
प्रमिला की रॉट आयरन कला को बिहान से मिली नई दिशा (Photo CG DPR)
CG News: छत्तीसगढ़ में रॉट आयरन कला आदिवासी संस्कृति का एक बहुत ही अनोखा और प्रसिद्ध हिस्सा है। इसे स्थानीय भाषा में लौह शिल्प भी कहा जाता है। यह कला खासकर बस्तर क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय है। रॉट आयरन कला धातु को गर्म करके, पीटकर या मोड़कर अलग–अलग सजावटी डिज़ाइनों में तैयार करने की एक पुरानी व आकर्षक कला है। इसका उपयोग घरेलू सजावट, वास्तुकला और फर्नीचर में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ‘बिहान’ के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत महिलाओं एवं युवतियों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने हेतु स्व-सहायता समूहों का गठन किया जाता है। इसके माध्यम से महिलाओं को वित्तीय समावेशन, कौशल उन्नयन और अपनी आजीविका को सुदृढ़ करने के अवसर प्रदान किए जाते हैं।
इस पहल से जिले की कई महिलाएं आज सफलता की नई कहानी लिख रही हैं। ऐसी ही प्रेरक कहानी है विकासखण्ड बड़ेराजपुर के ग्राम छोटेराजपुर की रहने वाली प्रमिला मरकाम की, जिन्होंने अपने परिवार की पारंपरिक रॉट आयरन कला को ‘बिहान’ के सहयोग से नई पहचान दिलाई और आज सालाना लगभग 5 लाख 40 हजार रुपये की आय अर्जित कर रही हैं।
कोण्डागांव जिले के दुरस्थ विकासखण्ड बड़ेराजपुर मुख्यालय से 15 किमी की दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत छोटेराजपुर के पवित्रा स्व-सहायता समूह से जुड़ी प्रमिला का परिवार पहले मुख्य रूप से मजदूरी तथा कृषि आधारित कार्यों पर निर्भर थीं। समूह से जुड़ने के बाद उन्होंने रॉट आयरन से 80 प्रकार की विभिन्न कलाकृतियां तैयार करनी शुरू कीं। अपनी कला को राज्य तथा देश के अन्य हिस्सों तक पहुंचाने के लिए बिहान ने उन्हें नया मंच दिया और उन्होंने गुजरात, गोवा, दिल्ली, असम, नोएडा सहित कई स्थानों पर आयोजित आजीविका सरस मेलों में हिस्सा लिया, जहां से अब तक वे लगभग 12 लाख रुपये की आय अर्जित कर चुकी हैं।
बस्तर की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को प्रदर्शित करती हुई प्रमिला अब तक 1500 से अधिक कलाकृतियां बना चुकी हैं, जिनकी कुल लागत 30 लाख रुपये है। इनमें से 857 कलाकृतियों का विक्रय सरस मेला, सरस गैलरी और स्थानीय बाजारों में किया जा चुका है, जिससे उन्हें 13 लाख रुपये की आमदनी प्राप्त हुई है। हाल ही में 06 सितंबर 2025 को दिल्ली में आयोजित सरस मेले में उन्होंने 496 उत्पाद बेचकर 3 लाख 87 हजार 500 रुपये की आय अर्जित की।
प्रमिला न केवल रॉट आयरन कला से अपनी आजीविका को सशक्त बना रही हैं, बल्कि बस्तर की संस्कृति और परंपरा को देशभर में पहचान दिलाने का कार्य भी कर रही हैं। प्रमिला ने खुशी जताते हुए कहा कि बिहान के माध्यम से रॉट आयरन कला को विस्तार करने में सहयोग मिला और नई दिशा मिली। उन्होंने बिहान से मिली सहयोग के लिए शासन-प्रशासन के प्रति आभार व्यक्त किया।
यह पूरी तरह हस्तनिर्मित होती है। हर पीस में आदिवासी जीवन और प्रकृति की कहानी झलकती है। कारीगर पीढ़ियों से इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं। भारत के प्राचीनतम लौह शिल्पों में से एक है। छत्तीसगढ़ में रॉट आयरन कला मुख्यत बस्तर (जगदलपुर, कोंडागाँव) दंतेवाड़ा,कांकेर जिलों में प्रसिद्ध है।
Updated on:
10 Dec 2025 02:39 pm
Published on:
10 Dec 2025 02:38 pm
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