
भारत में पब्लिक सेक्टर बैंक (पीएसबी) और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (सीपीएसई) आर्थिक विकास की रीढ़ माने जाते हैं। जहां पब्लिक सेक्टर बैंक आम जनता की जमा पूंजी को सुरक्षित रखते हैं, वहीं सीपीएसई ऊर्जा, बीमा, परिवहन, तेल, खनन, रक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में हैं। दोनों सामाजिक उत्तरदायित्व और राष्ट्रीय हित से भी सीधे-सीधे संबंधित हैं। दोनों की सुचारू, पारदर्शी और जवाबदेह कार्यप्रणाली सुनिश्चित करने के लिए इनके बोर्ड में स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति जरूरी है, लेकिन लंबे समय से इनमें स्वतंत्र निदेशकों की कमी गंभीर समस्या बनी हुई है। यह स्थिति न केवल इनके गवर्नेंस और पारदर्शिता को प्रभावित कर रही है, बल्कि जोखिम प्रबंधन और नीतिगत संतुलन पर भी नकारात्मक असर डाल रही है।
पीएसबी और सीपीएसई में स्वतंत्र निदेशक वे सदस्य होते हैं, जो इनके संचालन से सीधे जुड़े नहीं होते लेकिन वे बोर्ड में तटस्थ और निष्पक्ष दृष्टिकोण लाने के लिए होते हैं। इनकी कमी से बोर्ड में सरकारी या प्रबंधन पक्ष की पकड़ बढ़ जाती है, जिससे निर्णय कम पारदर्शी हो सकते हैं।
बैंकिंग सेक्टर की बात की जाए तो बैंकिंग रेगुलेशन और कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांतों के तहत यह अनिवार्य है कि पब्लिक सेक्टर बैंकों के बोर्ड में निश्चित अनुपात में स्वतंत्र निदेशक हों, ताकि निर्णय लेने में राजनीतिक दबाव और पक्षपात से बचा जा सके, लेकिन देश के अधिकांश पब्लिक सेक्टर बैंकों के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशकों की संख्या निर्धारित मानकों से कम है। कई बैंकों में वर्षों से ये पद खाली पड़े हैं। इसी वर्ष मार्च में वित्त मंत्रालय ने संसद में बताया था कि 12 प्रमुख पब्लिक सेक्टर बैंकों में लगभग 42 प्रतिशत निदेशक पद रिक्त हैं। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 190 बोर्ड स्तर की स्वीकृत स्थिति में से 75 से अधिक पद खाली हैं, जिसमें एमडी, कर्मचारी निदेशक और गैर-कार्यकारी पद शामिल हैं।
आरबीआइ और सेबी के गवर्नेंस मानकों में बोर्ड में न्यूनतम स्वतंत्र निदेशक होने चाहिए, लेकिन स्वतंत्र निदेशकों की कमी से कई नकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं। डायवर्स एक्सपीरियंस और निष्पक्ष दृष्टिकोण की कमी के कारण नीतिगत फैसलों में जोखिम बढ़ता है। स्वतंत्र निगरानी कमजोर होने से प्रबंधन के गलत फैसलों पर अंकुश लगाना मुश्किल हो जाता है।
पीएसबी को लेकर वर्ष 2014 की पुंची नायक समिति ने सुझाव दिया था कि चयन प्रक्रिया में देरी से बचने के लिए विजिलेंस क्लियरेंस सिर्फ शॉर्टलिस्टिंग तक सीमित होनी चाहिए, ताकि अधिक पद खाली न रहें। अप्रैल 2021 में आरबीआइ ने निर्देश दिए थे कि ऑडिट समितियों के दो-तिहाई सदस्य स्वतंत्र निदेशक हों और समिति अध्यक्ष कोई और हो, लेकिन रिक्तियों के कारण यह अनुपालन मुश्किल है।
सीपीएसई की ताकत और उनकी विश्वसनीयता काफी हद तक इस पर निर्भर करती है कि उनके बोर्ड कितने सक्षम, विविध और पारदर्शी हैं। दिसंबर 2024 तक सीपीएसई में कुल स्वतंत्र निदेशक पदों में से लगभग 86 प्रतिशत पद खाली थे यानी 750 स्वतंत्र या गैर-आधिकारिक निदेशक पदों में से 648 पदों पर कोई नियुक्ति नहीं थी। नियमों के अनुसार किसी भी सूचीबद्ध कंपनी के निदेशकों में कम से कम एक-तिहाई स्वतंत्र निदेशक होने आवश्यक हैं। कोई असूचीबद्ध सार्वजनिक कंपनी, यदि निर्धारित आकार से अधिक है तो उसमें कम से कम दो स्वतंत्र निदेशक होना अनिवार्य हैं।
देश में कुल 389 केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (सीपीएसई) हैं, जिनमें सहायक कंपनियां भी शामिल हैं। इनमें से 70 सीपीएसई सूचीबद्ध हैं। ये सूचीबद्ध सीपीएसई बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज की कुल बाजार पूंजीकरण का आठ प्रतिशत से अधिक हिस्सा रखते हैं। घरेलू और विदेशी निवेशक स्वतंत्र बोर्ड को भरोसेमंद मानते हैं। अगर स्वतंत्र निदेशक नहीं हैं तो निवेशकों को लगता है कि कंपनी में पेशेवर निगरानी और संतुलन का अभाव है, जिससे निवेश घट सकता है। आंकड़ों से स्पष्ट है कि पीएसबी व सीपीएसई की बोर्ड संरचना में गंभीर स्तर पर रिक्तता और असंतुलन है। इससे न केवल रेगुलेटरी कंप्लायंस में कमी आ रही है, बल्कि प्रबंधन में भी असंतुलन देखने को मिल रहा है। सरकार का ध्यान वर्तमान में बैंकों के मर्जर, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन और पुनर्पूंजीकरण जैसे मुद्दों पर अधिक है, जिससे इस विषय पर फोकस कम हो जाता है।
सीपीएसई में स्वतंत्र निदेशकों की कमी के पीछे भी कई कारण हैं। स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति सरकार के माध्यम से होती है, जिसमें मंत्रालय, पब्लिक एंटरप्राइजेज सलेक्शन बोर्ड (पीईएसबी) और कैबिनेट की स्वीकृति जैसी कई चरण शामिल होते हैं। इस बहुस्तरीय प्रक्रिया में समय अधिक लग जाता है, जिससे पद लंबे समय तक खाली रह जाते हैं। कई योग्य पेशेवर निजी कंपनियों में बेहतर अवसर और पैकेज पाकर सीपीएसई बोर्ड में आने में दिलचस्पी नहीं दिखाते।
इनकी कमी दूर करने के लिए केंद्र सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। एक स्वतंत्र सर्च-कमेटी बनाई जाए, जो योग्य उम्मीदवारों की पहचान करे और समयबद्ध तरीके से नियुक्ति पूरी करे। केंद्र सरकार को चयन एवं अनुमोदन की समय-सीमा तय करनी होगी। चयन के लिए ऑनलाइन आवेदन और मूल्यांकन प्रणाली अपनाई जा सकती है, जिससे प्रक्रिया तेज हो। योग्य उम्मीदवारों का एक राष्ट्रीय डाटाबेस तैयार किया जा सकता है। खाली पदों को अस्थायी रूप से योग्य पेशेवरों से भरा जा सकता है, ताकि बोर्ड का कामकाज प्रभावित न हो। उन्हें उचित मानदेय प्रदान किया जाए। सरकार की कोशिश यही होनी चाहिए कि पब्लिक सेक्टर बैंक और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में स्वतंत्र निदेशक हमेशा मौजूद रहें, ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे।
Published on:
03 Sept 2025 03:35 pm
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