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पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे मिल्खा सिंह, पंडित नेहरू के कहने पर गए और ‘फ्लाइंग’ सिख बनकर लौटे

जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो मिल्खा सिंह का परिवार भी उस त्रासदी का शिकार हो गया। इसमें मिल्खा सिंह के माता-पिता और आठ भाई-बहन मारे गए। मिल्खा सिंह ने यह खौफनाक मंजर अपनी आंखों से देखा था, जिसे वह कभी नहीं भुला पाए।

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Milkha singh and Pd Nehru

Milkha singh and Pd Nehru

दुनिया में भारत का परचम लहराने वाले महान धावक मिल्खा सिंह कोरोना से जंग हार गए। महान फर्राटा धावक मिल्खा सिंह कोरोना संक्रमण से जूझ रहे थे। शुक्रवार को चंडीगढ़ में उन्होंने अंतिम सांस ली। इससे पहले कोरोना संक्रमण की वजह से ही हाल ही मिल्खा सिंह की पत्नी और भारतीय वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल कौर का भी निधन हो गया था। 91 वर्षीय मिल्खा सिंह के परिवार में बेटे गोल्फर जीव मिल्खा सिेंह और तीन बेटियां हैं। मिल्खा सिंह को 'फ्लाइंग सिख' के नाम से भी जाना जाता था। उनको यह नाम पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने दिया था। इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है, जिसका जिक्र मिल्खा सिंह ने एक इंटरव्यू के दौरान किया था।

पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे मिल्खा सिंह
मिल्खा सिंह को वर्ष 1960 में पाकिस्तान की इंटरनेशनल एथलीट प्रतियोगिता में भाग लेने का न्योता मिला था। मिल्खा सिंह ने इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि वह इस प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेना चाहते थे, क्योंकि वे बंटवारे के गम को भुला नहीं पा रहे थे और इसी वजह से वह पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। हालांकि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के समझाने के बाद वह पाकिस्तान जाने को राजी हो गए थे। उस वक्त पाकिस्तान के सबसे तेज धावक अब्दुल खालिक की वहां तूती बोलती थी।

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मिल्खा की रफ्तार के आगे नहीं टिक सके अब्दुल खालिक
जब पाकिस्तान में प्रतियोगिता शुरू हुई तो वहां मौजूद लगभग 60000 पाकिस्तानी फैन्स अब्दुल खालिक का जोश बढ़ा रहे थे। हालांकि मिल्खा सिंह ने उस प्रतियोगिता में ऐसा कमाल किया कि सब देखते रह गए और मिल्खा सिंह की रफ्तार के सामने पाकिस्तानी धावक अब्दुल खालिक टिक नहीं पाए। मिल्खा सिंह की जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें 'फ्लाइंग सिख' का नाम दिया।

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ट्रेन की बोगी में छिपकर पहुंचे थे दिल्ली
मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर, 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान) में किसान परिवार में हुआ था। मिल्खा सिंह के 14 भाई—बहन थे, लेकिन जब भारत—पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो मिल्खा सिंह का परिवार भी उस त्रासदी का शिकार हो गया। इसमें मिल्खा सिंह के माता—पिता और आठ भाई—बहन मारे गए। मिल्खा सिंह ने यह खौफनाक मंजर अपनी आंखों से देखा था, जिसे वह कभी नहीं भुला पाए। इसके बाद मिल्खा सिंह किसी तरह से पाकिस्तान से ट्रेन की महिला बोगी में छिपकर दिल्ली पहुंचे थे।