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इतिहास में दूसरी बार आधी रात को खुली सुप्रीम कोर्ट, कर्नाटक की खींचतान पर लगी अदालत

locationनई दिल्लीPublished: May 17, 2018 07:47:22 am

कर्नाटक में कांग्रेस और भाजपा के बीच चल रही खींचतान के बीच देश के न्यायपालिका के इतिहास में दूसरी बार आधी रात को खुली सुप्रीम कोर्ट।

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नई दिल्ली। चुनावी नतीजों के बाद उलझे कर्नाटक में लगभग तीस घंटे की खींचतान के बाद यह तय हो गया कि ताज भाजपा के येद्दयुरप्पा के सिर बंधेगा। बुधवार की देर रात राज्यपाल वजुभाई वाला ने सबसे बड़ी पार्टी के नेता के तौर पर येद्दयुरप्पा को सरकार गठन का आमंत्रण दे दिया है। वहीं, कांग्रेस इस मामले को लेकर बुधवार रात में ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक भाजपा को कुछ देर के लिए ही सही लेकिन बड़ी राहत दी है और येदियुरप्पा की शपथ पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन इस पूरी कवायद ने एक बार फिर इतिहास रचा, क्योंकि भारत के इतिहास में दूसरी बार सुप्रीम कोर्ट ने न्याय के लिए अपना दरवाजा खोला।
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देश सो रहा था, कोर्ट में दलीलों का दौर चल रहा था
देश की न्यायपालिका के इतिहास में ये दूसरी बार हुआ है जब न्याय के लिए सुप्रीम दरवाजा आधी रात को खुला हो। जब देश सो रहा तब सुप्रीम कोर्ट में दलीलों का दौर चल रहा था। कर्नाटक में राज्यपाल की ओर से बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता देने के खिलाफ कांग्रेस ने देर रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कांग्रेस की इस मांग पर मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने सोच विचार के बाद करीब 12 बजे अदालत लगाने का फैसला लिया। रात 1 बजे सीजेआई ने मामले की सुनवाई के लिए 3 जजों की बेंच गठित की और 2 बजकर 10 मिनट पर सुनवाई शुरू हो गई जो तड़के 5.30 बजे तक चली। इस सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की ओर से येदियुरप्पा का शपथ रोकने की मांग को ठुकरा दिया।

29 जुलाई 2015 को खुला था सुप्रीम दरवाजा
कर्नाटक में सरकार बनाने को लेकर चल रही खींचतान के अलावा देश की न्यायपालिका के इतिहास में सुप्रीम दरवाज एक बार पहले भी न्याय के लिए आधी रात को खुल चुका है। इससे पहले 29 जुलाई 2015 को पहली बार आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुला था। मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की याचिका, सुप्रीम कोर्ट, गवर्नर और बाद में राष्ट्रपति से खारिज होने के बाद फांसी से ठीक पहले आधी रात को वकील प्रशांत भूषण समेत 12 वकील चीफ जस्टिस के घर पहुंचे थे। तीन जजों की बैंच के सामने मामले पर सुनवाई शुरू हुई और आखिर में तीन जजों की लार्जर बेंच ने याकूब की फांसी की सजा को बरकरार रखा था।
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