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पाकिस्तान की संसद क्यों अटकी ? क्या इमरान और शहबाज के ‘हितों का टकराव’ लोकतंत्र की सबसे बड़ी बाधा है ?

Conflict of Interest in Pakistan Politics: पाकिस्तान की संसद इमरान खान और शहबाज शरीफ के बीच बढ़ते हित टकराव और उच्च व निम्न भेद के कारण फैसले लेने में असमर्थ है।

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भारत

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MI Zahir

Sep 02, 2025

Conflict of Interest in Pakistan Politics

इमरान खान और शहबाज शरीफ। (फोटो: ANI.)

Conflict of Interest in Pakistan Politics: पाकिस्तान में आतंकवाद, हिंसा और बाढ़ के बावजूद देश की संसद इन दिनों निर्णय लेने में ज्यों की त्यों अटकी हुई है। शहबाज शरीफ सरकार का कहना है कि इमरान समर्थक लोग देश में हालात खराब कर रहे हैं और अराजकता फैला रहे हैं, तो इमरान खान समर्थकों का कहना है कि शहबाज सरकार अपनी नाकामी का ठीकरा जेल में बंद इमरान खान पर फोड़ रही है।इसके पीछे सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है देश के दो प्रमुख नेताओं इमरान खान और शहबाज शरीफ (Imran Shahbaz conflict) के बीच गहरे राजनीतिक और व्यावसायिक हितों का टकराव (political deadlock Pakistan)। इस टकराव ने लोकतंत्र की नींव (Pakistan democracy crisis) को कमजोर कर दिया है और उच्च और निम्न भेद की वजह से आम जनता का संसद पर से भरोसा कम होता जा रहा है। लोक नीति विशेषज्ञ आमिर जहांगीर के अनुसार, जब सत्ता में बैठे नेता और सांसद अपने निजी फायदे के लिए फैसले करते हैं, तो लोकतंत्र की सच्चाई खत्म हो जाती है। इमरान खान और शहबाज शरीफ के बीच सत्ता की होड़ के कारण नीतिगत निर्णयों में विलंब होता है और संसदीय कार्य बाधित हो जाते हैं। आमिर जहांगीर ने बताया कि इस स्थिति ने ना केवल राजनीतिक अस्थिरता बढ़ाई है, बल्कि भ्रष्टाचार और पक्षपात को भी बढ़ावा दिया है।

व्यवसायी समूह का क्लब समझने लगे

विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की संसद में ‘हितों का टकराव’ सिर्फ राजनीतिक स्तर पर नहीं, बल्कि आर्थिक और मीडिया क्षेत्रों में भी गहरा है। इमरान खान और शहबाज शरीफ जैसे बड़े नेताओं के परिवारों और करीबी कारोबारियों के हित जुड़े होने से संसद के फैसलों में पारदर्शिता कम हो गई है। यही कारण है कि आम लोग संसद को एक छोटे ‘कार्टेल’ या व्यवसायी समूह का क्लब समझने लगे हैं।

जनता के विश्वास को ठेस पहुंची

जहांगीर ने आगे कहा कि संसद की स्थायी समितियां, जिनका काम नीतियों और परियोजनाओं का निरीक्षण करना होता है, वे भी अक्सर इन हितों की चपेट में आ जाती हैं। हाल ही में एक डोनर फंडेड प्रोजेक्ट में ऐसी ही समस्या सामने आई, जिसने जनता के विश्वास को और चोट पहुंचाई है।

नेताओं के कारण संसद से विश्वास डगमगाया

सन 2020 के चीनी संकट के उदाहरण से भी बात साफ होती है कि कैसे राजनीतिक परिवार सब्सिडी और विशेष लाभ लेकर आम जनता को नुकसान पहुंचाते हैं। उस समय भी इमरान खान और शहबाज शरीफ के राजनीतिक गठजोड़ में शामिल कई लोग संसदीय समितियों के सदस्य थे, जिन्होंने नियामकीय नीतियों को प्रभावित किया।

सांसदों का मीडिया चैनलों में निवेश

इधर मीडिया के क्षेत्र में भी राजनीतिक हितों का असर साफ देखा जा सकता है। जहांगीर के अनुसार, संसद में ऐसे सांसद हैं जिनका सीधे तौर पर मीडिया चैनलों में निवेश है। वे खुद को प्रभावित करने वाले नियमों का मसौदा तैयार करने में शामिल रहते हैं, जिससे मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाती है।

कई नेताओं के व्यावसायिक हित संसद के फैसलों में शामिल

पाकिस्तान के संविधान और चुनाव कानून में ऐसी कई व्यवस्थाएं हैं, जो सरकारी कर्मचारियों के लिए हितों के टकराव को रोकती हैं, लेकिन सांसदों और उनके परिवारों के बड़े व्यापारों पर कोई प्रभावी रोक नहीं है। इस कमी का फायदा उठाते हुए कई नेता अपने व्यावसायिक हितों को संसद के फैसलों में शामिल करते हैं।

संसद मजबूत कानून बनाए : जहांगीर

आमिर जहांगीर कहते हैं कि यदि पाकिस्तान ने इस ‘हितों के टकराव’ को खत्म नहीं किया, तो लोकतंत्र और जनता का भरोसा दोनों कमजोर होते रहेंगे। इसके लिए संसद को मजबूत कानून बनाकर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।

लोकतंत्र की सबसे बड़ी बाधा

बहरहाल इमरान खान और शहबाज शरीफ के बीच गहरे हितों के टकराव ने पाकिस्तान की संसद को जमे हुए हालात में ला दिया है। यह समस्या न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी लोकतंत्र की सबसे बड़ी बाधा बनती जा रही है।