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नमो ने पढ़ा जन-गण का मन, 2 सीटों से शुरू कर अब जीता ‘वतन’

1984 में बीजेपी को मिली थीं दो सीटें 2004 और 2009 लोकसभा चुनाव में बीजेपी का ग्राफ नीचे गिरा 2014 से BJP ने फिर लहराया परचम

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नई दिल्ली। दो महीने के लंबे सफर के बाद लोकतंत्र के महापर्व यानी लोकसभा चुनाव 2019 का परिणाम आ चुका है। बीजेपी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ( NDA ) इस चुनाव में प्रचंड बहुमत से जीत हासिल कर चुकी है। वहीं, यूपीए का सूपड़ा साफ हो गया है। कई राज्यों में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया है तो ममता के गढ़ बंगाल में बीजेपी ने बड़ी सेंध लगाई है। एनडीए ने 352 सीटों पर विजय पताका फहराई है तो यूपीए 87 पर ही सिमट गई। यह सब हासिल करने वाली भाजपा के लिए यहां तक पहुंचना आसान काम नहीं था। चार दशक में यह ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करने वाली भाजपा ने यह सफलता मोदी-मैजिक के दम पर हासिल की और पीएम मोदी लोगों के मन में उतरने में सफल रहे।

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1984 से भाजपा का आगाज

1980 में बीजेपी की स्थापना हुई थी और पहली बार वह 1984 का चुनाव लड़ी थी। इस चुनाव में पार्टी ने दो सीटों हनामकोड़ा (आंध्रप्रदेश) और मेहसाणा( गुजरात) पर जीत दर्ज की थी। वहीं, 1989 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 85 सीटों पर जीत हासिल किया था। लेकिन, भाजपा का असली खेल शुरू हुआ 1991 से जब पार्टी ने उत्तर प्रदेश को टारगेट करते हुए राम मंदिर को अपना मुद्दा बनाया।

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इस चुनाव में दूसरी बड़ी पार्टी बनते हुए बीजेपी को 120 सीटें मिली थी। वहीं, यूपी में पार्टी को 85 में से 51 सीटों पर जीत मिली, जबकि गुजरात में पार्टी के खाते में 20 सीटें आई। यहां से बीजेपी का ग्राफ बढ़ना शुरू हुआ। 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी के साथ-साथ मध्य प्रदेश और बिहार को टारगेट किया। परिणाय यह हुआ कि तीनों राज्यों में पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया और देश की सबसे बड़ी पार्टी बनते हुए अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केन्द्र में NDA की सरकार बनी। इस चुनाव में बीजेपी को 161 मिली थी। हालांकि, 13 दिन के बाद ही सरकार गिर गई।

1996 लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने जीतोड़ मेहनत शुरू की और 1998 के चुनाव में पार्टी ने 182 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा ने इस चुनाव में 388 प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे। इस चुनाव में भाजपा को यूपी में सबसे ज्यादा 57 सीटें मिली। पार्टी ने 17 राज्यों और 4 केंद्र शासित क्षेत्रों से सभी सीटें जीतीं। 13 तक महीने तक केन्द्र में NDA की सरकार रही।

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1999 में फिर लोकसभा चुनाव हुआ और एक बार फिर केन्द्र में एनडीए की सरकार बनी। एनडीए को 269 सीटें मिलीं और उसे तेलुगु देशम के 29 सदस्यों का बाहर से समर्थन प्राप्त था। इस चुनाव में बीजेपी अकेले 182 सीटों पर जीतने में कामयाब रही थी। वहीं, बीजेपी की सहयोगी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को भी 21 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। शिवसेना 15 और डीएमके के 12 उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे। इस चुनाव से बीजेपी ने दक्षिण भारत में अपना पैर पसारना शुरू कर दिया था। हालांकि, दक्षिण भारत में पार्टी का खाता 1998 के लोकसभा चुनाव में ही खुल गई थी।

2004 और 2009 में गिरा BJP का ग्राफ

2004 में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी और पार्टी 138 सीटों पर ही सिमट गई। केन्द्र में कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार बनी। इस चुनाव में बीजेपी को भले ही हार का सामना करना पड़ा हो, लेकिन जिन राज्यों पर उसने फोकस किया वहां उसे कामयाबी मिली।

2004 के चुनाव में बीजेपी का मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर खासा फोकस रहा और पार्टी ने यहां बेहतर प्रदर्शन किया। मध्य प्रदेश में बीजेपी ने 29 में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, छत्तीसगढ़ में 11 में से पार्टी ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की। जबकि, राजस्थान में 25 में 21 सीटें बीजेपी को मिली।

2009 के आम चुनाव में BJP को फिर झटका लगा और पार्टी को केवल 116 सीटें मिली। किसी भी राज्य में पार्टी का अच्छा प्रदर्शन नहीं हुआ। वहीं, 2014 लोकसभा चुनाव में पार्टी ने एक बार फिर राम मंदिर का मुद्दा उठाते हुए उत्तर प्रदेश को टारगेट किया। पार्टी ने अकेले बहुमत हासिल करते हुए 282 सीटों पर जीत दर्ज की। यूपी में एक बार फिर BJP की वापसी हुई और 80 में से 71 सीटों पर पार्टी ने जीत दर्ज की। इसके अलावा बिहार , एमपी, राजस्थान और गुजरात में भी पार्टी का प्रदर्शन काफी जबरदस्त रहा। इन आकंड़ों से साफ स्पष्ट है कि बहुमत पाने में भाजपा भले ही सक्ष्म रही हो या न रही हो, लेकिन अपना टारगेट अजीव करने में पार्टी हमेशा कामयाब रही है।

39 साल के सफर में बीजेपी ने चुनाव के दौरान हर बार अलग-अलग राज्यों को फोकस किया और पार्टी अपने मकसद में कामयाब भी हुई। इसी का यह परिणाम है कि इस चुनाव में बीजेपी ने बंगाल को पूरी तरह से टारगेट किया और जो अब तक के रुझान आ रहे हैं, उससे साफ लगा रहा है कि एक बार फिर BJP अपने मकसद में कामयाब हो सकती है। ऐसे में देखना यह होगा कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 'बंगाल टाइगर' का खिताब अपने नाम कर पाएंगे? साथ पार्टी अपने मकसद में कामयाब हो पाएगी या नहीं?