
फोटो- अनुग्रह सोलोमन
Rajasthan Health News: राजस्थान में भजनलाल सरकार के कार्यकाल में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के संकेत मिले हैं, लेकिन बड़ी घोषणाओं और महत्वपूर्ण मेडिकल सुविधाओं का अधूरा रह जाना सबसे बड़ी कमजोरी है।
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर ने पत्रिका के साथ बातचीत में कहा कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में इंफ्रा, मैनपॉवर और सुपर स्पेशियलिटी जैसी सुविधाओं का विस्तार हुआ है। मां योजना में 35 लाख लोगों को निशुल्क इलाज मिला है।
चिकित्सा मंत्री ने कहा कि डिजिटल हेल्थ सिस्टम, एआइ और नवाचार, फार्मा सेक्टर के विस्तार पर काम किया जा रहा है। आने वाले समय में सरकार के यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज, जिला स्तरीय मेडिकल एक्सीलेंस, हर जिले में मेडिकल कॉलेज जैसे बड़े लक्ष्य हैं।
सरकार भले ही स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को बेहतर बताने के दावे करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट है। प्रदेश के सभी बड़े सरकारी अस्पतालों में रोजाना मरीजों की भारी भीड़ उमड़ रही है, लेकिन उनके समुचित प्रबंधन की व्यवस्था नहीं दिखती। कई जगह डॉक्टर समय पर नहीं पहुंचते, जिससे मरीजों को घंटों लाइन में खड़े रहकर इंतजार करना पड़ता है।
अस्पतालों में बहुत सी जांचों के लिए लंबी वेटिंग लिस्ट है। स्थिति यह है कि अवकाश के दिनों में अधिकांश जांचें नहीं होती, कुछ सीमित जांच ही की जाती हैं। ऐसे में मरीजों को कई बार अस्पताल के चक्कर लगाने पड़ते हैं। अगली बार आने पर उन्हें फिर से पर्ची कटवाने, डॉक्टर को दिखाने और जांच लिखवाने के लिए अलग-अलग कतारों में लगना पड़ता है।
जयपुर के जेके लोन अस्पताल में अपने बेटे का इलाज करवाने पहुंची प्रियंका ने पत्रिका को बताया कि 26 दिसंबर को वे अपने बेटे को नेफ्रोलॉजी विभाग में दिखाने गई थीं। करीब दो घंटे लाइन में लगने के बाद डॉक्टर को दिखाने का मौका मिला। इसके बाद बिल कटवाने के लिए भी लगभग आधा घंटा इंतजार करना पड़ा।
नंबर आया तो बताया गया कि दोपहर के 12 बज चुके हैं, इसलिए फिलहाल केवल सामान्य जांच ही हो सकेगी। सोनोग्राफी और पैथोलॉजी जैसी अन्य जरूरी जांचों के लिए सोमवार 29 दिसंबर को आने को कहा गया, क्योंकि 27 दिसंबर को गुरु गोविंद सिंह जयंती का अवकाश और 28 दिसंबर को रविवार था।
प्रियंका ने आगे बताया कि 29 दिसंबर को जब वे दोबारा जांच कराने पहुंचीं तो काउंटर से यह कहकर लौटा दिया गया कि पहले नई पर्ची कटवाकर डॉक्टर से फिर जांच लिखवानी होगी। प्रियंका ने बताया कि सोमवार को नेफ्रोलॉजी के मरीज नहीं देखे जाते।
ऐसे में अब उन्हें मंगलवार को फिर अस्पताल आना पड़ेगा और एक बार फिर घंटों कतार में लगकर डॉक्टर से जांचें लिखवानी होंगी। प्रियंका जैसी परेशानियां हर दिन सैकड़ों मरीजों को झेलनी पड़ रही हैं, लेकिन उनकी समस्याओं पर ध्यान देने वाला कोई नजर नहीं आता।
राजस्थान सरकार की मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना (मां) में प्रदेश के 1.34 करोड़ से अधिक परिवार पंजीकृत हैं। चिकित्सा विभाग के अनुसार इस योजना में लाखों लोगों को निशुल्क इलाज मिला है। इसमें दो राय नहीं कि इस योजना से आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों को राहत मिल रही है। लेकिन जमीनी स्तर पर इस योजना का लाभ लेने के लिए मरीजों को परेशान होना पड़ रहा है।
इस योजना में बड़े निजी अस्पताल सरकार की ओर से निर्धारित पैकेज दरों पर सभी बीमारियों का इलाज करने को तैयार नहीं हैं। मरीज सरकारी योजना के भरोसे अस्पताल पहुंचता है, लेकिन वहां यह कहकर लौटा दिया जाता है कि संबंधित विभाग या स्पेशलिटी योजना में शामिल नहीं है।
सरकारी योजना में शामिल होने के बावजूद अस्पताल यह तय करने के लिए स्वतंत्र हैं कि किस बीमारी का इलाज योजना में करेंगे और किसका नहीं। यहां तक कि जिन निजी अस्पतालों ने सरकार से रियायती दरों पर जमीन ली है, वे भी इस बाध्यता से मुक्त हैं।
जयपुर के एक बड़े निजी अस्पताल ने हाल ही में एक मरीज की मौत के बाद शव रोक लिया गया। बाद में यह तर्क दिया गया कि जिस इलाज की जरूरत थी, वह योजना के दायरे में नहीं आता। मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के हस्तक्षेप के बाद मामला सुलझा।
इसके अलावा, कई निजी अस्पतालों में योजना के मरीजों के लिए सीमित सुविधाओं वाले बोर्ड लगाए गए हैं। मरीज योजना का नाम देखकर पहुंचता है, लेकिन बाद में उससे रुपए जमा कराने के लिए कह दिया जाता है।
दौसा से आए मरीज कमल ने बताया कि वे बड़ी उम्मीदों के साथ जयपुर के एक निजी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचे थे, लेकिन उनसे कहा गया कि वे जिस बीमारी से पीड़ित है उसका इलाज पैकेज में शमिल नहीं है। मजबूरन पैसे देकर उन्हें इलाज कराना पड़ा। ये हालात बताते हैं कि योजना के लाभ के साथ-साथ इसकी खामियों पर भी गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
दुर्लभ और जानलेवा बीमारियों से जूझ रहे बच्चों के इलाज के लिए सरकार ने मुख्यमंत्री आयुष्मान बाल संबल योजना की घोषणा की थी, लेकिन एक साल के बाद भी यह योजना अमल में नहीं आ सकी।
योजना में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित बच्चों को हर माह 5 हजार रुपए की आर्थिक सहायता और 50 लाख तक का निशुल्क उपचार दिया जाना था, लेकिन सरकार की यह अहम योजना अभी तक केवल कागजों में ही है।
रेयर डिजीज इंडिया फाउंडेशन के सह-संस्थापक सौरभ सिंह का कहना है कि अगर जीवन रक्षक उद्देश्य से घोषित की गई इस योजना को समय रहते प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया गया, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
Updated on:
29 Dec 2025 06:37 pm
Published on:
29 Dec 2025 06:03 pm
बड़ी खबरें
View AllPatrika Special News
ट्रेंडिंग
