script2014 के हीरो अन्ना हजारे, 2019 में अप्रासंगिक कैसे हो गए? | How Hero of 2014 Anna Hazare become irrelevant 2019 before election? | Patrika News

2014 के हीरो अन्ना हजारे, 2019 में अप्रासंगिक कैसे हो गए?

locationनई दिल्लीPublished: Apr 25, 2019 09:29:03 am

Submitted by:

Dhirendra

अन्‍ना की नीयत पर आप सवाल नहीं उठा सकते
वक्‍त रहते केजरीवाल को मंच का दुरुपयोग करने से नहीं रोका
अब गले नहीं उतरता अन्‍ना का अनशन

anna hazare

2014 के हीरो अन्ना हजारे, 2019 में अप्रासंगिक कैसे हो गए?

नई दिल्‍ली। 2011 में अन्‍ना हजारे जन लोकपाल, किसान, भ्रष्‍टाचार और कालेधन के मुद्दे पर यूपीए-टू सरकार के खिलाफ जब पहली बार जंतर-मंतर पर अनशन करने बैठे तो पूरा देश सियासी करवट लेने लगा। जन समर्थन को देखते हुए न केवल मनमोहन सरकार अन्‍ना आंदोलन के डर से झुकी बल्कि यूपीए टू सरकार को संसद में जन लोकपाल बिल भी पास करना पड़ा। इसके बावजूद पांच साल पहले संपन्‍न लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस सत्‍ता से बेदखल हो गई। नरेंद्र मोदी देश के नए प्रधानमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री बने।
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सवाल उठना वाजिब है

करीब पांच साल बाद एक बार फिर लोकसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है। रफाल घोटाला इस बार भी चुनावी मुद्दा है। भ्रष्‍टाचार और कालेधन पर अभी भी लगाम नहीं लगा है। लेकिन अन्‍ना परिदृश्‍य से गायब हो गए हैं। इसलिए यह सवाल उठना वाजिब है कि क्‍या अन्‍ना अब भारतीय व्‍यवस्‍था के लिहाज से अप्रसांगिक हो गए! अगर नहीं, तो 2014 के हीरो ‘अन्‍ना’ 2019 आते-आते गुमनाम क्‍यों हो गए?
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केजरीवाल एपिसोड के बाद से बदलने लगी थी धारणाएं

करीब सात साल पहले अरविंद केजरीवाल ने अन्‍ना आंदोलन के मंच से आम आदमी पार्टी के नाम से नई राजनीतिक पार्टी का ऐलान किया था। तभी से अन्‍ना को लेकर जनमानस में व्‍याप्‍त धारणाएं भी बदलने लगीं। वजह ये रही कि अन्‍ना ने न तो राजनीतिक पार्टी बनाने के केजरीवाल के फैसले का मंच से सीधा विरोध किया और न ही केजरीवाल सरकार के भ्रष्‍टाचारियों के खिलाफ कभी अनशन करने जैसा कदम उठाया।
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गले नहीं उतरता अन्‍ना का अनशन, पर क्‍यों?

अन्‍ना ने यूपीए-टू के समय अनशन के दो बड़े कारण बताए थे। पहला कालेधन और भ्रष्‍टाचार पर रोक के लिए जन लोकपाल और दूसरा किसान हित। लेकिन अब वही कारण लोगों के गले क्‍यों नहीं उतरते? अन्‍ना कहते हैं कि किसानों की उन्‍नति के लिए मोदी सरकार ठोस नीति नहीं बना पाई। लेकिन ऐसा पूरी तरह से नहीं है। मोदी सरकार के कार्यकाल में किसानों के हितों को लेकर एक नहीं कई कानून बने। जैसे पीएम फसल बीमा योजना, पीएम कृषि सिंचाई योजना, फसल लागत डेढ़ गुना, न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य देने का प्रावधान, पीएम किसान सम्‍मान योजना आदि। कालेधन पर रोक के लिए भी कानून बने हैं। कहीं यही वजह तो नहीं कि अन्‍ना अब अनशन करते भी हैं तो उनके आंदोलन को लोगों का 2011 वाला समर्थन नहीं मिलता। इसके पीछे एक धारणा यह भी है कि अन्‍ना केजरीवाल सरकर में व्‍याप्‍त अनियमितता, कर्नाटक में किसान द्वारा बड़ी संख्‍या में आत्‍महत्‍या करनेे और ममता सरकार में जारी भ्रष्‍टाचार के खिलाफ अनशन पर क्‍यों नहीं बैठते?
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2019 में अनशन पर बैठे, नहीं मिला समर्थन

समाजसेवी अन्‍ना हजारे जनवरी-फरवरी, 2019 में एक बार फिर रालेगण सिद्धि में किसानों के हितों को लेकर अनशन पर बैठे। इस बार उनके निशाने पर पीएम मोदी थे। उनका आरोप था कि किसान के मुद्दे लिखे खत का पीएम की ओर से जवाब नहीं मिलता। भ्रष्‍टाचार और कालेधन पर लगाम नहीं लगा। लेकिन इस बार उन्‍हें आम लोगों साथ नहीं मिला। न हीं लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इसे मुद्दा बनाना विपक्षियों के लिए संभव हो पाया। बस, यही वो घटना है जो यह सोचने के लिए विवश करता है कि क्‍या आज भी वही हालात हैं जो पांच साल पहले थे? इस बिंदु पर सोचना इसलिए भी जरूरी है कि आप अन्‍ना के त्‍याग और उनकी नीयत पर आज भी सवाल खड़ा नहीं कर सकते। लेकिन एक सवाल यह जरूर है कि मोदी सरकार के दौरान भ्रष्‍टाचार के ऐसे कौन से मामले सामने आए जिसकी वजह से अन्‍ना अनशन पर बैठे।
अन्‍ना अनशन पर बैठने से पहले पीएम को खत लिखते हैं। यूपीए टू के समय उन्‍होंने तत्‍कालीन पीएम डॉ. मनमोहन सिंह को भी पत्र लिखा था। उसके बाद पीएम मोदी को भी उन्‍होंने कई बार खत लिखेे। अपने खत में लोकपाल, किसान, भ्रष्‍टाचार और कालेधन को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। कार्रवाई न होने पर सरकार से सीधे जवाब ने देने का आरोप लगाते हैं। लेकिन सवाल यह है कि आजाद भारत में पीएम को किसके प्रति जवाबदेह होना चाहिए? संसद, संवैधानिक संस्‍था, जनता के प्रति या व्‍यक्ति विशेष के प्रति। ऐसा इसलिए कि अन्‍ना ने जब भी खत लिखा अपने स्‍तर पर लिखा और उसके जवाब पीएम से मांगे।
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