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आपका हक : महिला सशक्तीकरण व अचल संपत्ति

भारत में विरासत में मिली संपत्ति के लिए दावा करना महिलाओं के लिए आसान नहीं है। एक महिला का उचित हिस्सा उसके दहेज तक सीमित माना जाता है।

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आभा सिंह

आभा सिंह

आभा सिंह

महिला आर्थिक सशक्तीकरण का मतलब है, महिलाएं आर्थिक संसाधनों और अपने अधिकारों को बढ़ाने के लिए ऐसे निर्णय लेें जो स्वयं, उनके परिवार और उनके समुदाय को लाभान्वित करेंं। भूमि स्वामित्व महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है। साथ ही सामाजिक और राजनीतिक लैंगिक असमानताओं को चुनौती देने की उनकी क्षमता को मजबूत करता है। जब महिलाओं की संपत्ति तक पहुंच होती है, तो व्यवसाय शुरू करने और उन्हें विकसित करने की उनकी क्षमता बढ़ती है। कृषि क्षेत्र की बात करें। यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि महिलाओं की कृषि कार्य में प्रमुख भागीदारी है। इसके बावजूद, उन्हें आधिकारिक रूप से किसानों के रूप में नहीं गिना जाता है, क्योंकि भारत में अधिकांश महिलाएं भूमि की मालिक नहीं हैं। भारत में विरासत में मिली संपत्ति के लिए दावा करना महिलाओं के लिए आसान नहीं है। एक महिला का उचित हिस्सा उसके दहेज तक सीमित माना जाता है। महिलाओं में कानूनी जागरूकता की कमी है। साथ ही कानूनों के क्रियान्वयन में भी खामियां हैं। फिर स्वाभाविक रूप से, भूमि पर नियंत्रण पुरुषों का होता है।

केरल के तिरुवनंतपुरम जिले में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि आर्थिक संसाधनों तक पहुंच और नियंत्रण, विशेष रूप से अचल संपत्ति जैसे भूमि और घर, महिलाओं को वैवाहिक हिंसा से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भूमि और घर दोनों के स्वामित्व वाली महिलाओं के साथ शारीरिक और मानसिक उत्पीडऩ के मामले कम होते हैं। जहां एक महिला के पास केवल जमीन या घर का स्वामित्व था, हिंसा की घटनाएं उन महिलाओं की तुलना में बहुत कम थी, जिनके पास घर या भूमि का स्वामित्व नहीं था। साफ है कि जो महिलाएं अचल संपत्ति की मालिक हंै, वे आर्थिक रूप से अधिक स्वतंत्र होती हैं और उनका उनका उत्पीडऩ भी आसान नहीं होता। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जिन महिलाओं के पास संपत्ति होती है, उनमें पर्याप्त आत्मविश्वास होता है और वे हिंसा का अधिक प्रभावी ढंग से जवाब दे सकती हैं। वे अपमानजनक सम्बंधों को छोड़ सकती हैं। इस प्रकार, संपत्ति का स्वामित्व न केवल एक निवारक के रूप में कार्य करता है, बल्कि महिलाओं को कड़े निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। हिंदू उत्तराधिकार कानून में हुआ संशोधन 9 सितंबर 2005 से लागू हुआ।

कानून कहता है कि कोई फर्क नहीं पड़ता है कि बेटी का जन्म इस तारीख से पहले हुआ है या बाद में, उसका पिता की संपत्ति में अपने भाई के बराबर ही हिस्सा होगा। वह संपत्ति चाहे पैतृक हो या फिर पिता की स्वअर्जित। इसने सभी राज्यों के लिए कृषि से सम्बंधित भेदभावपूर्ण खंड को हटा दिया। यह एक बड़ा कदम था। इसने महिलाओं को अपने भाइयों के साथ कृषि भूमि और विरासत में मिली संपत्ति का अधिकार दिया।

(लेखिका सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं)