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कार्यस्थल पर महिलाओं के विरुद्ध हिंसा: आहत और राहत

संयुक्त राष्ट्र ने महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार की हिंसा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए 25 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस के रूप में घोषित किया है। यह 16 दिवसीय सक्रियता अभियान की शुरुआत भी है, जिसका समापन अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस (10 दिसंबर) पर होता है।

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अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (25 नवंबर) पर विशेष :

कार्यस्थल केवल रोजगार का स्थान ही नहीं है, बल्कि वह स्थान भी है जहां हर कर्मचारी अपने लिए गरिमा, सुरक्षा और आत्मसम्मान की अपेक्षा रखता है। जब बात महिलाओं की सुरक्षा और आत्मसम्मान की हो तो यह माना जाता है कि इस बात का ध्यान रखना न केवल किसी संस्था या संगठन के विकास को बढ़ाता है, बल्कि महिलाओं में आत्मविश्वास, मानसिक स्वास्थ्य, मनोबल और विश्वास बढ़ाने में भी सहयोग देता है। कार्यस्थल सुरक्षित होने पर महिला भागीदारी और नेतृत्व बढ़ता है। यह केवल कानूनी दायित्व नहीं, नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी भी है।
इसके बावजूद कार्यस्थलों पर महिलाओं के विरुद्ध हिंसा, उत्पीडऩ और भेदभाव की घटनाएं लगातार सामने आती हैं। ये न केवल महिला कर्मचारियों के आत्मविश्वास और कॅरियर को प्रभावित करती हैं, बल्कि संस्था या संगठन की कार्य संस्कृति और उत्पादकता को भी कमजोर करती हैं। महिलाओं के लिए कार्यस्थल अक्सर मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक हिंसा का क्षेत्र बन जाता है। इसका एक बड़ा कारण है ‘मौन’। हिंसा केवल तब बढ़ती है जब लोग चुप रहते हैं। जब हिंसा को न रोका जाए, न टोका जाए, तो वह धीरे-धीरे ‘सामान्य’ होती जाती है। हाल ही में एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग 40त्न भारतीय महिलाएं कार्यस्थल पर पूर्वाग्रह या असंवेदनशील व्यवहार का सामना करती हैं।
महिलाओं के विरुद्ध हिंसा हमेशा प्रत्यक्ष नहीं होती। अक्सर यह धीरे-धीरे, असहज संकेतों के रूप में सामने आती है जिन्हें पहचानना आवश्यक है। इनमें अनचाही टिप्पणियां, चुटकुले या व्यक्तिगत टिप्पणी, लैंगिक भेदभाव के आधार पर काम का मूल्यांकन, अवसरों में असमानता, निरंतर ताने मारना, अपमान करना, दबाव बनाना, अनचाहा स्पर्श, अपमानजनक मैसेज या संदेश भेजना, कॉल पर अभद्रता, निकटता का दबाव, शिकायत करने पर धमकी, ट्रांसफर, प्रमोशन रोकना जैसे व्यवहार हिंसा के वे रूप हैं जो किसी महिला के आत्मविश्वास और कॅरियर दोनों पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं।
यद्यपि हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानूनी प्रावधान मौजूद हैं। इनमें पोश एक्ट (कार्यस्थल पर यौन उत्पीडऩ रोकथाम कानून) 2013 के अनुसार आंतरिक शिकायत समिति (आइसीसी) का गठन करना और शिकायत दर्ज करने पर गोपनीयता, समयबद्ध जांच और निष्पक्ष कार्रवाई करने का आवश्यक प्रावधान है और भारतीय न्याय संहिता के विभिन्न प्रावधान भी महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षा देते हैं, किन्तु ये तभी प्रभावी हो सकते हैं जब कोई संस्था या संगठन इन्हें ईमानदारी से लागू करे और कर्मचारी भी जागरूक रहें। इसके लिए जीरो टॉलरेंस की स्पष्ट और कठोर नीति का पालन किया जा सकता है। हर एक कर्मचारी को शुरुआत में ही यह बताना जरूरी है कि हिंसा किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। हर स्तर के कर्मचारियों के लिए जेंडर-संवेदनशीलता विषयक नियमित प्रशिक्षण का प्रावधान अनिवार्य होना चाहिए जिससे वे भेदभाव, उत्पीडऩ और असमानता सम्बन्धी व्यवहार को पहचान सकें। इसके साथ ही आतंरिक शिकायत समिति को सक्रिय और सुलभ बनाने के लिए समिति में प्रशिक्षित, संवेदनशील और पूरी तरह निष्पक्ष रहने वाले सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं।
हम अपने रिपोर्टिंग सिस्टम को सुरक्षित और सरल बना सकते हैं। गुमनाम शिकायत, हेल्पलाइन या सहज ऑनलाइन प्लेटफॉर्म सभी के लिए रिपोर्ट करना आसान बनाते हैं।
किसी भी संस्था या संगठन में वरिष्ठ अधिकारी ही कार्य संस्कृति का निर्धारण करते हैं और उसे बनाए रखते हैं, अत: उनका संवेदनशील होना और सही बात को स्वीकार करते हुए उसका समर्थन करना बदलाव लाने में बहुत योगदान देते हैं। इसी तरह कार्यस्थल पर सहकर्मियों की भूमिका महिलाओं के लिए कार्यस्थल को सुरक्षित बनाने में सहायक होती है, क्योंकि कार्यस्थल की संस्कृति केवल नियमों से नहीं बल्कि लोगों से बनती है। सहकर्मियों का दायित्व है कि जब भी किसी व्यक्ति को अनुचित टिप्पणी, मजाक या हरकत करते देखें तो उसे तुरंत टोकें, पीडि़ता की बात को संवेदनशीलता के साथ सुनें, उसे विश्वास दें। आवश्यकता होने पर गवाह बनें और रिपोर्टिंग के समय साथ खड़े रहें। याद रखें ‘यह मेरा मामला नहीं’ वाली सोच हिंसा को बढ़ाती है। संवेदनशीलता केवल महिलाओं के लिए नहीं, सबके लिए जरूरी है।
हमें यह समझना होगा कि हिंसा तब रुकती है जब हम सभी मिलकर उसे रोकते हैं, टोकते हैं और उसके खिलाफ खड़े होते हैं। एक सुरक्षित, सम्मानजनक और समान कार्यस्थल बनाना केवल कानून का पालन करना ही नहीं है बल्कि, सभ्य समाज की पहचान भी है। कार्यस्थल पर महिलाओं के विरुद्ध हिंसा केवल महिला का मुद्दा नहीं बल्कि, कार्यस्थल की स्वस्थ संस्कृति का संकेत भी है।
- डॉ. कैलाश बृजवासी, संस्थापक निदेशक, जतन संस्थान