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14 साल की उम्र में ही सभी को हैरान कर चुका था तीरंदाज अतानुदास

जब वे साल 2007 में अपनी पहली चैंपियनशिप खेलने जबलपुर गए। वहां उन्होंने सब जूनियर चैंपियन जीतकर सबका ध्यान खींचा।

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नई दिल्ली। अतानु दास ने अपनी प्रतिभा के साक्ष्य बहुत कम उम्र में ही दे दिए थे। उनकी प्रतिभा तभी पहचान ली गई थी, जब वे साल 2007 में अपनी पहली चैंपियनशिप खेलने जबलपुर गए। वहां उन्होंने सब जूनियर चैंपियन जीतकर सबका ध्यान खींचा। कॅरिअर का पहला अंतरराष्ट्रीय टूर 2009 में हुआ। तब अतानुदास यूथ वल्र्ड चैंपियनशिप खेलने तुर्की गए थे। इसके बाद यूथ ओलंपिक गेम्स खेलने साल 2010 में सिंगापुर गए। महज 14 वर्ष की उम्र में तीरंदाजी की शुरुआत करने वाले अतानु आज सिर्फ 25 साल के हैं और इतनी कम उम्र में ही रियो ओलंपिक में अपनी प्रतिभा दिखा चुके अतानु ने तीरंदाजी के क्षेत्र में कई बड़ी उपलब्धियां अपने नाम कर ली हैं।

कोरियाई कोच से सीखी तीरंदाजी
अतानुदास का जन्म 5 अप्रैल 1992 को कोलकाता में हुआ। टिकट संग्रहण के शौकीन अतानु अभी कोलकाता में ही रहते हैं। वहां वे भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड के कर्मचारी हैं। बहुत कम उम्र मेें ही अतानु ने तीरंदाजी की शुरुआत की थी। 14 साल की उम्र में उन्होंने कोलकाता आर्चरी क्लब से तीरंदाजी की कोचिंग लेनी शुरू की। वहां उनके कोच मिथुन दा थे। उसके बाद अतानु टाटा आर्चरी अकेडमी चले गए, जहां उन्होंने धर्मेंद्र तिवारी और कोरियाई कोच लिम चाए वोंग से तीरंदाजी का प्रशिक्षण लिया। 2006 में उन्होंने प्रोफेशनल तीरंदाजी की शुरुआत की थी।

16 की उम्र में शुरू किया अपना अंतरराष्ट्रीय करियर
2008 की बात है। तब अतानु 16 साल के थे। उसी समय उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी में करियर की शुरुआत की। एक तीरंदाज के रूप में उन्हें पहचान दो साल बाद मिली। 2010 में वे 33वीं जूनियर नेशनल चैंपियनशिप की बॉयज टीम में शामिल थे। इसमें शानदार प्रदर्शन करते हुए उन्होंने गोल्ड मेडल हासिल किया। एक साल बाद मैंस टीम में शामिल होकर उन्होंने 2011 की वल्र्ड आर्चरी चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। इसमें उनकी टीम ने सिल्वर मेडल जीता। 2016 में उन्होंने दो मैडल मिक्स्ड टीम में और एक ब्रॉन्ज मेडल टीम इवेंट में जीता।

अपने से अनुभवी तीरंदाजों को पछाड़ रहे
आर्चरी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने नेशनल ट्रायल्स के बाद अतानु का रियो ओलंपिक खेलों-2016 के लिए टीम में चयन किया। अतानु सीधे हाथ के तीरंदाज हैं। उनके तीर की लंबाई 28 इंच और ड्रॉ का वजन 37.5 एलबीएस है। अतानु उन प्रतिभावान युवा खिलाडिय़ों में से हैं, जो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खेलों में अपने से अधिक अनुभवी प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ रहे हैं। 2016 के रियो ओलंपिक्स में वे अकेले भारतीय थे, जिसने मैंस सिंगल कैटेगरी में तीरंदाजी की।

कई प्रतियोगिताओं में जीते मेडल
बांग्लादेश में आयोजित एशियन ग्रैंड प्रिक्स की रीकर्व मेंस इंडीविजुअल प्रतियोगिता में अतानु ने 2011 में गोल्ड मेडल जीता। इसी में उन्होंने रीकर्व मिक्स्ड टीम में भी गोल्ड मेडल जीता। इसी साल उन्होंने पोलैंड में आयोजित वल्र्ड आर्चरी यूथ चैंपियनशिप की जूनियर मेंस टीम में गोल्ड मेडल जीता। 2013 में उन्होंने दीपिका कुमारी के साथ कोलंबिया में आयोजित वल्र्ड कप में ब्रान्ज मेडल जीता था। थाईलैंड में आयोजित एशियन आर्चरी ग्रैंड प्रिक्स में भी अपनी टीम में ब्रॉन्ज मेडल जीता था। 2014 में पोलैंड में हुए आर्चरी वल्र्ड कप में रिकर्व मिक्स्ड टीम में सिल्वर मेडल जीता।

होटल चलाने वाले पिता के बेटेे हैं अतानु
अतानु के पिता का पुरी में होटल हैं। वे हमेशा चाहते थे कि उनका बेटा खेल के क्षेत्र में जाए। उन्होंने हमेशा अतानु को प्रोत्साहित किया और उन्हें तीरंदाजी के क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए प्रेरित करते रहे। उनके परिवार में कोई भी व्यक्ति कभी खेल के क्षेत्र में नहीं गया था। इस वजह से अतानु के माता-पिता चाहते थे कि कम से कम उनका बेटा खेलों की दुनिया में नाम रोशन करे। तीरंदाजी में अतानु की रुचि जागी और उन्होंने इस क्षेत्र में सफलता हासिल करनी शुरू कर दी।

इसलिए चुना तीरंदाजी को
खेलों के शौकीन अतानुदास ने तीरंदाजी ही क्यों चुनी, इसके पीछे भी एक वजह है। अतानु का कहते हैं कि तीरंदाजी ऐसा खेल है, जिसमें हार-जीत पूरी तरह एक व्यक्ति के प्रदर्शन पर निर्भर है। इसमें खिलाड़ी को कभी साथ के खिलाड़ी की कमी या लापरवाही की वजह से नहीं हारना पड़ता। तीरंदाजी में सफलता पाना व्यक्तिगत अनुशासन की बात है।