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नई दिल्ली। दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्र संघ (डूसू) चुनाव के लिए बुधवार को संपन्न हुए मतदान के लिए आज यानी गुरुवार को मतगणना शुरू हो चुकी है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या दिल्ली यूनिवर्सिटी में छात्र संघ का चुनावी के परिणाम 2019 आम चुनाव का आईना दिखाएगा? अतीत में भी डीयूएसयू चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक दलों के लिए 'मूड ऑफ नेशन' का काम किया है। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक डीयूएसयू चुनाव में आगामी आम चुनाव की तस्वीर देख रहे हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनाव राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं। दरअसल, डीयू में चुनाव के परिणाम दर्शाते हैं कि छात्र किन-किन और महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में क्या राय रखते हैं। यही कारण है कि राजनीतिक दलों ने इस बात को महसूस कर चुनावों में समय और पैसा निवेश करना शुरू किया है। अगर देश में हुए पिछले आम चुनावी वर्षों और डीयूएसयू चुनावों के परिणामों पर नजर डालें तो 'मूड आॅफ नेशन' के फार्मूले को समझा जा सकता है। 1999 में जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने एक कमजोर बहुमत हासिल किया, तब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने भी डीयू में वापसी की। 2003 में, कांग्रेस के कॉलेज संगठन, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया या एनएसयूआई ने बहुसंख्यक डीयूएसयू सीटें जीतीं। ऐसा ही कुछ माहौल अगले वर्ष भी देखने को मिला, जब कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (सप्रंग) ने 2004 के आम चुनावों में एनडीए को झटका दिया। 2007 तक, एनएसयूआई ने डीयूएसयू चुनावों की अपना दबदबा जारी रखा।
फिर इसके बाद केंद्रीय राजनीति के साथ ही डीयू की सियासत में भी बदलाव देखने को मिला। 2010 में एबीवीपी ने फिर बड़ा मुकाम हासिल किया और 2012 को छोड़कर, संघीय पदों में से अधिकांश जीते। 2014 और 2015 में एनएसयूआई का सूफड़ा साफ कर दिया। क्या यह केवल एक संयोग भर है कि डीयू चुनाव में एबीवीपी के पक्ष में बने भारी माहौल के साथ ही भाजपा ने 2014 के आम चुनावों में सप्रंग को करारी पटखनी दी।
Updated on:
13 Sept 2018 11:39 am
Published on:
13 Sept 2018 10:57 am
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