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न्याय की चौखट पर देर है लेकिन अंधेर नहीं

काले हिरण के शिकार के दोषी फिल्म स्टार सलमान खान को 20 साल बाद न्यायालय से दो काले हिरणों के मामले में फैसले से वन्यजीव प्रेमियों में खुशी

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जयपुर

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Vikas Gupta

Apr 06, 2018

salman-khan-blackbuck-case

salman khan in jodhpur

संगीता जैन

काले हिरण के शिकार के मामले में सलमान खान को पांच साल की सजा यह साबित करती है कि न्याय की चौखट पर देर है लेकिन अंधेर नहीं है । सजा देने का फैसला यह दर्शाता है कि चाहे आप सुपरस्टार हो या सामान्य नागरिक , आखिर विजय कानून की ही होती है । अपराधियों को इस मामले से सबक मिलेगा और भविष्य में शिकार करने से हिचकिचाएंगे । वन्यजीवों का शिकार रोकने के लिए न्यायिक प्रक्रिया को आसान बनाना होगा और इस तरह के फैसले के लिए अलग से कोर्ट बनाने चाहिए ताकि मूक वन्यजीवों को त्वरित न्याय मिल सके ।


काले हिरण के शिकार के दोषी फिल्म स्टार सलमान खान को 20 साल बाद न्यायालय से दो काले हिरणों के मामले में फैसले से वन्यजीव प्रेमियों में एक और खुशी का माहौल है वहीं दूसरी और काले हिरण के शिकार के मामले में सजा के फैसले से न्यायालय के प्रति विश्वास बढ़ा है। पांच अन्य आरोपी जिसमें सैफ अली खान , तब्बू, सोनाली, नीलम, दुष्यंत सिंह आदि को बरी के मामले में अपील की जानी चाहिए। मूल प्रश्न यह है कि हमारा पर्यावरण ,हमारे वन्य जीव-जन्तु ,हमारी पृथ्वी का क्या होगा ? ये नेता और अभिनेता तो आते-जाते रहेंगे , जैसे पुराने जमाने के राजे-रजवाड़े काल के गाल में तो समा गये ,लेकिन इस पृथ्वी ,पर्यावरण ,प्रकृति और लाखों सालों से सहेजी गई अमूल्य और अनुपम जीवों की कई प्रजातियों को सदा के लिए इस भारत भूमि से विलुप्त कर गये ।


पुराने जमाने में राजा-महाराजा अपने शौक में और खेल-खेल में हिरनों ,बाघों, तेदुओं ,चीतों आदि का इतना व्यापक स्तर पर शिकार (संहार) किये कि भारतवर्ष से उन कई अद्भुत और भारत के आन-बान और शान के प्रतीक "उन जीवों" का सामूहिक विलोपन हो गया (जिनमें भारत का प्रसिद्ध "चीता" भी है ,जिसे पिछली सदी में ही मारकर पूर्णतः खतम कर दिया गया)। पुराने जमाने के "महाराजा" शिकार करके उस मरे हुए जीव के सिर पर पैर रखकर अपनी बंदूक के साथ फोटो खिंचवाने और अपने आलिशान महलों के ड्राइंगरूम में उस नीरीह जीव के खाल में भुस भरवाकर सजाने में अपनी "शान" समझते थे। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि , पिछले 100 सालों में दुनिया में बाघों की कुल संख्या में लगभग 96 प्रतिशत की कमी आ चुकी है।


एक अनुमान के अनुसार सौ साल पहले दुनिया में एक लाख से ज्यादा बाघ थे , जो ताजा गणना में 3890 रह गए हैं । 2008 की गणना में देश में केवल 1,411 बाघ बचे थे हमें कुख्यात वन्य जीव तस्कर ,संसार चन्द, के बारे में एक दुखद किस्सा याद आता है ,जो पिछले दशकों में सरिस्का और रणथंभौर जैसे टाइगर रिजर्व से अनगिनत बाघों को मारकर उनके खाल,मांस और हड्डियों को तस्करी से लाखों-करोड़ों रूपये कमाया उससे जब इतनी संख्या में बाघों को पकड़ने और उन्हें मारकर बेचने का फार्मूला पूछा गया ,तब वह बताया था, कि वह यह काम वन्य प्रांत में स्थित गरीब लोगों को कुछ पैसे देकर यह काम बड़ी आसानी से करा लेता है । गांव के भूखों मरते लोग मात्र कुछ हजार रूपये में करोड़ों रूपये मूल्य के बाघ को जहर देकर मारकर ,उसके टुकड़े-टुकड़े कर ,उसके खाल, मांस, हड्डियों को लेकर हमारे घर पहुँचा जाते हैं । हम तो जंगल में जाते भी नहीं । ये है भारत की शासन व्यवस्था का एक विद्रूप चेहरा !