
महेश कुमार एक पेंशनर हैं। एक दिन पेंशन बंद कराने का डर दिखाकर साइबर अपराधी ने उनकी बैंक डिटेल्स लीं और ओटीपी के जरिए खाते से पैसे निकाल लिए। ऐसे साइबर फ्रॉड कुछ वर्षों से लगातार हो रहे हैं। कोविड महामारी में मोबाइल बैंकिंग, ऑनलाइन शॉपिंग और सोशल मीडिया पर अधिक सक्रियता बढऩे के बाद लोग आसानी से साइबर अपराधियों के टारगेट पर आ रहे हैं। आज गंभीर स्थिति यह है कि देश में प्रत्येक 7 मिनट एक व्यक्ति साइबर फ्रॉड का शिकार हो रहा है। भारत में साइबर अपराधों को लेकर कानून तो मौजूद हैं, लेकिन वो साइबर अपराधियों में भय पैदा करते नजर नहीं आ रहे हैं। कानून के छोटे दायरे के चलते साइबर अपराधी बेखौफ अधिक नजर आ रहे हैं। बढ़ते साइबर अपराधों को लेकर यह समय की मांग है कि सरकार इन कानूनों को न केवल और सख्त बनाए, बल्कि साइबर अपराधियों को सजा भी हो। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले भी सतर्क और सावधान रहें तथा साइबर अपराधियों के जाल में ना फंसें।
अमूमन साइबर अपराधी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स, चैट रूम, पर्सनल वाई-फाई, नकली सॉफ्टवेयर, नकली वेबसाइट और फर्जी ई-मेल के जरिए लोगों को शिकार बनाते हैं। वो लोगों की निजी जानकारी हासिल कर उनका गलत तरीके से इस्तेमाल करते हैं। बैंक खातों में सेंध लगाते हैं तो निजी जानकारी उजागर करने का भय दिखाकर ब्लैकमेल करते हैं। कुछ मामलों में तो पीडि़त पक्ष को पता ही नहीं होता और वो ठगी का शिकार हो जाता है। पहले तो साइबर अपराधियों के निशाने पर बुजुर्ग और महिलाएं अधिक होती थीं, लेकिन अब वे युवाओं व आईटी प्रोफेशनल तक को भी निशाना बनाने लगे हैं।
सख्त प्रावधानों के बावजूद साइबर अपराधियों को सलाखों के पीछे डालने में कठिनाई होती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2020-2022 के बीच भारत के 28 राज्यों में साइबर अपराधों के 1.67 लाख मामले दर्ज किए गए, लेकिन केवल 2706 मामलों में ही सजा हुई, यानी केवल 1.6त्न अपराधी ही सलाखों के पीछे पहुंचे। हालांकि इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (आई4सी) ने साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए मेवात, जामताड़ा, अहमदाबाद, हैदराबाद, चंडीगढ़, विशाखापट्टनम और गुवाहाटी में सात ज्वाइंट साइबर कोआर्डिनेशन टीम्स गठित की हैं। आई4सी के तहत साइबर अपराध को लेकर हेल्पलाइन नंबर 1930 दिया हुआ है, जिस पर साइबर अपराध की सूचना दी जा सकती है। आई4सी सभी राज्यों के कंट्रोल रूम से जोडक़र साइबर फ्रॉड की सूरत में हाई प्रायोरिटी के मामलों की निगरानी भी करता है। आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले साल अप्रैल तक आई4सी को 7.40 लाख साइबर फ्रॉड की शिकायतें मिलीं।
वर्ष 2024 के शुरुआती चार माह में भारतीयों से 1750 करोड़ रुपए की ठगी हुई। वैसे, यूरोपीय देशों की तर्ज पर भारत सरकार डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण अधिनियम-2023 (डीपीडीपीए) का मसौदा लेकर आ चुकी है, जिसमें व्यक्तियों की सहमति लेने, डाटा प्रसंस्करण निकायों और अधिकारियों के कामकाज से संबंधित प्रावधान तय किए गए हैं। हालांकि, यह कानून कब लागू होगा, इसको लेकर स्पष्टता नहीं है। यदि आपको साइबर फ्रॉड से बचना है तो सबसे पहले इंटरनेट से जुड़े अपने डिवाइस को सुरक्षित रखना जरूरी है। साइबर अपराधों के प्रति जागरूक होना जरूरी है। सरकार बार-बार साइबर फ्रॉड को लेकर जागरूकता फैलाती है कि उसके या बैंकों या किसी अन्य द्वारा कोई जानकारी मोबाइल या कॉल के माध्यम से नहीं मांगी जाती है। बैंक कभी भी किसी से पिन या ओटीपी नहीं मांगता है। यह सामान्य सी बात हर एक व्यक्ति को अपने जहन में उतार लेनी चाहिए। अपना बैंक का पिन सदैव गोपनीय रखें। किसी भी बाहरी एपीके एप को डाउनलोड न करें। अपनी फाइनेंशियल या पर्सनल जानकारी को किसी के साथ साझा न करें।
समय की मांग है कि भारत सरकार समयबद्ध तरीके से साइबर अपराधियों को सजा दिलाए, ताकि उनके हौसले पस्त हों। केवल कानून बनाने से समस्या का समाधान नहीं होने वाला। जो कानून बन रहे हैं, उन्हें तत्काल लागू करना एवं विभिन्न सरकारी एजेंसियों के माध्यम से उनकी अनुपालना कराना भी सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, जिससे साइबर अपराध करने वालों के हौसले पस्त हों। साथ ही, एक जागरूक नागरिक होने के नाते हमारी भी जिम्मेदारी है कि हम सतर्क रहें और सुरक्षित रहें। जागरूकता ही साइबर अपराधियों के चंगुल से मुक्त करा सकती है।
Updated on:
07 Mar 2025 01:46 pm
Published on:
07 Mar 2025 01:45 pm
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