
अमेरिका भारत पर टैरिफ का दबाव बना रहा है। (PC: Gemini)
अमेरिका जिस अतिरिक्त टैरिफ से भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा था, अब वही टैरिफ अमेरिका की गले की हड्डी बन गया है। ट्रंप का कहना है कि वे व्लादिमीर पुतिन की युद्ध मशीन को कुचलना चाहता है। इसके लिए वे रूस के दो सबसे बड़े ऊर्जा खरीदार चीन और भारत पर 100% तक का टैरिफ लगाना चाहता है। साथ ही उन्होंने यूरोपीय यूनियन (EU) और G7 कंट्रीज को भी ऐसा करने को कहा है।
दुनिया के दो सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों (चीन और भारत) के खिलाफ एक वेस्ट ट्रेड अलायंस बनाना एक मूर्खतापूर्ण विचार है। किसी तीसरे देश को अनुशासित करने के मैकेनिज्म के रूप में यह खतरनाक भी है। चीन अब अपने विकास के उस मुकाम को पार कर चुका है, जहां उसे प्रतिबंधों की धमकी देकर दबाया जा सके। अगर ऐसी कोशिश की गई, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा। भारत पर लगाए गए ऐसे प्रतिबंध भी एक बड़ी रणनीतिक गलती साबित हो सकते हैं।
लेकिन क्या ट्रंप ऐसा कर पाएंगे? यूरोपीय यूनियन के अंदर इस बात पर सहमति नहीं बन पाएगी। रूस समर्थक हंगरी का नेतृत्व किसी भी ऐसे प्रतिबंधों को रोकने की संभावना रखता है। जापान और ब्रिटेन भी एशिया में अपने हितों को खतरे में डालकर अमेरिका के इस ट्रेड वॉर में शामिल नहीं होना चाहेंगे।
इस तरह के किसी भी संरक्षणवादी कदम से उपभोक्ताओं को नुकसान होगा। महत्वपूर्ण कच्चे माल, जैसे कि रेयर अर्थ्स पर चीन का नियंत्रण होने के कारण यह अव्यावहारिक भी होगा। चीन ने 2010 से 2015 के बीच और हाल ही में अमेरिका के साथ विवाद में इस दबाव को प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया है। ऐसा कोई कारण नहीं है कि वह एक व्यापक गठबंधन के खिलाफ इसे दोबारा इस्तेमाल न करे।
भारत को दंडित करने का तर्क तो और भी बेतुका है। भारत अमीर अर्थव्यवस्थाओं का रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी नहीं है और दशकों तक नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने अभी-अभी ब्रिटेन के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। ब्रुसेल्स के साथ भी एक समझौता प्रक्रिया में है। जापानी वाहन निर्माता कंपनियां, जैसे सुजुकी मोटर कॉर्प और होंडा मोटर कंपनी, सालों से भारत में धैर्यपूर्वक निवेश कर रही हैं। अब सुमितोमो मित्सुई फाइनेंशियल ग्रुप और मिज़ुहो फाइनेंशियल ग्रुप जैसी वित्तीय संस्थाएं भी विस्तार की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।
भारत के पास चीन जैसी सौदेबाजी की ताकत नहीं है, इसलिए ट्रंप के लिए यह आसान रहा कि वह सस्ते रूसी तेल की खरीद को लेकर भारत को निशाना बनाएं। हालांकि, आगे और सख्त कार्रवाई की धमकी उल्टा असर डाल सकती है। हालांकि, ऐसा नहीं लगता कि अमेरिका, भारत को चीन और रूस की ओर धकेलना चाहता है। भले ही ट्रंप पहले से लगाए गए 50% टैरिफ को और अधिक बढ़ाने की धमकी दे रहे हों, उन्हें इस बात का भरोसा भी है कि वे एक ट्रेड डील कर लेंगे।
भारतीय व्यापार वार्ताकार ऐसा समझौता चाहेंगे, जिसमें भारत ज्यादातर वस्तुओं पर टैरिफ घटा दे और बदले में अमेरिका लगभग 20% टैरिफ लगाए। इससे भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा दक्षिण-पूर्व एशिया के समान स्तर पर बनी रहेगी।
लेकिन अमेरिका की मांगें केवल भारतीय रिफाइनरीज द्वारा रूसी तेल की खरीद बंद करने तक सीमित नहीं हैं। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा है कि भारत के 1.4 अरब लोग अमेरिका के मक्के की एक बुशल भी नहीं खरीदते। उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर भारत, अमेरिका में उगाया गया मक्का खरीदने से इनकार करता है, तो उसकी भी अमेरिकी बाजार में एंट्री बंद हो सकती है।
Published on:
16 Sept 2025 05:04 pm
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