
बेगूसराय से नवनीत मिश्र
देश की जिन कुछ सीटों पर वामपंथ का मजबूत असर है, उनमें बेगूसराय प्रमुख है। वामपंथ का गढ़ होने के कारण कोई बेगूसराय को पूरब का लेनिनग्राद कहता है तो कोई मिनी मास्को। चुनावी माहौल टटोलने के लिए पटना से तपती दुपहरी में 3 घंटे का सफर पूरा कर यहां हम पहुंचे तो लेफ्ट के लाल और भाजपा के भगवा रंग के बीच जमीन पर संघर्ष दिखा। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह सीट पर भाजपा की भगवा लहर बरकरार रखने की कोशिश में जुटे हैं तो राजद और कांग्रेस समर्थित लेफ्ट उम्मीदवार अवधेश राय जातीय-सामाजिक समीकरणों के सहारे बेगूसराय पर तीन दशक बाद लाल रंग चढ़ाना चाहते हैं।
बेगूसराय का नाता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर से है। यहां के सिमरिया में जन्मे दिनकर जी वीर रस की ऐसी कविताएं लिखते थे कि लोगों की बाजुएं फड़फड़ा उठतीं थीं। वे आजादी के आंदोलन के दौरान कविताओं से राष्ट्रवाद का ज्वार पैदा करते थे तो मौजूदा समय फायरब्रांड नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह चुनाव के दौरान अपने भाषणों से हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की बयार बहाने की कोशिश करते हैं। पक्ष-विपक्ष के बयान खूब सुर्खियों में हैं। विपक्ष निशाना साधता है कि गिरिराज सिंह ऐसे नेता हैं, जो बात-बात पर पाकिस्तान तक धावा बोल देते हैं। लेफ्ट उम्मीदवार अवधेश राय ने तो यहां तक कह दिया कि शिखा रखने और चंदन लगाने से कोई हिंदू नहीं बन जाता। उधर, गिरिराज चुनावी सभाओं में स्पष्ट कहते हैं- मुझे पाकिस्तानपरस्त देशद्रोहियों का वोट नहीं चाहिए।
पिछली बार तिकोणीय मुकाबले में लेफ्ट उम्मीदवार और जेएनयू के चर्चित छात्रसंघ अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार को 4 लाख से ज्यादा मतों के भारी भरकम अंतर से हराने में सफल रहे गिरिराज सिंह के लिए इस बार बदले समीकरण कुछ चुनौती पेश कर रहे हैं। वजह कि इस बार विपक्ष ने एक ही उम्मीदवार खड़ा किया है। लेफ्ट उम्मीदवार अवधेश राय को राजद और कांग्रेस का मजबूत समर्थन मिल रहा है। कहा जाता है कि पिछली बार लेफ्ट से कन्हैया कुमार को टिकट मिलना लालू यादव को रास नहीं आया था तो उन्होंने सबक सिखाने के लिए आरजेडी से तनवीर हसन को उतार दिया था, जो 2014 में भाजपा उम्मीदवार भोला सिंह से 58 हजार वोटों से हार गए थे। तब आरजेडी के तनवीर हसन 1.98 लाख वोट काटने में सफल रहे थे और कन्हैया को 2.67 लाख वोट मिले थे। महागठबंधन के वोटों के बिखराव से गिरिराज सिंह आसानी से जीतने में सफल रहे थे। इस बार मुकाबला बाईपोलर यानी आमने-सामने का है। ऐसे में गिरिराज सिंह मोदी मैजिक, हिंदुत्व, डबल इंजन(मोदी-नीतीश) सरकार के विकास की डोज से मैदान मारना चाहते हैं तो पिछड़ी जाति के अवधेश राय जातीय समीकरणों और एंटी इन्कमबेंसी के सहारे बाजी पटलने की फिराक में है।
गंगा, बूढ़ी गंडक, बलान, बैंती, बाया और चंद्रभागा नदियों वाले बेगूसराय में एशिया की सबसे बड़ी मीठे जल की झीलों में से एक कावर झील भी है। सात विधानसभा वाले बेगूसराय में तीन एनडीए के पास तो दो-दो राजद और सीपीएम के पास हैं।
बेगूसराय में कभी 200 से भी ज्यादा कल-कारखाने हुआ करते थे, लेकिन सरकारी उदासीनता आदि कारणों से अधिकतर बंद हो चुके हैं। ये मुद्दे चुनाव में गूंज रहे हैं। व्यवसाई प्रदीप कुमार कहते हैं कि राज्य की सरकारों ने कभी इंडस्ट्री की तरफ ध्यान नहीं दिया। बिजली, इंफ्रास्ट्रक्चर और कच्चे माल और बाजार के अभाव में यहां के कल-कारखाने बंद होते गए। फिलहाल बरौनी में इण्डियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड की रिफाइनरी, थर्मल पावर स्टेशन और हिंदुस्तान फर्टिलाइजर लिमिटेड के कारखाने यहां की प्रतिष्ठा बचाए हुए हैं। यहां मोमबत्ती, कार्बन, अलकतरा आदि का उद्योग चल रहा था। शिक्षा की बात करें तो यहां ललित नारायण, महंथ कॉलेज, गणेश दत्त महाविद्यालय और महिला कॉलेज भी है।
यहां मतदाताओं से बात करने पर पता चलता है कि ब्रांड मोदी अब भी मजबूत है। कई मतदाता ऐसे मिले, जो महंगाई और बेरोजगारी से परेशान हैं, लेकिन उन्हें अंतिम उम्मीद भी मोदी से ही है। पटना से बेगूसराय जाने वाली सड़क किनारे मिले राजेंद्र कुमार मुझसे ही सवाल पूछते कहते हैं- मोदी के मुकाबले कौन है? महागठबंधन ने किसी को चेहरा बनाया होता तो तुलना कर वोट करते, हमारे पास तो कोई ऑप्शन नहीं हैं। सुनीता देवी कहती हैं कि जमीन(किसान सम्मान निधि) का दो हजार रुपया खाते में आता है, राशन भी मिलता है, तो क्यों न मोदी को वोट करें। हालांकि, कुछ युवाओं से बात करने पर उन्हें मोदी सरकार से गहरी नाराजगी दिखती है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे सुशील, राकेश आदि युवाओं का कहना है कि उन्हें मोदी सरकार ने निराश किया है। पिछली बार उन्होंने मोदी को वोट दिया था, लेकिन रेलवे, एससएसी, सेना आदि में वैकेंसी कम होने के कारण इस बार वो वोट नहीं करेंगे। सीट पर मुस्लिम और यादव मतदाता महागठबंधन के साथ मजबूती से खड़े मिलते हैं। तस्लीम और विकास यादव ने कहा कि जब डिप्टी सीएम रहते तेजस्वी यादव ने शिक्षकों की भर्ती कराई तो मुख्यमंत्री होने पर बहुत कुछ करेंगे। इसलिए इस चुनाव में भी तेजस्वी को मजबूत करना जरूरी है।
स्थानीय मतदाताओं का कहना है कि बेगूसराय में 2019 जैसा रोचक चुनाव नहीं है। कारण हैं कन्हैया कुमार। कन्हैया भले ही 4 लाख से ज्यादा मतों से हारे थे, लेकिन उनकी वजह से यह देश की सबसे चर्चित सीट बन गई थी। तब कन्हैया कुमार के समर्थन में फिल्मी सितारे प्रकाश राज, शबाना आजमी, जावेद अख्तर, स्वरा भास्कर ने यहां प्रचार कर ग्लैमर का तड़का लगाया था। इस बार लेफ्ट से अवधेश राय के चुनाव लड़ने से उतना आकर्षण नहीं दिख रहा है। बेगूसराय में 2009 को छोड़ दिया जाए तो हमेशा अगड़ी जाति के भूमिहार ही यहां से सांसद बनते आए हैं। 2009 में जदयू से जीते मोनाजिर हसन ही गैर भूमिहार सांसद हुए हैं। 2014 में जदयू के अलग होने के बाद भाजपा ने यहां भाकपा से राजनीति शुरू करने वाले भोला सिंह को उतारकर मोदी लहर में अपना खाता खोला था। भोला सिंह के निधन के बाद भाजपा ने 2019 में गिरिराज सिंह पर सफल दांव खेला था।
भूमिहार- 16
मुस्लिम- 14
यादव - 8
पासवान- 8
कुर्मी- 7
Updated on:
11 May 2024 03:23 pm
Published on:
11 May 2024 03:01 pm
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