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रोबोट्स का बढ़ता दायरा, तकनीकी क्रांति या संभावित खतरा?

सागर विश्नोईएआइ एक्सपर्टरोबोट के इस्तेमाल को लेकर चिंताएं और आशंकाएं पहले से हैं लेकिन हाल ही चीन के होंगहोऊ शहर में एक रोबोट द्वारा दूसरी कंपनी के 12 रोबोट्स के कथित अपहरण के मामले ने दुनिया को चौंका दिया है। इसको लेकर एक बार फिर से चर्चा तेज हो गई है क्योंकि रोबोट खुद से […]

जयपुरDec 06, 2024 / 11:03 pm

Sanjeev Mathur


सागर विश्नोई
एआइ एक्सपर्ट
रोबोट के इस्तेमाल को लेकर चिंताएं और आशंकाएं पहले से हैं लेकिन हाल ही चीन के होंगहोऊ शहर में एक रोबोट द्वारा दूसरी कंपनी के 12 रोबोट्स के कथित अपहरण के मामले ने दुनिया को चौंका दिया है। इसको लेकर एक बार फिर से चर्चा तेज हो गई है क्योंकि रोबोट खुद से निर्णय लेने की क्षमता हासिल कर रहे हैं, जो कि चिंता का सबब बन रहा है। इस घटना में एक छोटा रोबोट शोरूम में दाखिल होता है और वहां बड़े रोबोट के साथ संवाद करता है। इस संवाद के जरिए वो उन रोबोट को काम बंद करने को मना लेता है। छोटे रोबोट की तरफ से बड़े रोबोट को कहा जाता है कि उसने काफी काम कर लिया है। ऐसे में उसे काम छोड़कर बाहर चले जाना चाहिए। यह पूरी घटना कैमरे में रिकॉर्ड हुई है।
ऐसा होने पर टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को लेकर एक्सपर्ट काफी परेशान हैं। यह पूरी संभावना है कि एआइ के इस्तेमाल में इंसानी दखल मौजूद है। क्योंकि रोबोट के इंटरनल ऑपरेटिंग सिस्टम तक पहुंचना और उसके बाद उनके विचार को बदलकर अपने साथ कर लेना, एक गंभीर मुद्दा है। रोबोट में एनएलपी यानी नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है। रोबोटिक टेक्नोलॉजी में इन दिनों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को इंटीग्रेट किया जा रहा है। इससे रोबोट को ऑटोमेशन की तरफ तेजी से शिफ्ट किया जा रहा है। मतलब रोबोट अपने दिमाग से ऑटोमेटिक मोड में काम करेंगे। अगर सिक्योरिटी रिस्क और चिंताओं की बात करें, तो साइबर सिक्योरिटी एक बड़ी चिंता बनी हुई है। एआइ सिस्टम जैसे ऑटोनॉमस व्हील्स और ड्रोन का एक्सेस हासिल कर सकते हैं। साथ ही डीपफेक, भ्रामक खबरें और बैंकिंग सर्विस को बाधित करने के मामले बढ़ सकते हैं। उदाहरण के तौर पर डिजिटल अरेस्ट को लिया जा सकता है।
ऐसे में सवाल उठता है कि उस वक्त क्या होगा, जब रोबोट इंटेंड प्रोग्रामिंग से अलग काम करने लगेंगे? कुछ समय पहले टेस्ला ऑटोपायलट अपने निर्णय लेने की क्षमता में कमी की वजह से क्रैश हो गया था। वही डीपफेक स्कैम वित्तीय नुकसान की वजह बन सकते हैं। रोबोटिक डेटा की मदद से रोबोट को अनियंत्रित किया जा सकता है। ऐसे में रोबोटिक डेटा की सुरक्षा जरूरी हो जाती है। इसके लिए रोबोटिक डेटा को एन्क्रिप्टेड होना चाहिए। साथ ही मल्टी-लेयर अथेंटिकेशन का इस्तेमाल होना चाहिए। एआइ ऑडिट का रेगुलेशन होना चाहिए। रोबोटिक डेटा के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए ग्लोबल एआइ गवर्नेंस फ्रेमवर्क बनाना चाहिए, जिससे एआइ के खतरों से बचाव किया जा सकता है। वही एआइ के यूज को लेकर एथिकल एआइ कमेटी बनाना चाहिए। क्योंकि ऐसी उम्मीद की जाती है कि साल 2030 तक टेस्ला और वेमो जैसी कंपनियां सेल्फ ड्राइविंग कार का भारत में विस्तार कर सकती है।
रोबोटिक्स में एआइ का मार्केट और एप्लीकेशन मार्केट साइज काफी तेजी से बढ़ रहा है। अगर साल 2023 के आंकड़ों की बात की जाए, तो रोबोटिक और एआइ मार्केट वैल्यू ग्लोबली करीब 165 बिलियन डॉलर का है। ऐसा माना जा रहा है कि साल 2030 तक इसका मार्केट साइज बढ़कर 1 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा। रोबोटिक्स इंडस्ट्रियल और ऑटोमेशन सिस्टम की तरफ बढ़ेगा। अगर रोबोटिक्स के उपयोग की बात की जाए, तो हेल्थकेयर में एआइ रोबोट जैसे दा विंची सर्जिकल सिस्टम जटिल से जटिल सर्जरी को करता है। वहीं अमेजन करीब 5,20,000 से ज्यादा ऑटोमेटिक रोबोट को अपनी वेयरहाउस की क्षमता बढ़ाने में इस्तेमाल करता है। वहीं एग्रीकल्चर की बात की जाए, तो जॉन डियरे का एआइ इनेबल्ड ट्रैक्टर भूमि की मिट्टी की जांच करता है। साथ ही फसल की पैदावार और बुवाई को बढ़ाने की सलाह देता है।
एलन मस्क के स्पेस एक्स, नासा और इसरो की तरफ से रोबोट का इस्तेमाल अंतरिक्ष में किया जाता रहा है। भारत में इंडिया-ड्रोन्स और लखपति दीदी काफी पॉपुलर हैं। एआइ के कई फायदे हो सकते हैं। गूगल डीपमाइंड के एआइ इस्तेमाल से एनर्जी की खपत 40 फीसदी कम हो सकती है। इससे कीमत में कमी हो सकती है। साथ ही कार्बन उत्सर्जन कम हो सकता है। एआइ की मदद से रियल टाइम सैटेलाइट डेटा की मदद से जंगल में लगने वाली आग को रोका जा सकता है। वही इसका नकरात्मक प्रभाव भी हो सकता है। एआइ साइबर अटैक की वजह बन सकती है। ऐसे में रोबोट की प्राइवेसी पॉलिसी पर ध्यान देना चाहिए। ऐसे में रोबोटिक में ह्यूमन कंट्रोल जरूरी हो जाता है। अगर बाकी रोबोट का एक्सेस मिल रहा है, तो उसे रेगुलेट करना चाहिए। एआइ एजेंट भी आपस में बिहेवियर मैन्युपुलेशन न कर सकें। इसके लिए कुछ गाइडलाइंस और कानून बनाने होंगे। अगर ऐसा नहीं होता है, तो इंसानी जगत के लिए खतरनाक हो सकता है।

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