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मनुष्य और प्रकृति के रिश्ते की कथा

हाथियों के बगैर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। द एलिफेंट व्हिस्परर्स सामान्य डॉक्यूमेंट्री की तरह सिर्फ जानकारी भर नहीं देती, यह जोड़ती है, दर्शकों को साथ लेकर चलती है। ऑस्कर में इसकी उपस्थिति प्रकृति के साथ हमारे भावनात्मक रिश्ते की उपस्थिति मानी जा सकती है।

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Patrika Desk

Mar 05, 2023

मनुष्य और प्रकृति के रिश्ते की कथा

मनुष्य और प्रकृति के रिश्ते की कथा

विनोद अनुपम
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कला समीक्षक
लॉन्स एंजिल्स के डाल्बी थिएटर में 12 मार्च को होने वाले ऑस्कर समारोह की प्रतीक्षा भारत को 'नाटू नाटू ...' के लिए तो रहेगी ही। फीचर डॉक्यूमेंट्री श्रेणी में 'आल द ब्रीथ्स' और डॉक्यूमेंट्री श्रेणी में 'द एलिफेंट व्हिस्परर्स' के लिए भी रहेगी, संयोग से दोनों ही फिल्में पर्यावरण को रेखांकित करती हैं। एक थोड़ी राजनीति के साथ, तो दूसरी संवेदना की जमीन पर। डॉक्यूमेंट्री के साथ भारत में अक्सर यह मुश्किल देखी जाती रही है कि भूगोल और राजनीति से इतर विषय अमूमन सोचे ही नहीं जाते, सोच भी लिए जाते तो राजनीति की छौंक जरूरी समझी जाती है। 'द एलिफेंट व्हिस्परर्र्सÓ जैसी फिल्म इस मायने में विशिष्ट है कि अपनी बात रखने के लिए यह संवेदना का सहारा लेती है, पूरे सौंदर्यबोध के साथ।
कथा है दक्षिण भारत के 'कट्टूनायक' लोगों की। कट्टूनायक का अर्थ है जंगल का राजा। ये वे लोग हैं, जो जितना जंगलों में बसे हैं, उससे कहीं अधिक जंगल इनके अंदर बसा है। आश्चर्य नहीं कि घने जंगलों के बीच भी ये नंगे पांव चलते हैं, जंगल को सम्मान देने का यह उनका तरीका है। वे कहते हैं कि जंगल से हम उतना ही लेते हैं, जितनी हमें जरूरत होती है। 'द एलिफेंट व्हिस्परर्र्स' बोम्मन, बेल्ली और रघु के बहाने प्रकृति और मनुष्य के भावनात्मक संबंधों का एक विस्तृत वितान रचती है। रघु हाथी का बच्चा है। बेल्ली कहती है कि ये भी हमारे जैसे हैं, बस बोल नहीं सकते। वह कहती है कि जब मैंने अपनी बच्ची को खोया था, इसी ने अपने सूंड से मेरे आंसू पोंछे थे।
एशिया के सबसे बड़े हाथी संरक्षण केंद्र, थेपक्काडु की पृष्ठभूमि में बनाई गई 41 मिनट की इस डॉक्यूमेंट्री में एक-एक दृश्य दर्शकों को प्रकृति से जोडऩे का दायित्व निभाता लगता है। हम जंगल की गहनता सिर्फ देखते नहीं हैं, उसे महसूस करते हैं। निर्देशक कार्तिकि गोंसाल्विस ने किसी इंटरव्यू में क हा कि इसे बनाने में पांच साल लगे। वाकई मौसम के साथ बदलता जंगल, बदलते पेड़ों के रंगों को देख कर अहसास होता है कि इत्मीनान से कार्तिकि ने यह फिल्म बनाई है। बोमन और बेल्ली हाथियों की देख-रेख करते हैं। उन्होंने यह काम अपने पूर्वजों से सीखा है। वे हाथी को गणेश का अवतार मानते हैं। उन्हें रघु की देखरेख की जवाबदेही मिलती है, जिसे कुत्तो ने घायल कर दिया है।
बोम्मन और बेल्ली रघु को अपने बच्चे की तरह बड़ा करते हैं। नहाने, खेलने, खिलाने, घंटी पहनाने जैसे छोटे दृश्यों में कार्तिकि उनके संबंधों की प्रगाढ़ता को पूरी संवेदना से रखती हैं। बोम्मन कहता है कि हाथी बुद्धिमान और भावुक होते हैं। रघु के साथ जंगल के बीच बोम्मन बैठा है, बारिश होने लगती है, दोनों घर लौटने लगते हैं, बोम्मन छाता खोलता है और रघु से कहता है कि मेरे छाते में आ जाओ और खुद किनारे हो जाता है। ऐसे दृश्य इतनी सहजता से आते हैं कि दर्शक भीगते चले जाते हैं। बेल्ली जंगल में बैठी है, उसे उदास देख रघु उसके करीब आना चाहता है। बेल्ली लाड़ से उसे डांटती है, 'मुझ पर बैठी तो चांटा पड़ेगा।' और हौले से थप्पड़ मारती है। फिल्म उम्मीद के साथ खत्म होती है। हाथियों के बगैर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। द एलिफेंट व्हिस्परर्स सामान्य डॉक्यूमेंट्री की तरह सिर्फ जानकारी भर नहीं देती, यह जोड़ती है, दर्शकों को साथ लेकर चलती है। ऑस्कर में इसकी उपस्थिति प्रकृति के साथ हमारे भावनात्मक रिश्ते की उपस्थिति मानी जा सकती है।