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भागवत ने कहा कि सर सय्यद अहमद खान का उदहारण देते हुए कहा कि जब उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की तो लाहौर में आर्य समाज ने उनका अभिनंदन किया, क्योंकि वे मुस्लिम समुदाय के पहले छात्र थे जो बैरिस्टर बने थे। उस समारोह में सर सय्यद अहमद ख़ान ने कहा कि मुझे दु:ख है कि आप लोगों ने मुझे अपनों में शुमार नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘सभी मतों के तत्तव ज्ञान को हम हिन्दू धर्म कहते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि हिन्दू मत कहो, भारतीय कहो। बात तो एक ही है। हिन्दू शब्द के रहने से भारतीय स्वभाव नहीं बदलेगा।
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सरकार की नीतियों पर प्रभाव नहीं
भागवत बोले ‘यह पूरी तरह गलत है कि नागपुर से फोन आते हैं और सरकार में बैठे लोगों को निर्देश दिए जाते हैं। यदि उनको (भाजपा) सलाह की जरूरत होती है, तो वो पूछते हैं। हम सलाह दे सकते हैं तो देते हैं, लेकिन उनकी राजनीति और सरकार की नीतियों पर हमारा कोई प्रभाव नहीं है। भारत में शक्ति का केंद्र भारत का संविधान है, उसके अलावा कुछ नहीं। उन्होंने कहा कि संघ के खिलाफ संविधान के उल्लंघन का एक ही भी उदाहरण नहीं। भागवत बोले ‘संघ ने अपने सदस्यों से कभी भी नहीं कहा है या कभी नहीं कहेगा कि वो राजनीति में हस्तक्षेप करें। हम राष्ट्रनीति पर बोलते हैं, हम इसके बारे में छुपकर नहीं बोलते हैं और अपनी सामथ्र्य के अनुसार इसे करवाते हैं। चूंकि सामथ्र्यवान लोग निठल्ले नहीं बैठ सकते हैं।
हिन्दू और भारतीय, बात तो एक ही है’सभी मतों के तत्तव ज्ञान को हम हिन्दू धर्म कहते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि हिन्दू मत कहो, भारतीय कहो। बात तो एक ही है। हिन्दू शब्द के रहने से भारतीय स्वभाव नहीं बदलेगा।’
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राजनीति में हस्तक्षेप के लिए कभी नहीं कहा
मोहन भागवत ने कहा कि लोग कहते हैं कि संघ के स्वयंसेवक सिर्फ भाजपा में ही क्यों शामिल होते हैं? इस बारे में तो दूसरे राजनीतिक दलों को इस बारे में सोचना चाहिए कि स्वयंसेवक सिर्फ एक दल को ही क्यों चुनते हैं। इसके साथ ही उन्होंने ये संकेत दिया कि संघ का संबंध सिर्फ भाजपा से नहीं है।