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चने की फसल में बढ़ रहा ‘उकठा’ का प्रकोप

फसल चक्रण के लिए किसानों को सरसों की खेती की सलाह, कृषि वैज्ञानिकों ने सरसों की फसल का किया अवलोकन

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Suresh Kumar Mishra

Jan 04, 2017

panna news

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पन्ना
कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. बीएस. किरार, एवं वैज्ञानिक डॉ. आरके. जायसवाल द्वारा गॉव-तारा में सरसों प्रदर्र्शनों का अवलोकन किया गया। किसान रावेन्द्र कुशवाहा, प्यारेलाल कुशवाहा, राजकुमार, मुरलीधर आदि के साथ भ्रमण किया गया। भ्रमण के दौरान किसानों को सरसों की उन्नत किस्म आरवीएम-2 की विशेषताओं की जानकारी दी।

उत्पादन पर सीधा प्रभाव
डॉ. किरार ने बताया, किस्म आरवीएम-2 की विशेषता है कि 120 दिन की उत्पादन में क्षमता 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा इसमें तेल की मात्रा 39 प्रतिशत है। उन्होंने कहा कि पन्ना में अधिकाशत: किसान गेहूं, चना, मसूर आदि फसलों में सरसों मिश्रित फसल के रूप में बुवाई करते है और उनका मानना है कि हमें सरसों अतिरिक्त उत्पादन के रूप में प्राप्त हो जाती है। जबकि ऐसा होता नहीं है। चना, मसूर फसल में लगने वाले कीट-व्याधि अलग है और सरसों के अलग है । ऐसी स्थिति में नियंत्रण करने में कठिनाई एवं व्यय अधिक करना पड़ता है । साथ ही सरसों मुख्य फसल (चना, मसूर, गेहॅू) की बढ़वार एवं शाखाओं को प्रभावित करती है जिसका उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

चना का उत्पादन कम हो रहा
सरसों असिंचित क्षेत्रों में कम व्यय में अच्छी खेती है। और चना की फसलों में उकठा (उगरा) रोग दिनों दिन बढ़ता जा रहा है जिससे चना का उत्पादन कम हो रहा है । ऐसी स्थिति में फसल चक्र के अन्तर्गत सरसों की खेती लाभकारी होगी। सरसों की फसल देरी से बोने पर माहू की समस्या आती है । जिसे एकबार कीटनाशक (डायमिथोएट या इमिडाक्लोप्रिड) दवा का छिड़काव करने से नियंत्रण हो जाती है। डॉ. जायसवाल ने प्रदर्शन के लाभान्वित किसानों को सलाह दी इसके उत्पादन को आने गॉव एवं अन्य गॉवों के किसानों तक फैलाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं।

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