
आपकी बात, धार्मिक और जातीय सौहार्द को बिगाडऩे के प्रयास क्यों किए जाते है?
राष्ट्रीय भावना का विकास जरूरी
जाति और धर्म के नाम पर सौहार्द बिगाडऩे का कार्य अंग्रेजों की फूट डालने की नीति से शुरू हुआ, जो आज भी जारी है। इससे न केवल लोगों में दूरी बढ़ी है, बल्कि यह हमारी राष्ट्रीय एकता व अखंडता को भी नुकसान पहुंचा रहा है। इसके कारण लोकतांत्रिक तथा धर्मनिरपेक्ष मूल्य शिथिल होते जा रहे हैं। देश में कुछ विघटनकारी तत्व राष्ट्रीय हितों की अपेक्षा धार्मिक और जातिगत विषयों को अधिक महत्त्व दे रहे हैं। सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के कारण राजनीतिक दल जनता को धर्म व जाति के नाम पर भड़काने का काम करते हैं। सरकार की उदासीनता के कारण सामान्य घटना भी साम्प्रदायिक दंगों का रूप ले लेती है। जातीय तथा धार्मिक कट्टरपन सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे के साथ देश की नीतियों, निर्णयों तथा प्रगति को प्रभावित करता है। नैतिक शिक्षा तथा राष्ट्रीयता की भावना के माध्यम से ही सभी समुदायों के बीच उदारवादी दृष्टिकोण विकसित किया जा सकता है।
-कनिष्क माथुर, जयपुर
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नेता बिगाड़ रहे हैं माहौल
हमारे देश में धर्म और जाति की जड़ें काफी गहरी है । राजनेता इसका दुरुपयोग कर देश में जाति और धर्म के नाम पर वैमनस्यता फैला कर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश करते है और सफल भी होते हंै। जाति और धर्म के नाम पर राजनीतिक नियुक्तियां, टिकट वितरण, सरकार द्वारा दबाव में आपराधिक प्रकरणों को वापस लेना इत्यादि अनेकानेक उदाहरण हैं, जो सामाजिक और धार्मिक सौहार्द को पनपने ही नहीं देते। जाति और धर्म के नाम पर वैमनस्यता फैलाने वालों के खिलाफ त्वरित कठोर कानूनी कार्रवाई आवश्यक है।
-विवान जाट, करौली
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नेताओं की सर्वार्थसिद्धि प्रमुख कारण
वर्तमान समय में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अपने राजनीतिक लाभ की पूर्ति के लिए धार्मिक और जातीय सौहार्द बिगाड़ने के प्रयास किए जाते हैं । योजनाबद्ध तरीके से भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया जाता है।
-डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
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देश का नुकसान
धार्मिक और जातीय सौहार्द को बिगाडऩे के प्रयास में कुछ लोगों के साथ कई नेता भी शामिल होते हैं। ये नेता वैमनस्यता फैलाकर अपनी राजनीति की रोटियां सेकने का प्रयास करते हैं और आम लोग उनके झांसे में आ जाते हैं। नेता अपने काम में सफल हो जाते हैं, लेकिन देश का नुकसान हो जाता है। आपसी सौहार्द बिगड़ जाता है।
सरिता प्रसाद, पटना, बिहार
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स्वविवेक का अभाव
आजकल के नेता धार्मिक जातीय भावनाओं को बिगाड़ कर अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं। वे धर्म के नाम पर फूट डालो राज करो की नीति अपनाने से भी पीछे नहीं हटते। ऐसे में यह हमारा स्वयं का दायित्व बनता है कि हम कच्चे कान के ना बनें। हमारे और हमारे देश के हित में क्या है, इसका निर्णय हमें स्वयं विवेक से लेना चाहिए। धर्म का अर्थ क्या है? सबसे पहले तो हमें इसकी सही परिभाषा का ज्ञान होना चाहिए , तभी हम जाति और धर्म के ऊपर उठकर एक स्वस्थ और सौहार्दपूर्ण वातावरण युक्त देश का निर्माण कर पाएंगे।
-एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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स्वार्थ की पूर्ति
कुछ लोग अपने स्वार्थ, अपनी छवि चमकाने तथा राजनीतिक लक्ष्य पाने के लिए सौहार्द पर चोट करते हैं। इसी से माहौल गरमाता है और इसकी आड़ में वे अपने स्वार्थ की पूर्ति करते हैं। वैसे देश के ज्यादातर लोग सहिष्णु हैं।
-संजय माकोड़े बड़ोरा, बैतूल
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अनेकता में एकता भारत की विशेषता
हमारे देश की संस्कृति अनेकता में एकता को प्रोत्साहित करती है, लेकिन हमारे नेता अपने स्वार्थ के लिए सौहार्द पर चोट करते हैं। सत्ता लोलुपता के लिए समय-समय पर धार्मिक और जातीय उन्माद फैलाकर इस देश की गंगा जमुनी तहजीब को समाप्त करने की कोशिश करते रहते हैं।
-महेश सक्सेना, भोपाल, मप्र
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वोट-बैंक के लिए
हमारे देश में सभी धर्मों व जातियों के लोग मिलजुलकर रहना चाहते हैं, परन्तु ओछी व घटिया राजनीति के कारण नेता वोट बैंक की राजनीति करते हैं। ये नेता आम जनता को धर्म व जाति के नाम पर भड़काते हैं। जनता उनके बहकावे मे आकर लड़ती है। जनता को नेताओं की कुटिल राजनीति समझ नहीं आती।
-लता अग्रवाल, चित्तौडग़ढ़
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सौहार्द पर चोट
हमारे देश में धर्म, जाति और संप्रदाय के नाम पर आपसी सौहार्द और शांति को बिगाड़ने के प्रयास किए जाते हैं। कुछ लोग अपने निजी और राजनीतिक स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए लोगों को जाति और धर्म के नाम पर भड़काते हैं। ये लोग आपसी सौहार्द को बिगाड़ कर राष्ट्रीय एकता को तोडऩे का प्रयास करते हैं।
-हरि सिंह राठौड़ टोकर, सेमारी, उदयपुर
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राजनीतिक हित
धार्मिक और जातीय सौहार्द को बिगाड़ने का प्रयास प्राय: अपने निजी स्वार्थों को साधने के लिए किया जाता है। धर्म एवं जातीयता एक भावनात्मक मुद्दा है। इसके आधार पर समाज का ध्रुवीकरण आसान है। किसी भी धर्म, सम्प्रदाय एवं जाति से नफरत की सीख नहीं मिलती। राजनीतिक हितों को साधने के लिए लोगों की भावनाओं को भड़काया जाता है।
-आर. के. यादव, नीमराणा, अलवर
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नकारात्मक सोच का परिणाम
अनेकता में एकता हमारे देश की और संविधान की खूबसूरती है। मुश्किल यह है कि भारत में राजनीतिक दलों का लक्ष्य मात्र सत्ता हासिल करना रह गया है, जो बिना वोट बैंक के संभव नहीं है। सकारात्मक राजनीति के दिन लद गए और नकारात्मक सोच की राजनीति हावी हो चुकी है। नेता आज भी अंग्रेजों की कूटनीति 'फूट डालो और राज करोÓ का अनुसरण कर रहे हैं।
-मुकेश भटनागर, वैशालीनगर, भिलाई
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जरूरी है राजनीति में सुधार
पिछले कुछ बरसों से नेताओं ने आपसी सौहार्द को बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई है। नेताओं ने सत्ता के लालच में और सत्ता के सहारे पैसा बनाने के चक्कर में समाज को धर्म और जातीय आधार पर बांट दिया है। नेताओं ने धर्म-जाति को आधार बना कर दल बना लिए। 'वोट-बैंक' की वजह से देश के सौहार्दपूर्ण जीवन में उथल पुथल मची हुई है। धार्मिक और जातीय विद्वेष के चलते हिंसा भी हो रही है। धार्मिक और जातीय सौहार्द को बनाए रखने के लिए राजनीति में सुधार जरूरी है।
-नरेश कानूनगो, बेंगलूरू, कर्नाटक
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जन जागरूकता जरूरी
विविधतापूर्ण संस्कृति वाले हमारे देश में अक्सर राजनीतिक लाभ लेने के लिए धार्मिक तथा जातीय सौहार्द की भेंट चढ़ा दी जाती है। राजनीतिक दल वोट बैंक के लिए समाज का धार्मिक तथा जातीय आधार पर ध्रुवीकरण करते हैं। चुनावों में लाभ उठाने के लिए इस तरह के मुद्दे जनता के बीच उठाते हैं। देश में धार्मिक तथा जातीय सौहार्द को बनाए रखने के लिए राजनीति के शुद्धीकरण के साथ-साथ जन जागरूकता भी अत्यावश्यक है।
-रवि शर्मा, गंगापुर सिटी
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वैमनस्य पैदा करने का प्रयास
कुछ अराजक तत्व समाज में सदैव सक्रिय रहते हैं। उनका मकसद आतंक फैलाना ही होता है। उन्हें अशांति में आनंद की अनुभूति होती है। ऐसे लोग विभिन्न जातियों, धर्मावलंबियों के बीच वैमनस्य पैदा कर सौहार्द बिगाडऩे के प्रयास करते हैं।
-सुभाष चन्द्र पारीक, जयपुर
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सावधान रहे जनता
नेता अपने वोट और स्वार्थ के लिए धार्मिक और जातीय सौहार्द बिगाड़ते हैं जिसका खमियाजा बेकसूर लोगों को भुगतना पड़ता है। जनता को इन लोगों के बहकावे में नहीं आना चाहिए।
-प्रकाश चन्द्र राव,,भीलवाड़ा
Published on:
11 Aug 2021 06:36 pm
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