
सिर्फ 12 वोट से जदयू उम्मीदवार ने दर्ज की थी राजद पर जीत। (फोटो : एएनआई)
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दिन धीरे-धीरे करीब आ रहे हैं। सभी दल प्रचार-प्रसार में लगे हैं। रैलियां निकल रही हैं तो सरकार एक के बाद एक लोक लुभावन घोषणाएं कर रही है। साथ ही हर दल के वार रूम में चुनाव जीतने की रणनीति तैयार हो रही है। इस बार चर्चा में वे 11 सीटें रहने वाली हैं, जहां 2020 के चुनाव में जीत और हार का अंतर 1000 वोटों से भी कम था। इन सीटों ने न केवल पिछले चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाई, बल्कि इस बार भी ये राजनीतिक दलों की रस्साकशी का केंद्र बन रही हैं। सत्ताधारी एनडीए और महागठबंधन दोनों ही इन सीटों पर विशेष रणनीति के साथ काम कर रहे हैं ताकि पिछले चुनाव की गलतियों को न दोहराया जाए और एक-एक वोट की कीमत को समझा जा सके।
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कई सीटें ऐसी थीं, जहां परिणाम अंतिम क्षण तक रोमांचक बने रहे। हिलसा सीट पर जदयू के उम्मीदवार कृष्ण मुरारी शरण ने राजद के शक्ति सिंह यादव को मात्र 12 वोटों के अंतर से हराया था, जो जीत का सबसे कम अंतर था। इसी तरह बरबीघा में जदयू के सुदर्शन ने कांग्रेस के सिद्धार्थ को 113 वोटों से, रामगढ़ में राजद के सुधाकर सिंह ने बसपा के अंबिका सिंह को 189 वोटों से और मटिहानी में लोजपा के राजकुमार सिंह ने जदयू के नरेंद्र कुमार को 333 वोटों के मामूली अंतर से मात दी थी। इसके अलावा डेहरी, बछवाड़ा, चकाई, कुढ़नी, बखरी, परबत्ता जैसी सीटों पर भी जीत-हार का फैसला 1000 से भी कम वोटों से हुआ था।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इन सीटों पर हार और जीत के लिए माइक्रो प्लानिंग की जा रही है। राजनीतिक दल अब सिर्फ बड़े मुद्दों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं, बल्कि बूथ स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत करने और मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं।
बूथ प्रबंधन : दोनों गठबंधन इन सीटों पर बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर रहे हैं। उनका लक्ष्य मतदाताओं को पोलिंग बूथ तक लाना और यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी समर्थक वोट देने से छूट न जाए।
मतदाता सूची पर फोकस : कम अंतर वाली सीटों पर फर्जी या डुप्लीकेट वोटों को हटाने और सही मतदाताओं को लाने पर विशेष फोकस किया जा रहा है।
जातीय और सामाजिक समीकरण : बिहार की राजनीति में जाति एक महत्वपूर्ण कारक है। इन सीटों पर दोनों दल अपने उम्मीदवारों का चयन जातीय और सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखकर कर रहे हैं।
बागियों पर लगाम : पिछले चुनाव में कई सीटों पर बागी उम्मीदवारों ने अपनी ही पार्टी के वोटों को काटा था। इस बार राजनीतिक दल ऐसे नेताओं को मनाने और उन पर लगाम लगाने के लिए सख्त कदम उठा रहे हैं।
2020 में इन 11 सीटें पर जहां कांटे की टक्कर देखने को मिली थी, इस बार के चुनाव में भी निर्णायक साबित हो सकती हैं। इन सीटों पर जीत के लिए एनडीए और महागठबंधन अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार हैं, जिससे बिहार की जनता को फिर से एक रोमांचक और कड़ी चुनावी लड़ाई देखने को मिलेगी। इन सीटों का परिणाम ही यह तय करेगा कि बिहार में अगली सरकार कौन बनाएगा?
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Published on:
18 Sept 2025 03:11 pm
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