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नए साल का युवा संकल्प: तोड़ो, जड़ता तोड़ो!

युवाशक्ति का संकल्प हो कि हम मनोविकारों को अपने आसपास भी नहीं फटकने दें। न ही किसी भी स्तर पर इन्हें स्वीकार या सहन करें। युवा शक्ति का मार्ग हो - उपदेश नहीं, आचरण। मंत्र हो - हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा। युवा संकल्प का कोई विकल्प नहीं।

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जयपुर

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Patrika Desk

Jan 01, 2023

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विजयदत्त श्रीधर
संस्थापक-संयोजक, सप्रे संग्रहालय, भोपाल
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नए साल पर नए संकल्प लेने का रिवाज है। कुछ नया करने का संकल्प। कुछ पुराना छोडऩे का संकल्प। उद्देश्य शुभ, रचनात्मक, सकारात्मक। भारत युवा देश है। युवाशक्ति ही बड़े संकल्प ले सकती है। युवजन ही कठिन संकल्प पूरे कर सकते हैं। अतएव, नए साल का युवा संकल्प होना चाहिए- तोड़ो, जड़ता तोड़ो! यह जड़ता लकीर के फकीर बने रहने की, निहित स्वार्थों के पालन पोषण की है। संभावनाओं से भरपूर भारत को अभीष्ट शिखर तक नहीं पहुंचा पाने की है। विकृत मान्यताओं के जड़ें जमाने की है।

पहला संकल्प: ईश्वर के सम्मुख सभी समान होते हैं। कोई छोटा नहीं, कोई बड़ा नहीं। तब धर्मस्थलों में दर्शन-पूजन-अर्चन में अति विशिष्ट जन (वीआइपी) का विकार क्यों? क्या कोई धर्मशास्त्र वीआइपी को विशिष्ट दर्जा या मान्यता देता है? क्या भगवान वीआइपी के लिए समदर्शी होने का अपना मूल महात्म्य खोते हैं? युवाशक्ति का पहला संकल्प यही होना चाहिए कि जो लोग ईश्वर तक के लिए वीआइपी बने रहना चाहते हैं, उनको अस्वीकार करें। ऐसे वीआइपी का सम्मान न करें।

दूसरा संकल्प: धर्म निरपेक्षता ने नकारात्मक जड़ता का रूप ले लिया है। लोकतंत्र का संकल्प है सभी धर्मों का समादर, सभी को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता। इसे व्यावहारिक अर्थ में लेना चाहिए। घर की चौखट के भीतर, और धार्मिक स्थल की चारदीवारी में कौन किसकी पूजा करता है? कैसे करता है? किस ग्रंथ का पठन-पाठन करता है? इसकी निर्बाध स्वतंत्रता, स्वछंदता नहीं। चारदीवारी के बाहर एक ही धर्म - मानवता। एक ही कर्त्तव्य - राष्ट्रीयता। एक ही निष्ठा - भारतीयता।

तीसरा संकल्प: राष्ट्र निर्माण, व्यक्ति निर्माण, भविष्य निर्माण का आधार है शिक्षा। संपूर्ण राष्ट्र में समान शिक्षा व्यवस्था। शिक्षण संस्थानों का स्वरूप विभेदकारी स्वीकार्य नहीं। बहुसंख्यक शिक्षा, अल्पसंख्यक शिक्षा जैसा कुछ नहीं। एक अच्छा नागरिक और अच्छा मनुष्य बनाने वाली शिक्षा। ज्ञान विज्ञान और संस्कृति के सम्यक समावेश वाली शिक्षा ही श्रेयस्कर है। धर्मों और समाजों की अपनी सीख देने का काम घर-परिवार का। धार्मिक स्थलों और आयोजनों में उनके सीख-सिखावन की जवाबदारी। जनता के खजाने पर यह बोझ हरगिज न हो।

चौथा संकल्प: देश के जनप्रतिनिधियों में सबसे विकट बीमारी है वीआइपी अहंकार की। दुनिया के और किसी लोकतंत्र में ऐसी व्याधि नहीं पाई जाती। निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को उनके कार्यकाल में पर्याप्त मानदेय (वेतन नहीं), सुविधाएं व भत्ते अवश्य मिलने चाहिए। पर्याप्त मिलने चाहिए। ‘ट्रांजिट हॉस्टल’ के समान रहवास भी मिलना चाहिए। पर कार्यकाल पूरा होते ही विशेष दर्जा समेत यह सब बंद हो जाना चाहिए। भारत जैसे समस्याग्रस्त देश में जहां आम जनता के लिए उन्नत जीवनयापन को सुनिश्चित नहीं किया जा सका है, किसी भी वर्ग को ‘अमरबेल’ नहीं बनने दिया जा सकता। पेंशन जैसी सुविधा भी गरीबों-बेरोजगारों का अपमान है। कार्यकाल समाप्त होने पर उन्हें सामान्य नागरिक जीवन में लौटना चाहिए।

पांचवां संकल्प: युवा पीढ़ी की सबसे बड़ी समस्या है रोजगार। खाली पदों पर भर्ती की सुविचारित योजना का अभाव, कानूनी दांवपेंच का मकड़जाल और सेवानिवृत्ति के बाद भी किसी न किसी बहाने से पदों पर टिके रहने की प्रवृत्ति शिक्षित, योग्य युवाओं के सपनों को लूट रही है। संगठित युवा शक्ति इस अकर्मण्यताजन्य जड़ता को तोड़ेगी। सकारात्मक वातावरण व आश्वस्तिकारी सोच के सृजन का अनुष्ठान करेगी।

छठा संकल्प: युवाशक्ति प्रत्येक स्तर पर समय की पाबंदी सुनिश्चित करने के लिए अभियान चलाएगी। न स्वयं कहीं विलंब से जाएंगे और न किसी ऐसे प्रसंग का सहभागी बनेंगे जहां समय का महत्त्व न समझा जाता हो। चाहे शिक्षण संस्थाएं हों या कार्यालय, कर्मचारी हों या अधिकारी, चाहे विधायक-सांसद हों या मंत्री या कोई और; सभी को समय का पाबंद बनाने के लिए सत्याग्रह, सराहना व बहिष्कार का अवलंबन लेंगे।

सातवां संकल्प: लोकतंत्र का बुनियादी कर्त्तव्य है मतदान। युवाशक्ति शत-प्रतिशत मतदान के लिए जागरूकता अभियान चलाएगी। हर मतदाता मतदान अवश्य करे और सुयोग्य प्रत्याशी को ही चुने। आपराधिक मानसिकता, भ्रष्ट आचरण और दलबदल करने वालों को वोट नहीं देने का संकल्प जाग्रत करने में सहयोगी बने।

आठवां संकल्प: पिछले वर्षों में हमने बहुत कुछ खोया है। बहुत कुछ भुलाया है। मसलन, टेलीविजन ने घरों में प्रवेश किया तो किताबें पढऩे की आदत छूट गई। वाहन सुविधा बढ़ी तो पैदल चलना छूट गया। मोबाइल फोन आए तो आपसी बातचीत छूट गई। एसएमएस चले तो चिट्ठी लिखना और केलकुलेटर आए तो गणित भुला बैठे। कूलर-एयरकंडीशनर लगे तो आंगन में हवा खाना बंद हो गया। शहरों की दौड़ लगी तो गांव की माटी की सोंधी सुगंध बिसरा बैठे। क्रेडिट कार्डों ने पैसों का मूल्य भुला दिया। इवेंट ने उत्सवों का आनंद छीन लिया। युवाशक्ति का संकल्प हो कि इन मानवीय संवेदना विरोधी वृत्तियों का परित्याग कर वापस सामाजिकता की ज्योति प्रज्वलित करेंगे।

नौवां संकल्प: कोरोना काल में दिल्ली के बाशिंदों ने आकाश में सितारे देखे। नदियां, तालाब, झरने स्वच्छ पानी से लबालब देखे। आंगन में, बगीचों में चिड़ियों की चहचहाहट गूंजी। हवा भी साफ बहने लगी। यानी मनुष्यों और मशीनों का हस्तक्षेप घटा तो प्रदूषण कम हो गया। पर्यावरण सुधर गया। युवाशक्ति का संकल्प होगा कि पर्यावरण विरोधी गतिविधियों को न्यूनतम आवश्यकता के स्तर तक सीमित करने का अभियान चलाएंगे।

दसवां संकल्प: युवा शक्ति बदजुबानी, बदगुमानी, बदमिजाजी, बदतमीजी, बदसलूकी, बदचलनी, बदनीयती, बदइंतजामी को बढ़ावा देने वालों का बहिष्कार करेगी। युवाशक्ति का संकल्प होगा कि हम इन मनोविकारों को अपने आसपास भी नहीं फटकने दें। न ही किसी भी स्तर पर इन्हें स्वीकार या सहन करें। युवा शक्ति का मार्ग होगा- उपदेश नहीं, आचरण। मंत्र होगा- हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा। युवा संकल्प का कोई विकल्प नहीं होगा।