
Panna Diamond
Panna Diamond : बेशकीमती हीरों के लिए दुनियाभर में पहचान रखने वाले पन्ना जिले को शुक्रवार सुबह बड़ी उपलब्धि मिली। करीब दो साल से लंबित जीआइ टैग का इंतजार खत्म हो गया। कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट, डिजाइन एंड ट्रेडमार्क, चेन्नई ने पन्ना के हीरों को जीआइ टैग देने की आधिकारिक घोषणा जारी कर दी। इसी के साथ जीआइ टेंग पाने वाला पन्ना का हीरा प्रदेश का 21वां उत्पाद बन गया। भारत में जीआइ टैग प्रणाली 2003 में लागू हुई थी। तब से अब तक मध्य प्रदेश के कुल 21 उत्पादों को यह मान्यता मिल चुकी है, जिनमें नवीनतम नाम पन्ना डायमंड का दर्ज किया गया है। पन्ना के हीरे बहुत खास हैं... इसके जरिए कई परिवारों की किस्मत रातोंरात बदली हैं। आम मजदूर रातोंरात लखपति बन गए हैं।
इस उपलब्धि से पन्ना के हीरों को दुनियाभर में मजबूत पहचान मिलेगी। यह प्रमाणित ब्रांड के रूप में उभरेगा। इसका सीधा लाभ प्रदेश को होगा। हमारे हीरे की दुनियाभर में नकल नहीं की जा सकेगी। पन्ना की खदानों से तीन श्रेणी के हीरे निकलते हैं। जैम क्वालिटी (सफेद हीरा), ऑफ कलर (मैला रंग) इंडस्ट्रियल क्वालिटी (कोका-कोला रंग)। इनकी क्वालिटी और कीमत का निर्धारण हीरा कार्यालय के विशेषज्ञ पारखियोंज्द्वारा चमक और संरचना के आधार पर किया जाता है।
पन्ना के हीरों में ग्रीन स्टिंट यानी प्राकृतिक हरापन विशेष रूप से पाया जाता है। यह समय के साथ और गहरा होकर हीरे को और आकर्षक बनाता है। इन हीरों में स्पष्ट कार्बन लाइन होती है, जिसे आधार बनाकर व्यापारी बेहतरीन डिजाइन तैयार करते हैं। यही विशिष्टताएं इन्हें देश-दुनिया के अन्य हीरों से अलग पहचान देती हैं और जीआइ टैग मिलने की मुख्य वजह भी यही है।
कानूनी सुरक्षा मिलेगी, अब कोई भी अन्य जगह का हीरा पन्ना डायमंड नाम से नहीं बेचा जा सकेगा। किसानों व मजदूरों को आर्थिक फायदा होगा, मांग बढ़ेगी, कीमत मजबूत होगी और स्थानीय खदानों से जुड़े मजदूर किसानों को सीधे आर्थिक लाभ मिलेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिष्ठा बढ़ेगी, पन्ना के हीरों की पहचान विश्व स्तर पर मजबूत होगी, जिससे निर्यात और व्यापार में वृद्धि की संभावना बढ़ेगी। स्थानीय उद्योग को प्रोत्साहन मिलेगा। खनन, कटिंग-पॉलिश उद्योग तथा हीरा व्यापार को नई ऊर्जा मिलेगी।
जीआइ टैग किसी उत्पाद की भौगोलिक विशिष्टता का कानूनी प्रमाण है। यह प्रमाणित करता है कि उत्पाद एक खास क्षेत्र से ही प्राप्त होता है और उसकी गुणवत्ता, पारंपरिक पद्धति व विशेषताएं उसी क्षेत्र से जुड़ी होती हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में जिला प्रशासन को केन्द्रीय वाणिज्य मंत्रालय से संबद्ध ह्यूमन वेलफेयर सोसाइटी, वाराणसी ने तकनीकी सहयोग दिया। इनके माध्यम से आवेदन की तैयारियों से लेकर दस्तावेजीकरण तक पूरा समर्थन दिया गया।
अवधि के तत्कालीन कलेक्टर संजय मिश्रा ने 2023 में जीआई टैग के लिए आवेदन किया, जिसे 7 जून 2023 को मंजूरी मिली। इसके बाद जांच, परीक्षण और आपत्ति-निराकरण की लंबी प्रक्रिया पूरी की गई।
रजिस्ट्रार द्वारा जर्नल में आवेदन प्रकाशित करने के बाद यदि कोई आपत्ति नहीं आती है, तो अंतिम चरण में आवेदक को भौगोलिक संकेत का पंजीकृत प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। इसी प्रक्रिया में पन्ना के हीरों ने सभी मानकों पर सफलता पाई। जनसुनवाई में हीरा अधिकारी ने वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और भौगोलिक साक्ष्य देकर साबित किया कि पन्ना के हीरे मौलिक, अद्वितीय और संरचनात्मक रूप से विशिष्ट हैं।
Published on:
15 Nov 2025 12:33 pm
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