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आज भी बिकती हैं बेटियां और जाना पड़ता है परदेस : 50 साल बाद भी प्रासंगिक हैं भिखारी ठाकुर

भिखारी ठाकुर जयंती - 18 दिसंबर - जिन समस्याओं पर भिखारी की रचनाएं केन्द्रित हैं, वो आज भी कायम हैं, इससे पता चलता है कि बिहारी समाज में विकास और सुधार की गति बहुत धीमी है।

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भिखारी ठाकुर जयंती - 18 दिसंबर

भिखारी ठाकुर जयंती - 18 दिसंबर

भिखारी ठाकुर का जन्म : 18 दिसंबर 1887 - निधन : 10 जुलाई 1971
पटना। भोजपुरी समाज के सबसे प्रसिद्ध कलाकार पद्मश्री भिखारी ठाकुर की रचनाएं आज भी पुरानी नहीं पड़ी हैं। उन्होंने जिन समस्याओं पर गीत लिखे, नाच प्रस्तुत किए, वो आज भी बरकरार हैं। बिहार से आज भी पलायन नहीं रुका है। बिहारी युवा आज भी बड़ी संख्या में रोजगार के लिए बाहर जाने को मजबूर हैं।

भूखे मरो या परदेस जाओ
भारत की आजादी से पहले भी बिहार में रोजगार का अभाव था और सूखा-बाढ़ इत्यादि समस्याएं बड़ी संख्या में युवाओं को पलायन के लिए मजबूर करती थीं। इतिहास गवाह है, बिहार से गए मजदूरों ने दुनिया में अनेक नगर और देश तक बसा दिए। आज भी बिहार के युवा देश के कोने-कोने में मिल जाते हैं। फिजी, मॉरीशस इत्यादि देशों में भोजपुरी बोलने वालों की बड़ी संख्या है। करोड़ों ऐसे लोग हैं, जो बिहार से बाहर गए, तो फिर नहीं लौटे। ऐसे लोगों की आवाज भिखारी अपने समय में भी थे और आज भी हैं।
उनकी रचना की एक बानगी देखिए। बिदेसिया नाटक का हिस्सा है यह गीत, जिसमें नायिका का गवना कराकर नायक कमाने के लिए कलकत्ता चला गया है और पीछे नायिका विलाप कर रही है -
गवना कराइ सैंया घर बइठवले से,
अपने लोभइले परदेस रे बिदेसिया।।
चढ़ली जवनियां बैरन भइली हमरी रे,
के मोरा हरिहें कलेस रे बिदेसिया।।
यह गीत आज भी खूब गाया और सुना जाता है। एक दूसरा गीत देखिए, जिसमें नायिका अपने पति के पास संदेश भिजवा रही है, बटोही को अपनी बात समझा रही है -
अबीर के घोरि-घोरि, सब लोग खेली होरी
रंगवा में भंगवा परल हो बटोहिया।
कोइलि के मीठी बोली, लागेला करेजे गोली,
पिया बिनु भावे ना चइतवा बटोहिया।
देखिए, अभिव्यक्ति जिसमें जब पिया साथ नहीं है, तो कोयल की मीठी बोली भी दिल पर गोली की तरह लग रही है। अलंकार, उपमा इत्यादि में भिखारी सिद्ध थे, वे पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनका काव्य ज्ञान सिद्ध था। उनके नाच से अलग भी उनके गीतों का महत्व है। ये गीत बहुत अर्थपूर्ण और भाव भरे हैं।

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तब पूरब जाते थे लोग
बिहार में जब रोजगार का अभाव होता था, रोटी-रोजी की दिक्कत होती थी, तब युवा पूरब देस चले जाते थे। जाहिर है, पूरब में सबसे बड़ा शहर कलकत्ता था और वहां से बड़े-बड़े जहाजों में मजदूर दूसरे देशों में ले जाए जाते थे। एक और विरह गीत देखिए -
करिके गवनवा, भवनवा में छोडि़ कर, अपने परईलन पुरूबवा बलमुआ।
अंखिया से दिन भर, गिरे लोर ढर ढर, बटिया जोहत दिन बितेला बलमुआ।
गुलमा के नतिया, आवेला जब रतिया, तिल भर कल नाही परेला बलमुआ।
का कईनी चूकवा, कि छोड़ल मुलुकवा, कहल ना दिलवा के हलिया बलमुआ।

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कुरीतियों पर प्रहार करते गीत
भिखारी अपने समय के समाज सुधारकों में गिने जाते थे। उन्होंने अपने नाच या नाटिकाओं के माध्यम से समाज की कमियों पर प्रहार किया और समाज को सुधरने के लिए प्रेरित किया। बिहार में उनके समय भी बेटियों को बेच दिया जाता था और आज भी बिहार से बेटियां बिककर हरियाणा, पंजाब या देश के उन इलाकों में जाती हैं, जहां लड़कियों की संख्या कम हो गई है। भिखारी ने बेटी बेचने की प्रथा पर प्रहार करते हुए गीत लिखे थे, बेटी बेचवा नाम से एक नाच प्रस्तुत किया था। बेटी बेचवा का एक गीत देखिए, जिसमें एक बेची गई बेटी अपने पिता को उलाहने दे रही है -
रोपेया गिनाई लिहलऽ, पगहा धराई दिहलऽ;
चेरिया के छेरिया बनवलऽ हो बाबूजी।
साफ क के आंगन-गली, छीपा-लोटा जूठ मलिके;
बनि के रहलीं माई के टहलनी हो बाबूजी।
भिखारी के नाच देखते हुए लोग जार-जार रोते थे। एक बेटी कैसे विलाप कर रही है कि पिताजी, मुझे क्यों बेच दिया, मैं तुम्हारे यहां कुछ भी काम करके पड़ी रहती, मां के पीछे-पीछे सेवा में लगी रहती, मुझे भेड़-बकरी की तरह क्यों बेच दिया? बिहार की गरीबी और कुप्रथाएं, दोनों ही भिखारी के नाटकों में मुखर हैं।

भिखारी के विवाह गीत
भिखारी ठाकुर ने विवाह गीत भी खूब लिखे। जिसमें मर्यादा वाले गीत के अलावा चुहलबाजी वाले गीत भी खूब लोकप्रिय हैं। जैसे एक उदाहरण देखिए, दरवाजे पर दूल्हे का स्वागत हो रहा है और गांव की लड़कियां-महिलाएं गारी गा रही हैं -
चलनी के चालल दुलहा, सूप के फटकारल हे,
दिअका के लागल बर, दुआरे बाजा बाजल हे।
आंवा के पाकल दुलहा, झांवा के झारल हे;
कलछुल के दागल, बकलोलपुर के भागल हे।

प्रार्थना और भक्ति के कवि
नाच शुरू करने से पहले भिखारी भगवान की आराधना करना नहीं भूलते थे और भगवान के सामने पूरी तरह से समर्पित होने के बाद ही नाच प्रस्तुत करते थे। एक उदाहरण देखिए -
नाहक जनम भइल मानुस के, हाड़, मांस ओ चाम,
नाम जपत में आलस लागत, कृपा करहु सुखधाम।
बेड़ा पार लगा दे राम।
बस में नइखीं कलह-कांट के मुख में चढ़ल लगाम,
त्राहि-त्राहि करुणानिधान! सुनऽ, रटत ‘भिखारी’ हजाम।
बेड़ा पार लगा दे राम।