
अमेरिका की ओर से भारतीय निर्यात पर भारी टैरिफ लगाने के बाद निर्यातक समूहों का अनुमान है कि देश का 55 प्रतिशत तक निर्यात सीधे प्रभावित हो सकता है। इसने भारत को यह अहसास कराया कि केवल एक बड़े बाजार पर निर्भर रहना खतरनाक है। यही कारण है कि भारत सरकार अब क्षेत्रीय साझेदारियों और चीन सहित नए विकल्पों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा केवल शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन तक सीमित कूटनीतिक पड़ाव नहीं है, यह एक ऐसा मोड़ है जहां भारत-चीन संबंधों की तल्खी कम होने और सहयोग के रास्ते खुलने की संभावना है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग और मोदी की आमने-सामने मुलाकात से वैश्विक मंच पर एक नए समीकरण की झलक मिल सकती है।
सीमा विवाद, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा और कूटनीतिक अविश्वास ने अब तक दोनों देशों के रिश्तों को बोझिल बनाए रखा लेकिन अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों, विशेषकर ट्रंप टैरिफ ने भारत और चीन दोनों को नए विकल्प तलाशने पर मजबूर कर दिया है। यदि वार्ता ठोस नतीजे देती है तो एशिया की स्थिरता के साथ-साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी राहत मिल सकती है। यह भारत के लिए एक अवसर होगा कि वह आर्थिक वृद्धि को मजबूत कर चीन से संतुलित व्यापारिक लाभ ले सके।
भारत-चीन संबंधों की सबसे बड़ी चुनौती है कि यह भरोसे की कमी से ग्रस्त है। डोकलाम और गलवान की झड़पें दिखाती हैं कि मित्रता की भाषा और जमीनी हकीकत में भारी अंतर है। तनावपूर्ण रिश्तों से न केवल सुरक्षा वातावरण बिगड़ता है, बल्कि निवेश और व्यापार की गति भी रुक जाती है। यदि रिश्तों में सुधार हुआ तो सीमाई तनाव कम हो सकता है, अन्यथा भारत को दोहरी रणनीति अपनानी होगी। कूटनीतिक स्तर पर निरंतर वार्ता और सैन्य स्तर पर विश्वास निर्माण उपाय ही इस तनाव को संतुलित कर सकते हैं। इतिहास बताता है कि चीन ने बार-बार दोस्ती का हाथ बढ़ाकर बाद में विश्वास तोड़ा है। 1962 का युद्ध, सीमाई विवाद और आर्थिक मोर्चे पर आक्रामक रवैया इसकी मिसाल हैं। मोदी की इस यात्रा को लेकर उत्साह के साथ सतर्कता भी आवश्यक है। एलओसी पर हाल की घटनाएं याद दिलाती हैं कि चीन से व्यवहार करते समय भरोसा कम और सावधानी ज्यादा जरूरी है। मोदी की चीन यात्रा एक तरफ नई संभावनाओं के द्वार खोलती है तो चीन के पुराने रवैये से सावधान रहने की चेतावनी भी देती है।
इधर, ट्रंप की धमकियों और टैरिफ वार के बीच भारत ने पीछे हटने के बजाय सीधा जवाब दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से घोषणा कर आम जनता को कर सुधारों का ‘दिवाली गिफ्ट’ दिया। इन सुधारों का मकसद न केवल राहत देना है बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को नई गति देना भी है। यह संदेश स्पष्ट है कि भारत अमेरिकी दबाव में झुकने वाला नहीं है। कर व्यवस्था में सरलता और पारदर्शिता से निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा, घरेलू उत्पादन को बल मिलेगा और रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। विदेशी निवेशकों को भी संकेत दिया गया है कि भारत अब एक स्थिर और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। इससे भारत अपनी कूटनीतिक और आर्थिक स्थिति को अधिक मजबूत बना सकेगा। दीर्घकाल में ये सुधार भारत को न केवल वैश्विक आपूर्ति शृंखला का केंद्र बना सकते हैं बल्कि घरेलू उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता भी बढ़ा सकते हैं।
Published on:
31 Aug 2025 03:04 pm
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