
नई दिल्ली। केंद्रीय सरकार जल्द ही उच्च शिक्षा क्षेत्र में बड़े बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाने जा रही है। राष्ट्रीय उच्च शिक्षा आयोग के गठन के लिए सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में विधेयक ला रही है। इस विधेयक में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) समेत अन्य नियामकों को समाप्त करने का प्रस्ताव भी हो सकता है। इस तरह के विधेयक की कोशिश पहले भी हो चुकी है, जिसका शिक्षा से जुड़ी संसदीय समिति विरोध कर चुकी है।
दरअसल, संसद के शीतकालीन सत्र में राष्ट्रीय उच्च शिक्षा आयोग विधायक 2025 को सूचीबद्ध किया गया है। सरकार का कहना है कि उच्च शिक्षा, अनुसंधान तथा वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों में समन्वय स्थापित करने और मानक निर्धारित करने के लिए इस आयोग की स्थापना किया जाना है। एक ही राष्ट्रीय निकाय होने से फैसले तेज़ होंगे और संस्थागत संरचना अधिक पारदर्शी तथा प्रभावी बनेगी। वहीं नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रस्तावित भारतीय उच्च शिक्षा आयोग का प्रावधान किया है। इसके अनुरूप ही यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की जगह एक ही आयोग चलाने का प्रस्ताव है। जबकि कानून और मेडिकल शिक्षा इस आयोग के दायरे से बाहर रह सकते हैं।
राज्यसभा के कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति इस तरह के आयोग गठन पर आपत्ति जता चुकी है। समिति का दावा है कि यूजीसी जैसी संस्थाओं को पूरी तरह समाप्त कर देना शिक्षा व्यवस्था में असंतुलन पैदा करने के साथ निजीकरण को बढ़ावा दे सकता है। सदस्यों ने सुझाव दिया है कि सुधार ज़रूरी हैं, लेकिन संस्थाओं को मजबूत बनाने और उन्हें आधुनिक आवश्यकता के अनुरूप पुनर्गठित करने का विकल्प भी सामने रखा जाना चाहिए।
केंद्र सरकार का अप्रचलित कानूनों को समाप्त करने का अभियान जारी है। इसके तहत कानून मंत्रालय ने करीब 120 अप्रचलित (पुराने और अप्रभावी) कानूनों की पहचान की है। इनको निरस्त करवाने के लिए शीतकालीन सत्र में कानून मंत्रालय निरसन और संशोधन विधेयक, 2025 पेश करने जा रही है।
Published on:
24 Nov 2025 09:41 am
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