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आत्म-दर्शन : धर्म का मर्म

धर्म किसी के कहने पर नहीं, उत्साह के साथ होना चाहिए।

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आचार्य विद्यासागर

आचार्य विद्यासागर

आचार्य विद्यासागर

धर्म की बात करते हुए धर्म के मर्म को समझने वाले कम हैं। जिस प्रकार खाना खाते, पानी पीते, नींद लेते हुए भी श्वास लेते हैं, उसी प्रकार धर्म कार्य को अपने जीवन का अंग बनाना होगा। अधिक परिश्रम करना होगा। धर्म किसी के कहने पर नहीं, उत्साह के साथ होना चाहिए।

हुकुम या दबाव से नहीं, स्वेच्छा से धर्म को जीवन का अंग बना कर कार्य करना चाहिए। जिस प्रकार रोगी व्यक्ति शरीर के स्वास्थ्य के बारे में जानना चाहता है, उसी प्रकार धर्मात्मा को वास्तविक रहस्य के बारे में जानना चाहिए। इसके लिए शरीर भले ही गौण हो जाए, पर धर्म को गौण न करें।

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