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Vijay Diwas: जब रोते हुए पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने किया सरेंडर लेटर पर दस्तखत, पूछने पर कहा- ‘अवसादग्रस्त’, पढ़िए भारतीय सेना की गौरव गाथा

Vijay Diwas: लगभग नौ महीनों तक चली लंबी लड़ाई, क्रूरताओं का दौर 1971 के दिसंबर के मध्य तक आकर बदल चुका था। स्वतंत्रता का वादा अब सपना नहीं रह गया था। यहां विस्तार से पढ़िए भारतीय सेना के पराक्रम के आगे पाकिस्तानी सेना का 93000 सैनिकों के साथ बांग्लादेश सैनिकों के सामने आत्मसर्पण करने और बांग्लादेश की मुक्ति की कहानी।

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Vijay Diwas Pakistan General Niyazi

पाकिस्तानी जनरल नियाजी आत्समर्पण पत्र पर दस्तखत करते हुए (AI Image)

Vijay Diwas Celebration: पाकिस्तानी सेना (Pakistani army) ने स्थानीय सहयोगियों के समर्थन से अकल्पनीय क्रूरता का तांडव मचाया। सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर अत्याचार की हर वो बेहिसाब कहानियां लिखीं, जिसकी मिसाल इतिहास के पन्नों में ढूंढे नहीं मिलती। सेना ने लाखों लोगों हत्याएं कीं। लाखों महिलाओं का बार-बार बलात्कार किया। बेहिसाब लूटपाट की। उन्होंने सब कुछ तहस-नहस कर दिया।

पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेकने से ठीक पहले देश के सबसे प्रतिभाशाली बेटों और बेटियों को भी खामोश कर दिया। पाक सेना ने बांग्लादेश की हरी-भरी भूमि को झुलसी हुई लाल बंजर भूमि में बदल कर रख दिया। वह आजादी, जो पिछले नौ महीनों में धीरे-धीरे करीब आती जा रही थी, अब इतनी यातनाएं झेलने के बाद मानो बांग्लादेशियों के बस पहुंच में आने वाली ही थी।

भारत का सहयोग पाकर बांग्लादेशी लड़ाकों में नया जोश जागा था

दिसंबर के शुरू होते ही मुक्ति वाहिनी के लड़ाके नए आत्मविश्वास के साथ पाकिस्तानी सेना से मोर्चा लेने आगे बढ़ने लगे थे। उनकी उपस्थिति पाकिस्तानी सेना के कब्जे वाले ढाका के अंदर भी महसूस की जा रही थी। शहर के बाहरी इलाकों से, सहयोगी भारतीय और बांग्लादेशी सेनाएं घेरा कसती जा रही थीं। शहर एक ऐसा मंच बन गया था जहां अंतिम अध्याय लिखा जाने वाला था।

'समय समाप्त होने से पहले हथियार डाल दो'

मानसून के दौरान असाधारण रूप से भारी बारिश हुई थी। लेकिन अब मौसम पूरी तरह करवट लेने वाला था और भीषण सर्दी पड़ने वाली थी। भारतीय वायुसेना के सहयोगी लड़ाकू विमान ढाका के ऊपर से गरजते हुए गुजर रहे थे। उनके हमलों से ढाका की धरती कांप रही थी। गंभीर चेतावनी वाले पर्चे नीचे गिर रहे थे, जिसमें लिखा था- "समय समाप्त होने से पहले हथियार डाल दो।"

7 दिसंबर को ही पाकिस्तान को हार का अहसास हो चुका था

पाकिस्तान सरकार के हमूदुर रहमान आयोग की 7 दिसंबर की रिपोर्ट के अनुसार, गवर्नर ए.एम. मलिक ने राष्ट्रपति जनरल याह्या खान को एक गुप्त संदेश भेजा था जिसमें भयावह स्थिति का वर्णन किया गया था। उन्होंने लिखा, "विश्व शक्तियों की दिखावटी सहानुभूति या भौतिक सहायता से प्रत्यक्ष भौतिक हस्तक्षेप के अलावा कुछ भी काम नहीं आएगा। जब अंत अपरिहार्य प्रतीत हो रहा है तो इतना बलिदान देना क्या उचित है?"

घायल लोगों की देखभाल के लिए कुछ भी उपलब्ध नहीं था

6 दिसंबर 1971 के बाद कोई नागरिक सरकार अस्तित्व में नहीं थी। जब भारतीय वायु सेना ने शहर पर बमबारी की, तो सड़कों को साफ करने या घायल और जख्मी लोगों की देखभाल करने के लिए कोई नागरिक एजेंसियां ​​उपलब्ध नहीं थीं। युद्ध के दौरान पूर्वी विंग में मौजूद पाकिस्तानी अधिकारी मेजर जनरल राव फरमान अली खान ने अपनी पुस्तक "हाउ पाकिस्तान गॉट डिवाइडेड" में इन बातों की विस्तार से चर्चा की है।

'ढाका वीरान शहर बन चुका था, अब पाक समर्थक घबराए हुए थे'

उन्होंने लिखा, "ढाका एक वीरान शहर बन गया था। मुक्ति वाहिनी की गतिविधियों के डर से ज्यादातर समय वहां कर्फ्यू लगा रहता था। पूर्वी पाकिस्तानियों से लेकर पश्चिमी पाकिस्तानियों तक अधिकांश पाकिस्तान के समर्थक अब घबराए हुए थे।"

14 दिसंबर को भी युद्ध रोकने का पाक अधिकारी ने दिया संदेश

पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन जनसंपर्क अधिकारी सिद्दीक सालिक ने 14 दिसंबर की स्थिति का वर्णन अपनी पुस्तक "विटनेस टू सरेंडर" में किया है। याह्या ने मलिक और पाकिस्तान की पूर्वी कमान के सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी को एक संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने लिखा, "अब आप उस स्थिति में पहुंच चुके हैं, जहां आगे प्रतिरोध करना मानवीय रूप से संभव नहीं है और न ही इससे कोई लाभ होगा। आपको अब लड़ाई रोकने और पश्चिमी पाकिस्तान के सभी सशस्त्र बलों के कर्मियों के जीवन की रक्षा करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करने चाहिए।"

भारतीय सेना के मेजर जनरल नागरा ने नियाजी को भेजा नोट

आत्मसमर्पण की बढ़ती अटकलों के बीच 16 दिसंबर की सुबह भारतीय सेना के कमांडो सैनिकों के ठीक पीछे मौजूद मेजर जनरल गंधर्व सिंह नागरा, मीरपुर पुल पर रुक गए और पाकिस्तान के आमिर अब्दुल्लाह खान नियाज़ी को एक नोट लिखकर भेजा। इसमें लिखा था- "प्रिय अब्दुल्ला, मैं मीरपुर ब्रिज पर हूं। कृपया अपना प्रतिनिधि भेजें।"

नियाजी को जब सुबह करीब 9:00 बजे यह नोट मिला, तब मेजर जनरल जमशेद, मेजर जनरल फरमान और रियर एडमिरल शरीफ उनके साथ थे। फरमान ने पूछा, "क्या वह (नागरा) वार्ताकार टीम में हैं?" जनरल नियाजी ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की।

जनरल नियाजी के पास घुटने टेकने के अलावा नहीं बचा कोई चारा

फरमान का प्रश्न यह था कि गंधर्व सिंह नागरा के प्रस्ताव का स्वागत किया जाए या उसका विरोध किया जाए। भारतीय सेना पहले ही ढाका की दहलीज पर पहुंच चुकी थी। लेकिन पाकिस्तानी सेना के पास नागरा के प्रस्ताव का विरोध करने के लिए कोई अतिरिक्त संसाधन नहीं बचा था, इसलिए फरमान और शरीफ दोनों नागरा की बात मानने के लिए सहमत हो गए।

इसके बाद नियाजी ने नागरा का स्वागत करने के लिए जमशेद को भेजा और पाकिस्तानी सैनिकों से युद्धविराम का सम्मान करने और नागरा को शांतिपूर्ण मार्ग की अनुमति देने का अनुरोध किया।

'भारतीय सेनापति मुट्ठी भर सैनिकों के साथ ढाका में दाखिल हुआ'

सालिक ने लिखा, "भारतीय सेनापति मुट्ठी भर सैनिकों और भरपूर गर्व के साथ ढाका में दाखिल हुआ। यही ढाका का वस्तुतः पतन था। यह किसी हृदय रोगी शांति से गिर पड़ा। न तो इसके अंग काटे गए और न ही इसका शरीर क्षत-विक्षत हुआ। यह एक स्वतंत्र शहर के रूप में अस्तित्वहीन हो गया।"

लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब आत्मसमर्पण पर चर्चा करने के लिए उसी दोपहर पाकिस्तानी सेना के मुख्यालय पहुंचे। नियाज़ी ने जैकब का स्वागत किया।

'...शर्तें पढ़ी जा रही थीं और कमरे में सन्नाटा छा गया'

लेफ्टिनेंट जनरल जेएफआर जैकब ने अपनी पुस्तक "ढाका में आत्मसमर्पण: एक राष्ट्र का जन्म" में लिखा है, 'कर्नल एम एच खारा ने आत्मसमर्पण की शर्तें पढ़कर सुनाईं। कमरे में सन्नाटा छा गया, नियाज़ी की आंखों से आंसू बह रहे थे। कमरे में मौजूद अन्य लोग बेचैन हो गए।'

पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण से कर दिया इनकार

राव फरमान अली ने भारतीय और बांग्लादेशी सेनाओं के सामने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। नियाज़ी ने कहा कि जैकब उनसे जिस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने को कह रहा था, वह बिना शर्त आत्मसमर्पण था।

लेफ्टिनेंट जनरल जैकब ने दिया पाकिस्तान को ये आश्वासन

जेकब ने आश्वासन दिया कि उनके साथ सैनिकों की तरह सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाएगा और जिनेवा कन्वेंशन का पालन किया जाएगा। सभी जातीय अल्पसंख्यकों का सम्मान किया जाएगा।

नियाजी दस्तावेज दूसरों को सौंप कमरे से बाहर चले गए

नियाज़ी ने दस्तावेज़ दूसरों को सौंप दिया। वे कुछ बदलाव चाहते थे। जैकब ने दोहराया कि शर्तें पहले से ही बहुत उदार थीं और वह पाकिस्तानी लोगों को विचार-विमर्श के लिए छोड़कर कमरे से बाहर चले गए। इसके बाद दोनों पक्षों ने आत्मसमर्पण की प्रक्रिया पर चर्चा की।

नियाज़ी ने कहा कि वह समारोह अपने कार्यालय में आयोजित करना चाहेंगे। जैकब ने उन्हें बताया कि समारोह ढाका के रामना रेस कोर्स में होगा, जिसे अब सुहरावर्दी उद्यान के नाम से जाना जाता है।

नियाजी नाखुश तो था लेकिन चुप रहा

जैकब ने यह तय किया कि ढाका की जनता जिन्होंने इतनी भयावह पीड़ा झेली, उनके सामने सार्वजनिक रूप से आत्मसमर्पण करना उचित होगा। नियाजी ने इसे अ​नुचित बताया। लेकिन जैकब ने प्रस्ताव रखते हुए कहा कि भारतीय पूर्वी कमान के कमांडर और बांग्लादेश और भारत की संयुक्त सेनाओं के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोरा को भारतीय और पाकिस्तानी सेनाओं की टुकड़ियों द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाएगा। उसके बाद अरोरा और नियाज़ी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करेंगे। फिर नियाज़ी अपनी तलवार सौंप देगा। नियाज़ी ने जब कहा कि उसके पास तलवार नहीं है तो जैकब ने कहा कि नियाजी अपना हथियार सौंप देगा। नियाज़ी नाखुश तो लगा लेकिन चुप रहा।

16 दिसंबर की शाम नियाजी ने हस्ताक्षर कर दिए

पाकिस्तानी अधिकारियों ने भारतीय शर्तों पर सहमति जताई और नियाजी ढाका हवाई अड्डे जगजीत सिंह अरोरा को लेने के लिए गए। नियाज़ी ने 16 दिसंबर की शाम के 5:01 बजे आत्मसमर्पण पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। नियाजी के दस्तखत करते हुए हाथ कांप रहे थे और आंखों से आंसू छलक रहे थे। लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। यह दुनिया में आत्मसमर्पण करने वाली कहीं भी एकत्रित सबसे बड़ी सेनाओं में से एक थी। इस तरह भारत के सहयोग से एक नया देश बांग्लादेश अस्तित्व में आ गया।