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मुसीबत बने मेहमान! ‘कुमकी’ हाथियों को लाने खर्च कर डाले लाखों रुपए, अब तक नहीं हुए उपयोगी साबित… बढ़ रहा खतरा

CG News: ‘कुमकी’ हाथियों के 5 सदस्यीय दल को कर्नाटक से 2018 में सरगुजा लाया गया था। इसमें 3 नर व 2 हथिनी थीं। इन्हें लाने में विभाग ने लगभग 15 लाख रुपए खर्च किए।

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मुसीबत बने मेहमान (फोटो सोर्स- पत्रिका)

मुसीबत बने मेहमान (फोटो सोर्स- पत्रिका)

Ambikapur News: ‘कुमकी’ हाथियों के 5 सदस्यीय दल को कर्नाटक से 2018 में सरगुजा लाया गया था। इसमें 3 नर व 2 हथिनी थीं। इन्हें लाने में विभाग ने लगभग 15 लाख रुपए खर्च किए। वन महकमे ने दावा किया था कि इनसे जंगली हाथियों पर काबू पाने में मदद मिलेगी। लेकिन ये हाथी आज भी रेस्क्यू सेंटर में मेहमान बनकर बैठे हैं। इस हाथियों के देखरेख व भोजन पर शासन का लाखों रुपए खर्च हो रहे हैं।

सरगुजा संभाग में हाथियों के उत्पात को रोकने के लिए वन विभाग ने कई प्रोजेक्ट लाए, लेकिन एक-एक कर सभी फेल होते गए। कागजों पर तो ये प्रोजेक्ट्स काफी अच्छे दिखे लेकिन जमीनी स्तर पर इनका कोई असर नहीं दिखा। सोलर फेंसिंग, रेडियो कॉलर जैसे तमाम प्रोजेक्ट्स हाथियों के उत्पात के आगे बेअसर नजर आए।

हाथियों का उत्पात जारी है व प्रभावित क्षेत्र के लोग जन-धन का भारी नुकसान आज भी झेल रहे हैं। वन विभाग के अफसरों ने बड़े दावों के साथ कुमकी हाथियों को लाया था, अफसरों का कहना था कि कुमकी के जरिए उत्पाती हाथियों को नियंत्रित किया जाएगा, लेकिन कुमकी हाथी आज तक कुछ काम नहीं आ सके। इक्का-दुक्का रेस्क्यू छोडक़र कोई विशेष उपलब्धि नहीं है। बल्कि विभाग के लिए इन्हें रखना अब सिरदर्द वाली स्थिति हो गई है।

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हर महीने दो लाख से अधिक के खर्च

2018 के बाद इनका परिवार बढक़र अब 7 का हो गया है। इनकी देखरेख के लिए महावत भी रखे गए हैं। वहीं इनके भोजन, दवा सहित अन्य चीजों पर हर महीने लगभग 2 लाख से अधिक खर्च हो रहे हैं।

हाथी के हमले में आए दिन हो रही लोगों की मौत

कुमकी हाथी रमकोला स्थित हाथी रेस्क्यू सेंटर में रखे गए हैं। आए दिन हाथी सरगुजा संभाग के अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों की जान लेने के साथ-साथ फसल व घरों को उजाड़ रहे हैं।

जंगली हाथियों के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए संरक्षित वन क्षेत्रों को बढ़ाया जाना आवश्यक है। इससे हाथियों को भोजन, पानी और सुरक्षित रहवास मिल सकेगा । हाथियों के आवागमन वाले कॉरीडोर को सुरक्षित किया जाना अतिआवश्यक है जिससे जानमाल की सुरक्षा हो सकेगी और हाथियों को भी सुरक्षित रास्ता मिल सकेगा। - अमलेन्दु मिश्र, हाथी विशेषज्ञ।