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मानवीय मूल्यों के रक्षक थे राव सीहाजी राठौड़, व्यक्तित्व पर शोध की जरूरत

-सीहाजी पर शोध की बताई जरूरत-बलिदान दिवस पर वेबिनार का आयोजन

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पाली

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Suresh Hemnani

Oct 11, 2020

मानवीय मूल्यों के रक्षक थे राव सीहाजी राठौड़, व्यक्तित्व पर शोध की जरूरत

मानवीय मूल्यों के रक्षक थे राव सीहाजी राठौड़, व्यक्तित्व पर शोध की जरूरत

पाली। भारत के इतिहास में राठौड़ वंश की गौरवशाली परम्परा रही है। राव सीहाजी राठौड़ उसी परम्परा के वाहक है। वे मानवीय मूल्यों के रक्षक, प्रजापालक और पराक्रमी थे। धर्म में उनकी गहरी आस्था थी। उन्होंने शोषित और पीडि़त के लिए युद्ध किए और अपने प्राणों का बलिदान दिया। विडम्बना यह है कि ऐसे वीर पुरुष को लेकर तत्कालीन कालखण्ड के इतिहास में काफी कम प्रकाश डाला गया है। इसलिए सीहाजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध की जरूरत है। यह कहना है कि इतिहासविदों का। राव सीहाजी राठौड़ इतिहास संरक्षण समिति एवं रणबांकुरे समरसता मंच के बैनर तले सीहाजी के बलिदान दिवस पर शुक्रवार को वेबिनार का आयोजन किया गया।

सर्वप्रथम तृप्ती पाण्डेय ने सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का आगाज किया। तत्पश्चात मीरा कन्या महाविद्यालय में इतिहास विभाग के सहायक आचार्य डॉ. सुदर्शनसिंह राठौड़ ने कहा कि सीहाजी के बारे में ख्यातों में प्रसंग मिलते हैं, लेकिन कालखण्ड को लेकर तथ्यों में भिन्नता है। इतिहास को क्रमानुसार समझते हुए तिथियों को सही करने की जरूरत है। इतिहासकार विजयकृष्ण नाहर ने कहा कि भारत का यह कालखण्ड स्वर्णिम था, जिसमें कई महान सम्राट हुए। ऐसे समय को इतिहास में भुला देना दुखद है। राठौड़ों के इतिहास पर गहराई और विशालता से चिंतन और अध्ययन की आवश्यकता है।

प्रधानाचार्य विजयसिंह माली ने कहा कि मारवाड़ में सीहाजी, चन्द्रसेन, पाबूजी, मीरां इत्यादि समूचे देश का गौरव है। सीहाजी मानवीय मूल्यों के रक्षक थे। सहायक आचार्य डॉ. आइदानसिंह राजपुरोहित ने सीहाजी ने पाली में शासन किया था इसके कुछ प्रमाण मिलते हैं, लेकिन विस्तृत लेखन की आवश्यकता है। इतिहासकार पूनाराम पटेल कहते हैं कि सीहाजी पर शोध किया जाना चाहिए। तत्कालीन कालखण्ड में उनके वृत्तांत अल्प मिलते हैं।

प्रधानाचार्य नरेन्द्रसिंह आढ़ा का कहना है कि यह दुखद बात है कि मारवाड़ में राठौड़वंश के संस्थापक और प्रजापालक रहे सीहाजी को इतिहास में कम स्थान मिला। वरिष्ठ अध्यापक गौरवसिंह घाणेराव ने कहा कि वे पराक्रमी और शूरवीर थे। इससे पूर्व व्याख्याता कल्याणसिंह टेवाली ने स्वागत उद्बोधन दिया। संयोजन पवन पांडेय तथा आभार वीरेन्द्रपालसिंह देणोक ने जताया।