दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल अनिल बैजल पर दिल्ली सरकार के कामकाज में दखलअंदाजी करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा “कैबिनेट निर्णयों को इस तरह पलटना दिल्ली वालों का अपमान है। दिल्ली के लोगों ने ऐतिहासिक बहुमत से “आप” की सरकार बनाई है और भाजपा को हराया है। भाजपा देश चलाए, “आप” को दिल्ली चलाने दें। लेकिन आए दिन दिल्ली सरकार के हर काम में इस तरह से बाधा उत्पन्न करना और दखलदेना दिल्ली की जनता का अपमान है। भाजपा जनतंत्र का सम्मान करे।”
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दरअसल, किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को हुई हिंसक घटना के संबंध में किसानों पर बने केस के लिए दिल्ली पुलिस ने स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर का नाम सुझाया था। इसको लेकर केजरीवाल सरकार ने आपत्ति दर्ज कराई और कहा था कि ऐसा करना गलत है, इसपर दिल्ली सरकार द्वारा सुझाए वकील केस लड़ेंगे। लेकिन अब उपराज्यपाल ने दिल्ली पुलिस के सुझाये स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर की लिस्ट पर अपनी मुहर लगा दी है।
उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार को चिट्ठी लिखकर बताया कि मामला राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया है। हालांकि, यह अर्जेंट मामला होने की वजह से संविधान में दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए दिल्ली पुलिस के सुझाये 11 वकीलों को किसानों के मामले में सरकारी वकील नियुक्त किया गया है।
केजरीवाल सरकार ने लिया था फैसला
आपको बता दें कि किसानों का केस लड़ने को लेकर केजरीवाल सरकार ने एक फैसला लिया था। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने बताया कि 19 जुलाई को केजरीवाल सरकार की कैबिनेट ने फैसला किया था कि किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसक घटना के संबंध में जो केस बने हैं, उसमें दिल्ली सरकार की ओर से चयन किए गए वकीलों की टीम ही केस लड़ेगी, दिल्ली पुलिस के नहीं। लेकि अब उपराज्यपाल ने केजरीवाल कैबिनेट के फैसले को पलटते हुए दिल्ली पुलिस द्वारा सुझाए गए वकीलों के पैनल पर अपनी मुहर लगा दी।
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सिसोदिया ने कहा कि आखिर केंद्र सरकार वकीलों की नियुक्ति में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रही है? आखिर केंद्र सरकार किसानों के खिलाफ ऐसा क्या करना चाह रही है? उन्होंने कहा कि यदि उपराज्यपाल ही वकीलों की नियुक्ति करेंगे तो फिर दिल्ली में चुनी हुई सरकार का क्या मतलब है? सिसोदिया ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि पांच जजों की बेंच ने दिल्ली सरकार को वकीलों की नियुक्ति का अधिकार दिया है।