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Bihar Assembly Elections: लोकसभा में अति पिछड़ा NDA से नाराज, अब राजपूत नेता भी दिखा रहे आंख

Bihar Assembly Elections से पहले सियासी तापमान बढ़ने लगा है। लोकसभा में अतिपिछड़ा वर्ग के नाराज होने से बीजेपी शाहाबाद रीजन में शून्य पर सिमट गई। वहीं, अब राजपूत नेता भी पार्टी को आंखें दिखा रहे हैं। क्या इस बार बीजेपी से सवर्ण वोट छिटक कर जनसुराज की तरफ शिफ्ट होगा?

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बिहार बीजेपी

बिहार बीजेपी (फोटो-IANS)

Bihar Assembly Elections: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां तेज हो गई हैं। आज पटना में कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक होने जा रही है। कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं का जुटान हो रहा है। दूसरी, तरफ बिहार बीजेपी (BJP) में जमकर घमासान मचा हुआ है। बीजेपी के राजपूत (Rajpoot) नेता पार्टी से खफा-खफा दिख रहे हैं।

पहले रूडी और अब आरके सिंह नाराज

कॉन्सटिट्यूशन क्लब का चुनाव जीतने के बाद भी सारण से बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूडी अपनी नाराजगी मीडिया के सामने जाहिर कर रहे हैं, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री व आरा से सांसद रहे RK सिंह ने लोकसभा चुनाव में अपनी हार का ठीकरा स्थानीय भाजपा विधायकों पर फोड़ा।

वहीं, आरके सिंह ने जनसुराज नेता प्रशांत किशोर द्वारा BJP प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल और बिहार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी पर लगाए गए आरोपों पर सार्वजनिक रूप से स्पष्टीकरण देने की मांग की। आरके सिंह यहीं नहीं रूके, उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर कहा कि अगर उनकी सच्ची बातों को बगावत माना जाए तो बगावत सही है और पार्टी हित में बोलना उनका उद्देश्य है।

राजपूतों की ताकत?

साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में 28 राजपूत विधायक चुने गए थे। BJP से 15, JDU से 2, RJD से 7, कांग्रेस से एक, वीआईपी से दो और एक निर्दलीय विधायक चुनकर सदन पहुंचे। जातीय सर्वे के मुताबिक बिहार में करीब 10 फीसदी सवर्ण हैं, जिनमें राजपूतों की संख्या करीब 3.45 फीसदी है। यह परंपरागत रूप से बीजेपी के वोटर माने जाते हैं, लेकिन मोदी 3.0 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में बिहार से आठ मंत्री हैं, लेकिन राजपूत समुदाय से कोई भी नहीं है। ऐसे में डर है कि कहीं राजपूत वोट इस बार छिटक न जाए। राजीव प्रताप रूडी भी बता चुके हैं कि उत्तर भारत के 70 से अधिक सीटों पर जीत और हार का रुख राजपूत वोटर तय करता है। उनके बयान को ही आधार माना जाए तो बिहार की कम से कम 35 सीटों पर राजपूत निर्णायक भूमिका में हैं।

जनसुराज अध्यक्ष हैं राजपूत नेता पप्पू सिंह

पूर्णिया से दो बार के सांसद रहे पप्पू सिंह राजपूत समुदाय से आते हैं। वह फिलहाल प्रशांति किशोर की पार्टी जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष है। प्रशांत किशोर खुद ब्राह्मण समुदाय से आते हैं। पीके लगातार जातीय राजनीति को छोड़कर शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार की बात करते हैं। इससे सवर्ण युवाओं का एक तबका उनकी ओर आकर्षित हो रहा है।

सवर्ण छिटका तो जा सकती है सीएम नीतीश की कुर्सी

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में कांटे की टक्कर के बीच NDA को जीत मिली। दोनों गठबंधन के बीच जीत का अंतर महज 12,768 वोटों का रहा। NDA को बिहार चुनाव (2020) में 1 करोड़ 57 लाख 1 हज़ार 226 वोट मिले, महागठबंधन के खाते में 1 करोड़ 56 लाख 88 हज़ार 458 वोट आए। मत प्रतिशत की बात करें तो नीतीश की अगुवाई वाली NDA को 37.26 फीसदी वोट मिले, जबकि तेजस्वी यादव की अगुवाई वाली महागठबंधन को 37.23 फीसदी वोट मिले। मत फीसदी का अंतर महज 0.03 फीसदी रहा। ऐसे में सवर्ण वोट छिटकने से 2005 से सत्ता पर काबिज नीतीश कुमार की सीएम की कुर्सी छिन सकती है।

NDA ने शाहाबाद की सभी सीटें हारी

लोकसभा चुनाव में NDA का शाहाबाद रीजन में सूपड़ा साफ हो गया था। पार्टी आरा और बक्सर की सीट हार गई, जबकि काराकट से रालोम उम्मीदवार उपेंद्र कुशवाहा को भी हार का सामना करना पड़ा। माना गया कि इस रीजन के लव-कुश (कोइरी-कुर्मी) बीजेपी और उसके सहयोगियों से छिटक गए।

दरअसल, बीजेपी ने आरा से राजपूत समुदाय से आने वाले आरके सिंह, बक्सर से ब्राह्मण उम्मीदवार मिथिलेश कुमार तिवारी को टिकट दिया। वहीं, आसनसोल से बीजेपी का टिकट कटने के बाद पवन सिंह काराकट से निर्दलीय चुनाव में उतर गए। इलाके में सवर्णों का वर्चस्व काबिज हो जाने का संदेश गया। इलाके के अति पिछड़ों लामबंद हुए। विपक्षी उम्मीदवारों को एकमुश्त वोट दिया।

2024 में लव-कुश वोट NDA से छिटका

CSDS-लोकनीति के सर्वे के मुताबिक लव-कुश (कोइरी-कुर्मी) समुदाय ने 2024 में NDA गठबंधन को 67 फीसदी वोट दिया, जोकि साल 2019 के आम चुनाव से 12 फीसदी कम है। वहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को लव-कुश समुदाय ने 19 फीसदी वोट किया, जो पिछले आम चुनाव से 9 फीसदी ज्यादा है।