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PICS : बीस दिन बाद राहत होने लगी खत्म तो भटकने लगी महिलाएं

पाली। इतने लम्बे अंतराल के बाद एक बार फिर शहर में अलग- अलग कोलोनीयों में राहत सामग्री समाप्त होने पर महिलाएं कलक्टरी के चक्कर काटने लगी। मगर कलक्टरी में किसी को भी राहत सामग्री के लिए चक्कर काटने की मनाई और परिसर में जाने को रोक के चलते यह महिलाएं दिनभर इघर से उधर भटकती नजर आने लगी है।

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बीस दिन बाद  राहत होने लगी खत्म तो भटकने लगी महिलाएं

पाली। इतने लम्बे अंतराल के बाद एक बार फिर शहर में अलग- अलग कोलोनीयों में राहत सामग्री समाप्त होने पर महिलाएं कलक्टरी के चक्कर काटने लगी। मगर कलक्टरी में किसी को भी राहत सामग्री के लिए चक्कर काटने की मनाई और परिसर में जाने को रोक के चलते यह महिलाएं दिनभर इघर से उधर भटकती नजर आने लगी है। इन महिलाओं का कहना है कि एक बार मिली राहत सामग्री अब समाप्त हो गई अब से परिवार को कैसे पाले। हमें कोई मजा थोड़ी आता है यहा के चक्कर काटने में। हम खुद भी जानते है कि बीमारी चल रही है। मगर हमारी मजबूरी है। सरकार को अब वापस हमें राहत देनी चाहिए। सभापति ने आश्वासन दिया है लेकिन नगर परिषद में भी घुसने नही दिया जा रहा है। मजदूरी कर पेट भरने वाले परिवार से होने के चलते काम धंधे बंद पड़े है गुजारा करना मुश्किल हो गया है।

बीस दिन बाद  राहत होने लगी खत्म तो भटकने लगी महिलाएं

पाली। इतने लम्बे अंतराल के बाद एक बार फिर शहर में अलग- अलग कोलोनीयों में राहत सामग्री समाप्त होने पर महिलाएं कलक्टरी के चक्कर काटने लगी। मगर कलक्टरी में किसी को भी राहत सामग्री के लिए चक्कर काटने की मनाई और परिसर में जाने को रोक के चलते यह महिलाएं दिनभर इघर से उधर भटकती नजर आने लगी है। इन महिलाओं का कहना है कि एक बार मिली राहत सामग्री अब समाप्त हो गई अब से परिवार को कैसे पाले। हमें कोई मजा थोड़ी आता है यहा के चक्कर काटने में। हम खुद भी जानते है कि बीमारी चल रही है। मगर हमारी मजबूरी है। सरकार को अब वापस हमें राहत देनी चाहिए। सभापति ने आश्वासन दिया है लेकिन नगर परिषद में भी घुसने नही दिया जा रहा है। मजदूरी कर पेट भरने वाले परिवार से होने के चलते काम धंधे बंद पड़े है गुजारा करना मुश्किल हो गया है।

बीस दिन बाद  राहत होने लगी खत्म तो भटकने लगी महिलाएं

पाली। इतने लम्बे अंतराल के बाद एक बार फिर शहर में अलग- अलग कोलोनीयों में राहत सामग्री समाप्त होने पर महिलाएं कलक्टरी के चक्कर काटने लगी। मगर कलक्टरी में किसी को भी राहत सामग्री के लिए चक्कर काटने की मनाई और परिसर में जाने को रोक के चलते यह महिलाएं दिनभर इघर से उधर भटकती नजर आने लगी है। इन महिलाओं का कहना है कि एक बार मिली राहत सामग्री अब समाप्त हो गई अब से परिवार को कैसे पाले। हमें कोई मजा थोड़ी आता है यहा के चक्कर काटने में। हम खुद भी जानते है कि बीमारी चल रही है। मगर हमारी मजबूरी है। सरकार को अब वापस हमें राहत देनी चाहिए। सभापति ने आश्वासन दिया है लेकिन नगर परिषद में भी घुसने नही दिया जा रहा है। मजदूरी कर पेट भरने वाले परिवार से होने के चलते काम धंधे बंद पड़े है गुजारा करना मुश्किल हो गया है।

बीस दिन बाद  राहत होने लगी खत्म तो भटकने लगी महिलाएं

पाली। इतने लम्बे अंतराल के बाद एक बार फिर शहर में अलग- अलग कोलोनीयों में राहत सामग्री समाप्त होने पर महिलाएं कलक्टरी के चक्कर काटने लगी। मगर कलक्टरी में किसी को भी राहत सामग्री के लिए चक्कर काटने की मनाई और परिसर में जाने को रोक के चलते यह महिलाएं दिनभर इघर से उधर भटकती नजर आने लगी है। इन महिलाओं का कहना है कि एक बार मिली राहत सामग्री अब समाप्त हो गई अब से परिवार को कैसे पाले। हमें कोई मजा थोड़ी आता है यहा के चक्कर काटने में। हम खुद भी जानते है कि बीमारी चल रही है। मगर हमारी मजबूरी है। सरकार को अब वापस हमें राहत देनी चाहिए। सभापति ने आश्वासन दिया है लेकिन नगर परिषद में भी घुसने नही दिया जा रहा है। मजदूरी कर पेट भरने वाले परिवार से होने के चलते काम धंधे बंद पड़े है गुजारा करना मुश्किल हो गया है।

बीस दिन बाद  राहत होने लगी खत्म तो भटकने लगी महिलाएं

पाली। इतने लम्बे अंतराल के बाद एक बार फिर शहर में अलग- अलग कोलोनीयों में राहत सामग्री समाप्त होने पर महिलाएं कलक्टरी के चक्कर काटने लगी। मगर कलक्टरी में किसी को भी राहत सामग्री के लिए चक्कर काटने की मनाई और परिसर में जाने को रोक के चलते यह महिलाएं दिनभर इघर से उधर भटकती नजर आने लगी है। इन महिलाओं का कहना है कि एक बार मिली राहत सामग्री अब समाप्त हो गई अब से परिवार को कैसे पाले। हमें कोई मजा थोड़ी आता है यहा के चक्कर काटने में। हम खुद भी जानते है कि बीमारी चल रही है। मगर हमारी मजबूरी है। सरकार को अब वापस हमें राहत देनी चाहिए। सभापति ने आश्वासन दिया है लेकिन नगर परिषद में भी घुसने नही दिया जा रहा है। मजदूरी कर पेट भरने वाले परिवार से होने के चलते काम धंधे बंद पड़े है गुजारा करना मुश्किल हो गया है।