िता को मध्य में रख कर देखा जाये । तलाक़ होने की स्थिति होने परबच्चों की कस्टडीऔर गुज़ारा भत्ता भी पक्षों की स्थितियों का अवलोकन करके किया जाये। इसके साथ इससे भी गम्भीर मुद्दे हलाला प्रथा भी विचार कर आगे बढ़ना चाहिये। अन्यथा एक समस्या से दूसरी समस्या होगी ।राजनेता किसी भी दल के हो अपनी रोटी सेकते रहेगें ।कभी कर्म के नाम पर , कभी धर्म के नाम , कभी आरक्षण , कभी तीन के तलाक़ नाम ।

रेणु जुनेजा