
poor india
केवल खन्ना, वित्त सलाहकार
भारत सरकार के आधिकारिक बयान के मुताबिक वर्ष 2012 के दौरान भारत की 22 फीसदी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे थी। किंतु अब, भारत को तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था बताया जाता है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या अर्थव्यवस्था में सुधार का लाभ गरीबों को मिला है? या फिर अमीर और अमीर और गरीब और गरीब होते गए हैं?
विश्व बैंक की मानें तो भारत में गरीब लोगों की तादाद में तेजी से कमी आ रही है। बीते दशक में भारत और चीन के सकल घरेलू उत्पाद में तीव्र बढ़ोतरी के कारण लोगों की आय तेजी से बढ़ी, जिसने विशेषतौर पर भारत में गरीबी की स्थिति में काफी सुधार किया है।
विश्व बैंक में मार्टिन रेवलन के अप्रकाशित शोधपत्र में वर्ष 2005 में दो से 13 डॉलर रोजाना व्यय की क्षमता के लोगों को विकासशील देश में गरीबी रेखा के नीचे माना गया यानी दो से 13 डॉलर से अधिक व्यय करने वाले गरीबों की श्रेणी से बाहर समझे गए। गरीबी की आमतौर पर स्वीकार्य इस परिभाषा को पैमाना मानें तो वर्ष २०३० तक भारत, मध्यम आय वर्ग वालों का देश हो जाने वाला है। लेकिन इसके लिए निरंतर विकास, उत्पादन बढ़ाने के लिए निवेश और रोजगार सृजन जरूरी होगा। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत इसके लिए तैयार दिखाई पड़ता है?
गरीबी कम करने को लेकर हमारा सबसे नकारात्मक पहलू यह है कि यहां कुल श्रम में महिला श्रम की सहभागिता बेहद कम है। भारत में 65 फीसदी महिलाएं जिनके पास कॉलेज की डिग्री है, घरेलू स्तर पर ही कार्यशील हैं। यद्यपि विश्व बैंक समूह के कार्यकारी निदेशकों ने भारत को मध्य आय वर्ग में लाने के उद्देश्य से विशेष सहभागिता कार्यक्रम तैयार किया है। इसके तहत इंटरनेशनल बैंक फॉर कंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट, इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन और मल्टीलेट्रल इन्वेस्टमेंट गारंटी एजेंसी मिलकर 2022 तक भारत के विकास कार्यक्रम के लिए 25-30 अरब डॉलर उपलब्ध कराएंगे। इसके जरिए संसाधन विकास, जल व भूमि के उचित उपयोग, प्रतिस्पर्धा बढ़ाते हुए रोजगार सृजन के साथ, स्वास्थ्य, शिक्षा के क्षेत्र में कुशल और क्षमतावान लोगों को लाने की कोशिश की जाएगी।
उम्मीद है कि रोजगार सृजन से ग्रामीण और शहरी महिलाओं के लिए अवसर भी मौजूद रहेंगे। ऐसा होने पर ही देश गरीबी कम करने को लेकर वांछित लक्ष्य हासिल कर पाएगा।
आर्थिक मामलों के जानकार। कई पुस्तकों के लेखक।
बड़ी खबरें
View Allओपिनियन
ट्रेंडिंग
