
काशी विश्वनाथ विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में गंगा नदी के तट पर विद्यमान हैं। द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रमुख काशी विश्वनाथ जहां वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजे हैं। मान्यता है कि पवित्र गंगा में स्नान और काशी विश्वनाथ के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

तिल भांडेश्वर महादेव तिलभाण्डेश्वर इनका आकार काशी के तीन सबसे बड़े शिवलिंगों में से एक है और हर वर्ष इसमें तिल भर की वृद्धि होती है। इस स्वयंभू शिवलिंग के बारे में वर्णित है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र की भूमि पर तिल की खेती होती थी। एक दिन अचानक तिल के खेतों के मध्य से शिवलिंग उत्पन्न हो गया। जब इस शिवलिंग को स्थानीय लोगों ने देखा तो पूजा-अर्चन करने के बाद तिल चढ़ाने लगे। मान्यता है कि तभी से इन्हें तिलभाण्डेश्वर कहा जाता है।

श्री जागेश्वर महादेव मंदिर ईश्वरगंगी मोहल्ले में स्थित श्री जागेश्वर महादेव मंदिर में हजारों वर्ष पुराना शिवलिंग है। जिसकी लंबाई हर महाशिवरात्री को जौ के बराबर अपने आप बढ़ जाती है। मान्यता है कि अगर कोई इस शिवलिंग का तीन साल तीन महीने दर्शन कर ले या सिर्फ तीन महीने ही दर्शन कर ले तो उसके सारे कष्ट दूर होने के साथ हर मनोकामना भी पूरी हो जाती है।

मारकेंडेय महादेव श्रावण मास में भगवान शंकर की पूजा का विशेष महत्व है। भगवान शिव का एक रूप है श्री मारकंडेश्वर महादेव। इनका यह मंदिर बनारस से करीब 30 किमी दूर गंगा-गोमती के संगम तट पर स्थित है। मार्कंडेय महादेव मंदिर शिवभक्तों के लिए बहुत खास माना जाता है। यहां सावन में शिवभक्तों का तांता लग जाता है। यह मंदिर वाराणसी गाजीपुर राजमार्ग पर कैथी गांव के पास है। यहां सावन माह में भी एक माह का मेला लगता है। मार्कण्डेय महादेव मंदिर उत्तर प्रदेश के धार्मिक स्थलों में से एक है। विभिन्न प्रकार की परेशानियों से ग्रसित लोग अपनी दुःखों को दूर करने के लिए यहां आते हैं।

तारकेश्वर महादेव तारकेश्वर महादेव के दर्शन व पूजन तो हर मास में किए जाते हैं पर सावन मास के सोमवार को यहां जलाभिषेक से भक्तों को असीम फल प्राप्त होता है। यह मंदिर विंध्याचल के पूरब दिशा में स्थित तारकेश्वर महादेव का जिक्र पुराण में भी किया गया है। मंदिर के समीप एक कुंड स्थित है। माना जाता है कि तराक नामक असुर ने मंदिर के समीप एक कुंड को खोदा था। भगवान शिव ने ही तारक का वध किया था। इसलिए उन्हे तारकेश्वर महादेव भी कहा जाता है। कुंड के समीप ही कई शिवलिंग स्थापित हैं। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने तारकेश्वर के पश्चिम दिशा की ओर एक और कुंड और भगवान शिव मंदिर का निर्माण कराया था।