
पाली/पत्रिका। Chess Players : एक तरफ ऑनलाइन गेमिंग की लत बच्चों में बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ पाली शहर में एक परिवार चेस यानि शतरंज का ‘ग्रेंड मास्टर’ है। दादा, बेटा और पोता शतरंज के खिलाड़ी है। वे कई प्रतियोगिताओं में उम्दा प्रदर्शन कर चुके हैं। दुर्गा कॉलोनी निवासी रामेश्वरलाल कुमावत वर्ष 1975 में कमठे का काम करते थे। आसपास के शिक्षकों और बुजुर्गों को शतरंज खेलते देखा तो उन्होंने भी शतरंज सीख लिया। बाद में बच्चों और पोतों को भी सिखा दिया। उनके छह बेटे, पांच पोते और छह पोतियां हैं। सभी चेस के खिलाड़ी हैं। कुमावत और उनके बेटे-पोते व पोतियों ने शतरंज की कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और विजेता बने। घर में जब भी फुर्सत में होते हैं, शतरंज की बिसात बिछ जाती है। बहुएं भी शतरंज खेलती हैं।
बच्चों में ऑनलाइन चेस का क्रेज
इन दिनों बच्चे भी ऑनलाइन प्लेटफार्म पर चेस की बिसात बिछा रहे हैं। हालांकि, इससे बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित हो रहा है। ऑनलाइन गेम से बच्चों का बौद्धिक विकास रुक जाता है। बच्चों में चेस खेलने को लेकर रुझान बढ़ रहा है लेकिन कोरोना काल के बाद से ऑनलाइन टूर्नामेंट का ट्रेंड भी बढ़ा है। ऑनलाइन डिस्ट्रिक्ट से लेकर स्टेट और नेशनल लेवल तक के टूर्नामेंट आयोजित हो चुके हैं। जहां ऑनलाइन खिलाड़ी शतरंज की बिसातें बिछ़ा रहे हैं।
पाली में शतरंज के और भी कई खिलाड़ी
पाली में शतरंज खेल की और भी प्रतिभाएं हैं। स्टेट सीनियर शतरंज प्रतियोगिता में पाली के तीन खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था। जिसमें से संजय सालेचा और चंद्रशेखर सोनी पहले एफआइडीइ रेटिंग प्लेयर के रूप में उभरे हैं। पाली के दर्शिल गांधी, सोजत के नंदकिशोर पाराशर और सुनील शर्मा भी शतरंज के खिलाड़ी हैं।
ऑनलाइन गेम और गैंबलिंग नौनिहालों के बचपन को निगल रहा है। पहले जहां बड़े बुजुर्गों के पास बैठकर घंटों तक चेस सीखने की ललक रहती थी। वो अब न जाने कहां खो गई है। अब ऑनलाइन का ट्रेंड बढ़ा है, लेकिन ये नुकसानदायक है। वैसे बात यदि शतरंज की करूं तो इसमें कोई संदेह नहीं कि इससे बौद्धिक विकास तेजी से होता है। आमजन को ऑनलाइन ये बजाय घर में चेसबोर्ड पर शतरंज खेलना चाहिए।- सुनील कुमार जैन, लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड विजेता, पाली
Published on:
20 Jul 2023 11:22 am
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