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CEC के खिलाफ BJP भी ला चुकी है महाभियोग प्रस्ताव, क्या है तरीका, क्यों आसानी से नहीं हटाए जा सकते ज्ञानेश कुमार?

मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है। कांग्रेस मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है।

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CEC Gyanesh Kumar on Maharashtra Election

सीईसी ज्ञानेश कुमार के खिलाफ कांग्रेस ला सकती है महाभियोग प्रस्ताव (Photo- IANS)

Impeachment Motion Against CEC: देश में वोट चोरी और SIR का मुद्दा गरमाया हुआ है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता व लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) लगातार चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे हैं। बिहार विधानसभा के मद्देनजर वोट अधिकार रैली कर रहे हैं। वहीं, बीजेपी और चुनाव आयोग के बीच मिलीभगत का आरोप भी लगा रहे हैं। राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था। उन्होंने राहुल गांधी से माफी मांगने की बात कही। इसके बाद चुनाव आयोग पर विपक्षी दलों ने हमले तेज कर दिए हैं।

बीजेपी भी ला चुकी है महाभियोग प्रस्ताव

विपक्ष ने मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी को लेकर चुनाव आयोग पर निशाना साधा है। अब विपक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग जैसा प्रस्ताव लाने पर विचार कर रही है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि जब मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग जैसा प्रस्ताव लाने का मुद्दा गरमाया हो। बीजेपी ने भी विपक्ष में रहते हुए साल 2006 में इसी तरह का अभियान चलाया था। तब बीजेपी तत्कालीन चुनाव आयुक्त नवीन चावला को हटाने की मांग को लेकर प्रस्ताव लेकर आई थी, लेकिन उस समय लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था।

क्या है मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को स्वतंत्र संस्था का दर्जा प्राप्त है। मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के जज के ही समान है। CEC को केवल दो आधारों पर ही हटाया जा सकता है। पहला, दुर्व्यवहार साबित होने पर और दूसरा अक्षमता साबित होने पर।

मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। पहले संसद के किसी भी सदन में महाभियोग चलाने के प्रस्ताव लाना होता है। यदि उच्च सदन यानी राज्यसभा में प्रस्ताव लाया जा रहा है तो 50 सांसदों का समर्थन अनिवार्य है, वहीं यह प्रस्ताव निम्न सदन में लाया जाता है तो कम से कम 100 सांसदों का समर्थन अनिवार्य है। इसके बाद एक जांच समिति गठित की जाती है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश या विशेषज्ञ शामिल होते हैं। समिति यदि आरोपों को सही ठहराती है तो संसद में उस पर बहस होता है। इसके बाद महाभियोग पारित करने के लिए विशेष बहुमत चाहिए यानी सदन की कुल सदस्य संख्या का बहुमत और उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई का समर्थन चाहिए होता है। यह प्रक्रिया दोनों सदनों में पूरी करनी पड़ती है। इसके बाद प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति उक्त व्यक्ति को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं।