
Pali News: आइएलडी बीमारी, जो इतनी घातक है कि रोगी की जान ले लेती है। फेफड़ों का ट्रांसप्लांट करना इसका एक उपचार है, लेकिन वह भी बहुत कठिन व जटिल है। इस बीमारी से पहले 50 साल से अधिक के लोग ग्रस्त होते थे, लेकिन अब 40 व उससे कम उम्र के लोग इसकी चपेट में आ रहे है। इसका बड़ा कारण प्रदूषण है। यह बीमारी होने के बाद व्यक्ति चंद कदम भी नहीं चल पाता है। उसकी सांस फूलने लगती है। कई बार तो रोगी घर के छोटे-मोटे कार्य करने के लायक भी नहीं रहता है।
इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (आइएलडी), जिसे पल्मोनरी फाइब्रोसिस या इंटरस्टिशियल न्यूमोनिया भी कहते है। सरल भाषा में यह कह सकते हैं कि इस बीमारी में फेफड़ों में छोटी हवा की थैलियों (एल्वियोली) के आसपास सूजन और निशान वाली स्थिति बन जाती है। फेफड़ों की कोशिकाओं के बीच एक सख्त व मोटी परत बन जाती है। इससे ऑक्सीजन फेफड़े से रक्त में व रक्त से कार्बनडाई ऑक्साइड फेफड़े में पहुंचना बंद हो जाती है या उसमें बाधा आती है।
आइएलडी होने पर इसका उपचार प्रभावी नहीं है। इस बीमारी में चिकित्सक स्टेरॉइड देते हैं। इसके अलावा एंटी फाइब्रोटीन व इ्यूनो सप्रेशिव दवा दी जाती है। ऑक्सीजन थैरेपी व लंग ट्रासंप्लांट भी इसका उपचार है।
रुमेटीइड गठिया
स्केलेरोडर्मा
डर्माटोमायोसिटिस और पॉलीमायोसिटिस
मिश्रित संयोजी ऊतक रोग
स्जोग्रेन सिंड्रोम
सारकॉइडोसिस
कीमोथैरेपी दवाएं: कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए बनाई गई दवाएं, जैसे मेथोट्रेसेट (ओट्रेसअप, ट्रेसॉल, अन्य) और साइलोफॉस्फेमाइड, फेफड़ों के ऊतकों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं।
हृदय की दवाएं: अनियमित दिल की धड़कनों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ दवाएं, जैसे एमियोडेरोन (नेसटेरोन, पेसरोन) या प्रोप्रानोलोल (इंडरल, इनोप्रान), फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
कुछ एंटीबायोटिस: नाइट्रोफ्यूरेंटोइन (मैक्रोबिड, मैक्रोडेंटिन, अन्य) और एथमयूटोल (माय्बुटोल) आदि।
सूजन-रोधी दवाएं: कुछ सूजनरोधी दवाएं, जैसे कि रीटक्सिमैब (रिटसन) या सल्फासालजीन (एजुलल्फडिइन) आदि।
आइएलडी बीमारी का पता 50-60 प्रतिशत मरीजों में पहले नहीं लगता है। वे चिकित्सक के पास पहुंचते हैं तो सामान्य रूप से उनका उपचार टीबी के तहत कर दिया जाता है। इस बीमारी का पता एक्सरे, सीटी स्केन, स्पारोमेट्री,छह मिनट के वॉक टेस्ट, ब्रोकोस्कोपी, लंग्स बायोस्पी से लगता है। आइएलडी में सबसे अधिक पल्मोनरी फ्राइबोसीस नाम की बीमारी मिलती है। इसके अलावा हाइपर सेंसीटीवी न्यूमोनाइटीस, साइकोइडोसीस,
ऑयूपेशनल लंग डिजीज और कनेक्टिव टिश्यू डिजीज समस्याएं होती हैं।
Published on:
29 Sept 2024 10:50 am
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