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गुजरात चुनाव: भाजपा प्रोफेशनल एजेंसी के सहारे हर विधानसभा सीट पर रख रही नजर, जीत के प्रति नहीं आश्वस्त

पाटीदारों-पटेलों के कांग्रेस के पक्ष में मुडऩे की खबरों से भाजपा नेतृत्व के होश उड़े

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Gujrat Election: BJP surveying on all seats by professional agency

Gujrat Election: BJP surveying on all seats by professional agency

नई दिल्ली। एक सर्वे एजेंसी के अनुमान के मुताबिक गुजरात में एक बार फिर भाजपा की सरकार बन सकती है। उसे लगभग 49 फीसदी मतों के सहारे 115 से 125 सीटों पर जीत मिलने की संभावना व्यक्त की गई है। लेकिन इसी बीच खबर है कि भाजपा खुद अपनी जीत के प्रति उतनी आश्वस्त नहीं है। यही कारण है कि वह हर रोज, हर एक विधानसभा सीट से जमीनी स्थिति की रिपोर्ट ले रही है। जमीनी स्थिति के निष्पक्ष आकलन के लिए वह एक प्राइवेट प्रोफेशनल एजेंसी का सहारा ले रही है।

भाजपा गुजरात में पिछले 22 सालों से सत्ता में है। राज्य में पार्टी संगठन की नींव बहुत गहरी है और हर विधानसभा में बूथ स्तर तक उसके अपने 'डेडीकेटेड' कार्यकर्ता हैं। उसे हर जगह से जमीनी रिपोर्ट मिल रही है। लेकिन इन कार्यकर्ताओं से मिलने वाली रिपोर्ट के 'बायस्ड' होने की संभावना हमेशा बनी रहती है, यही कारण है कि एक स्वतंत्र एजेंसी के सहारे रिपोर्ट निकालकर वह राज्य में अपनी स्थिति का बिल्कुल सही और दोषरहित आकलन करना चाहती है। इसी वजह से पार्टी ने आकलन के लिए एक प्रोफेशनल एजेंसी का सहारा लिया है।

रिपोर्ट का असर

पिछले एक महीने के अंदर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गुजरात में पांच यात्राओं का मकसद बेवजह नहीं है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक भाजपा राज्य में अपनी जीत के प्रति पिछले चुनावों की तरह आश्वस्त नहीं है। इसकी बड़ी वजह पटेलों का आंदोलन, पाटीदारों का कांग्रेस के प्रति झुकाव, दलितों की पिटाई जैसे मामलों के सामने आने से पार्टी की छवि पर पड़ा नकारात्मक असर और कांग्रेस का लगातार मुखर होते जाना है। पार्टी के अंदर अंदरूनी राजनीति भी उसे नुकसान पहुंचा सकती है। नितिन पटेल की मुख्यमंत्री पद पर नजर और रूपानी से रिश्ते अब भी तल्खी के दौर में हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पार्टी में अपनी भूमिका से संतुष्ट नहीं बताई जा रही हैं। विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगडिय़ा किसी भी तरह भाजपा को राज्य में हराने के लिए प्रयत्नशील बताए जा रहे हैं। वे लगातार गुजरात में जनसंपर्क कर गोरक्षा और किसानों का मुद्दा उठा रहे हैं। खुद RSS की गुजरात चुनाव में भूमिका संदिग्ध हो चली है। यूपी के मुख्यमंत्री के चयन में मोदी के पर कतर चुकी आरएसएस अब गुजरात में भी मोदी का साथ कुछ खास कारणों से नहीं देती दिख रही है। पार्टी को आशंका है कि ये सारे फैक्टर मिलकर उसके लिए विधानसभा चुनावों में परेशानी का सबब बन सकते हैं।

भरपाई की कोशिश

भारतीय जनता पार्टी को पता है कि गुजरात विधानसभा चुनाव का असर 2019 के आम चुनाव तक जा सकता है। गुजरात में एक जीत राहुल गांधी को 2019 में प्रधानमंत्री पद के लिए एक प्रबल दावेदार के रूप में खड़ा कर सकती है, और खुद प्रधानमंत्री मोदी को पता है कि यह चुनाव भाजपा से ज्यादा उनकी अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न है। यही कारण है कि वे लगातार गुजरात अस्मिता का राग अलाप रहे हैं। उनके द्वारा ऐन चुनाव से पहले तमाम घोषणाओं और उद्घाटनों को इसी नजर से देखा जा सकता है।
खबर है कि पार्टी एजेंसी से मिली रिपोर्ट पर लगातार कार्रवाई कर रही है। जहां भी जनता में नाराजगी है, उसे स्थानीय स्तर तक प्राथमिकता में रखा जा रहा है और उसका हर संभव निदान करने का निर्देश दिया गया है। भाजपा का ये टोटका कितना कारगर रहा, ये मतगणना के दिन 18 दिसंबर को पता चल जाएगा।